दरअसल इसरो के चंद्रयान-2 के साथ उसने अपना एक उपकरण भेजा जो उसे वहां के वातावरण की जानकारी देता। इस ट्वीट में नासा ने खुलासा किया था कि उसकी योजना अगले कुछ सालों में अपना अंतरिक्ष यात्री चंद्रमा की इसी सतह पर भेजना है। अमरीकी अंतरिक्ष वैज्ञानिकों के अनुसार इस एतिहासिक मिशन से चंद्रमा की बनावट को समझने में काफी मदद मिलती। इससे उन्हें अंतरिक्ष यात्रियों को भेजने में और आसानी होती।
स्पेस डॉट कॉम के अनुसार चंद्रयान-2 का विक्रम लैंडर चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर उतरने वाला था। जॉन हॉपकिन्स यूनिवर्सिटी के अप्लाइड फिजिक्स लैबोरेटरी में अंतरिक्ष वैज्ञानिक ब्रेट डेनेवी का कहना है कि चंद्रयान-2 जहां उतरता वह पूरी तरह ऐसा हिस्सा है जिसके बारे में अभी तक कोई जानकारी नहीं है।
इस मिशन से चंद्रमा की सतह पर पानी और उसकी मात्रा का पता लगाने में मदद मिलती। बता दें कि चंद्रयान-2 अपने साथ 13 उपकरण ले गया, जिसमें 12 भारत के हैं जबकि एक नासा का उपकरण है।
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