ऑक्सीजन की होने वाली कमी के बारे में केंद्र सरकार को बीते नवंबर में दी गई थी जानकारी, फिर भी इस पर ध्यान नहीं दिया
हालांकि, देखने-सुनने में यह बात मामूली लग सकती है, मगर है सौ प्रतिशत खरी। भारत समेत दुनियाभर में आजमाई जाने वाली इस तकनीक से कई और फायदे भी होते हैं। चिकित्सीय जगत में यह काफी जाना-पहचानाप्रोसेस है। इससे शरीर में ऑक्सीजन लेने की प्रक्रिया में सुधार होता है। स्वास्थ्य मंत्रालय के मुताबिक, अगर कोरोना संक्रमित व्यक्ति होम आइसोलेशन में है और उनमें ऑक्सीजन का स्तर 94 प्रतिशत से कम होता है, तो बिना घबराए तुरंत पेट के बल लेटना चाहिए। स्वास्थ्य मंत्रालय के अनुसार यह तकनीक करीब 80 प्रतिशत तक कारगर है।
दरअसल, कोरोना संक्रमित मरीज अक्सर होम आइसोलेशन या फिर अस्पताल में भर्ती होने पर भी पीठ के बल लेटे रहते हैं। इससे फेफड़े यानी लंग गुरुत्वाकर्षण से प्रभावित होते हैं। यही नहीं, शरीर के दूसरे अंगों का दबाव भी उन पर पड़ता है, जिससे फेफड़े तक ऑक्सीजन का प्रवाह पर्याप्त तरीके से नहीं हो पाता। वहीं, प्रोनिंग से वायुकोष्ठिका यानी एल्वेओली खुल जाती है और ऑक्सीजन का प्रवार सही तरीके से होने लगता है।
आपको बता दें कि प्रोनिंग के लिए जो भी चीज जरूरी है, उसका इंतजाम घर में आसानी से हो सकता है, इसलिए घबराएं नहीं। इस प्रक्रिया के लिए चार से पांच तकियों की जरूरत होती है। पेट के बल लेटते हुए एक तकिया गर्दन के नीचे रखना चाहिए। अब एक या दो तकिए सीने से नीचे और ऊपरी जांघ के पास ऊपर की ओर रखें। अब दो तकिए पिंडली के नीचे रखें। स्वास्थ्य मंत्रालय के अनुसार, यह प्रक्रिया पूरी तरह सुरक्षित है और इससे ऑक्सीजन का लेवल शरीर में बढ़ सकता है।
सरकार की ओर से जारी की गई गाइडलाइन के मुताबिक, प्रोनिंग की प्रक्रिया के दौरान बीच-बीच में पोजिशन बदलती रहनी चाहिए। एक ही अवस्था में अधिक से अधिक 30 मिनट तक रहें। पहली पोजिशन में पेट के बल लेटना है। दूसरी पोजिशन में बाईं करवट लेकर हाथ को सिर के नीचे कुछ इस तरह रखें कि वहीं तकिए की तरह बन जाए। इस दौरान तकिया नहीं लेना है। अब दोनों पैरों को सटाकर रखते हुए आधे घंटे तक लेटे रहना है। तीसरी पोजिशन में यही तरीका दाईं करवट लेकर अपनाना है। इसके अलावा, चौथी पोजिशन भी है, जो थोड़ी मुश्किलभरी है। इसमें आपको सीधे बैठते हुए शरीर को पीछे की ओर झुकाते हुए लगभग 120 डिग्री तक रखें। इस दौरान दोनों पैर आपस में सटे होने चाहिए। हालांकि, यदि मरीज को इस पोजिशन में रहने में परेशानी हो रही है, तो उससे जबदस्ती नहीं करें। बाकी सभी पोजिशन को करीब आधे-आधे घंटे तक करना चाहिए।
स्वास्थ्य मंत्राल की ओर से जारी गाइडलाइन के अनुसार, प्रोनिंग वैसे तो पूरी तरह सुरक्षित और आजमाई हुई प्रक्रिया है, मगर कुछ खास मरीजों के लिए यह प्रक्रिया खतरनाक भी हो सकती है। इसमें गर्भवती महिलाएं भी शामिल है। स्वास्थ्य मंत्रालय की ओर से जारी की गई गाइडलाइन के अनुसार, गर्भवती महिलाओं को प्रोनिंग नहीं करनी चाहिए। इसके अलावा, दिल से जुड़ी गंभीर बीमारी से पीडि़त मरीजों को भी प्रोनिंग नहीं करने की सलाह दी गई है। वहीं, कोरोना संक्रमित डीप वीनस थ्रोम्बेसिस से पीडि़त मरीज, जिसका बीते 48 घंटे के भीतर कोई इलाज या सर्जरी हुई है, उन्हें भी यह प्रक्रिया नहीं करनी चाहिए। ऐसे व्यक्ति जिन्हें रीढ़ की हड्डी से जुड़ी कोई समस्या है या जिन्हें पेल्विक फै्रक्चर है अथवा शरीर में किसी और गंभीर रोग से पीडि़त हैं, तो उन्हें इस प्रकिया को नहीं करना चाहिए।
स्वास्थ्य मंत्रालय की ओर से जारी गाइडलाइन के अनुसार, भोजन के तुरंत बाद प्रोनिंग की प्रक्रिया नहीं करनी चाहिए। प्रोनिंग को भोजन से एक घंटे पहले या एक घंटे बाद ही करना चाहिए। तकिया लेते समय यह ध्यान रखें कि वह अधिक सख्त नहीं हो। इसके अलावा, बहुत ज्यादा मोटा या फिर बहुत पतला तकिया नहीं होना चाहिए। प्रोनिंग की प्रक्रिया के लिए बार-बार कहा जाता है मरीज किसी भी पोजिशन में आधे घंटे से ज्यादा नहीं लेटें। यदि किसी पोजिशन आप सहज महसूस नहीं कर रहे और उस प्रक्रिया में दर्द महसूस कर रहे हैं तो वह स्थिति छोड़ दें। दिनभर में अलग-अलग समय में करीब 16 घंटे तक प्रोनिंग की प्रक्रिया का पालन कर सकते हैं, मगर दिक्कत हो तो अपनी सुविधानुसार समय को निर्धारित कर सकते हैं। इसे लगातार नहीं कर सकते तो चार-चार घंटे के अंतराल पर बांट सकते हैं।