CM नवीन पटनायक के विधानसभा क्षेत्र में इस गांव के लोग नहीं डालते वोट, इसके पीछे है ये बड़ी वजह क्या है इलेक्टोरल बॉन्ड? यह एक तरह का फाइनेंशियल इंस्ट्रूमेंट है। इसे आप राजनीतिक दलों के लिए वैध तरीके से वित्तीय आय का प्रभावी साधन भी मान सकते हैं। इलेक्टोरल बॉन्ड के जरिए कोई भी किसी भी दल को चंदा दे सकती है। यह प्रॉमिसरी नोट की तरह होता है और बियरर चेक की तरह इसका इस्तेमाल किया जा सकता है। यानी जो पार्टी इसे बैंक में जमा करा देगी, उसके खाते में ही पैसा जमा हो जाएगा।
सुप्रीम कोर्ट पहुंचा पीएम मोदी की बायोपिक का मामला, सोमवार को होगी सुनवाई 1 हजार से 1 करोड़ का होता है यह बॉन्ड इलेक्टोरल बॉन्ड्स एक हजार रुपए, 10 हजार रुपए, एक लाख रुपए, 10 लाख रुपए और एक करोड़ रुपए का लिया जा सकता है। इसे कोई भी नागरिक या कंपनी स्टेट बैंक की चुनिंदा शाखाओं से खरीद सकता है। लेकिन खरीदने वाले का नाम पता कहीं दर्ज नहीं होगा। वह किस पार्टी को यह बॉन्ड दे रहा है, इसका कहीं कोई उल्लेख नहीं होगा। यह 15 दिनों तक वैध रहेगा। हर साल जनवरी, अप्रैल, जून और अक्टूबर में बैंक इसे देना शुरू करेगा और 30 दिनों तक दे सकेगा।
2018 में संसद से मिली मंजूरी इस बॉन्ड को लाने का श्रेय मोदी सरकार को जाता है। इसकी प्रक्रिया 2017 में ही शुरू हुई थी। 2018 में भारतीय संसद ने इसे वैधता प्रदान की।
स्मृति ईरानी ने अमेठी की जनता को किया आगाह, कहा- ‘राहुल गांधी से रहें सावधान’ एक साल में 65 फीसदी की बढ़ोतरी एसोसिएशन ऑफ डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर) की ओर से दायर एक आरटीआई के जवाब में भारतीय स्टेट बैंक ने बताया कि पिछले एक साल में इसकी बिक्री में लगभग 62 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज हुई है। 2018 में 1,056 करोड़ रुपए से बढ़कर मार्च, 2019 तक बढ़कर 1,716 करोड़ रुपए हो गया है।
भाजपा को मिले 210 करोड़ रुपए आरटीआई के जरिए मिली जानकारी के आधार पर इस बात का भी खुलासा हुआ है कि चुनावी बॉन्ड से राष्ट्रीय पार्टियों को सबसे ज्यादा लाभ मिला है। 2017-18 में इस बॉन्ड से राजनीतिक दलों को बैंकिंग प्रणाली के तहत 215 करोड़ रुपए मिले। इनमें सत्तारूढ़ दल भाजपा को अकेले 210 करोड़ रुपए और मुख्य विपक्षी कांग्रेस ने 5 करोड़ रुपए मिले। यानि बॉन्ड से मिले कुल रकम में से 95 प्रतिशत केवल भारतीय जनता पार्टी की झोली में गए। बाकी 5 करोड़ रुपए कांग्रेस को मिले।
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