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अमरीका से भारत के संबंध
भारतीय चुनाव को लेकर अमरीका नजरें बनाए हुए है। चुनाव परिणामों से पहले एक्जिट पोल में एनडीए को मिलता बहुमत और नरेंद्र मोदी के फिर से प्रधानमंत्री बनने के संकेतों के बीच यह बेसब्री और भी बढ़ गया है। दरसअल 2014 में नरेंद्र मोदी की सरकार बनने के बाद से भारत और अमरीका के बीच संबंधों में काफी प्रगति हुई है। खासकर इसमें और इजाफा जब हुआ जब अमरीका में सरकार बदली और ट्रंप राष्ट्रपति बने। ऐसा माना जा रहा है कि पीएम मोदी और ट्रंप के बीच आपसी संबंध काफी बेहतर हैं। जिसका फायदा भारत को मिला है। अब अमरीका को भी संभवतः यह उम्मीद है कि 2019 में फिर से मोदी सरकार के आने से दोनों देशों के व्यापारिक संबंध आगे बढ़ सकेंगे। ऐसे कई कारार दोनों देशों के बीच हुए हैं जो ऐतिहासिक हैं और संभवतः सरकार बदलने पर वह आगे नहीं बढ़ पाएगा। इसके अलावे भारत एक आर्थिक महाशक्ति के तौर पर आगे बढ़ रहा है। अमरीका इसमें एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। इसलिए एक स्थाई सरकार के लिए अमरीका काफी उम्मीदें लगा रहा है।
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यूरोपीय देशों को उम्मीद
यूरोपीय देश भारतीय चुनाव नतीजों पर नजर बनाए हुए हैं। इसमें यूनाइटेड किंगडम, इटली, स्पेन, फ्रांस , जर्मनी, स्वीट्जरलैंड जैसे देश बेसब्री से इंजतार हैं। इसके पीछे कई कारण हैं। दरअसल मोदी सरकार के दौरान इन देशों के रिश्ते भारत के साथ काफी प्रगाढ़ हुए हैं। प्रधानमंत्री मोदी के व्यक्तिगत तौर पर इन देशों के प्रमुखों के साथ अच्छे संबंध हैं। इसके अलावे यह चुनाव परिणाम इन देशों के साथ बेहतर रिश्तों को मजबूत करने में अहम भूमिका अदा करेगा। इसमें फ्रांस चुनाव नतीजों पर टकटकी लगाए हुए है। क्योंकि भारत में जो सबसे गर्म मुद्दा है वह है रफाल सौदा। रफाल को लेकर दोनों देशों के बीच रिश्ते बन-बिगड़ सकते हैं। चूंकि मोदी सरकार फ्रांस के साथ गवर्मेंट-टू-गवर्मेंट डील कर रिश्तों को बढ़ाया है। अब यदि कांग्रेस में सत्ता में आती है तो हो सकता है कि इस डील को लेकर कुछ बदलाव हो। क्योंकि कांग्रेस लगातार रफाल सौदे में भ्रष्टाचार का आरोप लगा रही है। रूस की बात करें तो रक्षा सौदों के लिए भारत काफी निर्भर है। ऐसे में पुतिन के साथ मोदी के संबंध दोनों देशों के रिश्तों को आगे बढ़ाने के लिए काफी अहम है। मोदी सरकार ने रूस के साथ कई अहम समझौते किए हैं।
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पड़ोसी देशों की है खास नजर
पड़ोसी देशों की बात करें तो भारतीय चुनाव परिणाम को लेकर काफी बेसब्री है। इसमें खास कर चीन और पाकिस्तान को काफी उम्मीदें हैं। चूंकि मोदी सरकार कार्यकाल की बात करें तो दोनों देशों के साथ रिश्तों में कभी तनाव तो कभी नरमी देखने को मिला है। डोकलाम विवाद से यह स्पष्ट हो गया था कि भारत अब चीन से मुकाबला करने को तैयार है। इस बात का एहसास चीन को भी हुआ। लिहाजा चीन को अपने कदम पीछे खीचने को मजबूर होना पड़ा। ऐसे में चीन को इंतजार है कि किसकी सरकार बनेगी। क्योंकि मोदी सरकार के आने से चीन के साथ आर्थिक संबंध आगे बढ़ने की संभावना है। वहीं दूसरी तरफ पाकिस्तान भी निगाहें बनाए हुए है। मोदी सरकार के साथ पाकिस्तान के संबंध ज्यादा अच्छे नहीं रहे हैं। भारत एक मजबूत ताकत के तौर पर दिखा है। बालाकोट स्ट्राइक के बाद पाकिस्तान को मोदी सरकार से काफी सख्त रवैया अपनाने का अंदाजा है। ऐसे में पाक भी इंतजार कर रहा है कि क्या होगा। यदि मोदी सरकार की वापसी होती है तो पाकिस्तान के लिए थोड़ी मुश्किलें बढ़ सकती है, जबकि कांग्रेस के आने से नरमी की उम्मीद है।
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एशियाई देशों के साथ संबंध
मोदी सरकार ने पड़ोसी देशों के अलावे एशियाई देशों के साथ संबंध को प्रगाढ़ बनाने पर जोर दिया। इसमें जापान महत्वपूर्ण है। क्योंकि जापान के प्रधानमंत्री शिंजा आबे के साथ प्रधानमंत्री मोदी के व्यक्तिगत संबंध है। इसके अलावा अर्थव्यवस्था के आधार पर भी दोनों देशों के बीच काफी अच्छे संबंध हैं। भारत में पहली बार बुलेट ट्रेन की नींव जापान के सहयोग से मोदी सरकार ने रखी है। अब इस चुनाव में मोदी सरकार की वापसी का मतलब होगा कि इसमें किसी तरह का कोई रूकावट आने की संभावना नहीं है। यदि कांग्रेस सत्ता में आती है तो फिर इस प्रॉजेक्ट पर खतरे के बादल मंडरा सकते हैं या इसमें कुछ बदलाव हो सकते हैं। लिहाजा जापान भी चुनाव परिणाम पर टकटकी लगाए है। बता दें कि जापान की मदद से भारत में गुजरात के अहमदाबाद से महाराष्ट्र के मुंबई के बीच पहली बुलेट ट्रेन चलाने की परियोजना पर कार्य चल रहा है।
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