डेनमार्क की एक इंटेलिजेंस सर्विस ने शुक्रवार को जानाकारी देते हुए बताया कि चीन की सेना आर्कटिक क्षेत्र में तेजी से साइंटिफिक रिसर्च कर रही है। इंटेलिजेंस एजेंसी ने इससे दुनिया के बर्फीले हिस्से में भूराजनीतिक प्रतिद्वंद्विता बढ़ने की चेतावनी दी है।
पृथ्वी पर आने वाला है बड़ा संकट! शोधकर्ताओं का दावा- 2067 तक आर्कटिक महासागर में खत्म हो जाएगी बर्फ
ग्लोबल वॉर्मिंग और खनिज तक पहुंच को लेकर आर्कटिक में विवाद मई में उस समय खुलकर सामने आ गया था जब अमेरिका के विदेश मंत्री माइक पॉम्पियो ने रूस पर आक्रामक रवैये का आरोप लगाया था और कहा था कि चीन के ऐक्शन पर भी ध्यान रखने की जरूरत है।
आर्कटिक क्षेत्र में चीन-अमरीकी-रूस के बीच बढ़ा तनाव
एनुअल रिस्क असेसमेंट रिपोर्ट में डिफेंस इंटेलिजेंस सर्विसेज ने कहा, ‘रूस, अमरीका और चीन के बीच ताकत प्रदर्शन की जंग आकार ले रही है, जिससे आर्कटिक क्षेत्र में तनाव बढ़ रहा है।’
चीन जो कि खुद को ‘आर्कटिक स्टेट’ के करीब बताता है, इस क्षेत्र में मौजूद संसाधनों तक पहुंच और उत्तरी सागर रूट के जरिए तेज व्यापार की महत्वाकांक्षा रखता है। पेइचिंग ने 2017 में आर्कटिक सागर रूट को बेल्ट ऐंड रोड इनिशटिव में शामिल किया था।
आर्कटिक के बाद अब चिली में पिघल रहे ग्लेशियर, आबादी के लिए बढ़ा खतरा
चीन ने पिछले कुछ सालों में आर्कटिक रिसर्च में तेजी से निवेश बढ़ाया है, लेकिन डिफेंस इंटेलिजेंस सर्विस के चीफ लार्स फिंडसेन ने शुक्रवार को कहा कि चीन का रिसर्च सिर्फ साइटिंफिक नहीं है, इसका दोहरा उद्देश्य है। उन्होंने कहा, ‘हम देख रहे हैं कि चीनी सेना इसमें काफी दिलचस्पी दिखा रही है।’
Read the Latest World News on Patrika.com. पढ़ें सबसे पहले World News in Hindi पत्रिका डॉट कॉम पर. विश्व से जुड़ी Hindi News के अपडेट लगातार हासिल करने के लिए हमें Facebook पर Like करें, Follow करें Twitter पर.