दरअसल, बात अगस्त 2015 की है। उस साल गर्मी की छुट्टियों के बाद जब दिल्ली विश्वविद्यालय खुला, ठीक तभी जामिया मिलिया इस्लामिया प्रशासन ने अपने कॉलेज में पढऩे वाली छात्राओं को लेकर एक नोटिस जारी किया। इस नोटिस में दिए निर्देश के मुताबिक, कॉलेज के हॉस्टल में रहने वाली लड़कियों को देर शाम 8 बजे के बाद बाहर रहने की अनुमति नहीं है। यानी ऐसी लड़कियां जो घर से बाहर हॉस्टल में रहकर पढ़ती हंै, उन्हें हर हाल में देर शाम 8 बजेे तक हॉस्टल में जरूर लौट आना होगा। यह नोटिस जारी हुआ तो दिल्ली माहिला आयोग की अध्यक्ष स्वाति मालीवाल ने इसका विरोध किया। उन्होंने जामिया मिलिया इस्लामिया प्रशासन से पूछा कि आखिर यह फैसला उन्होंने क्यों लिया?
अब चूंकि जामिया प्रशासन से नोटिस को लेकर सवाल सीधे दिल्ली महिला आयोग की अध्यक्ष स्वाति मालीवाल ने पूछ लिया था, तो कई और विश्वविद्यालयों में पढऩे वाली छात्राओं को हिम्मत मिल गई। फिर क्या था, उन्होंने अपने-अपने यहां के कॉलेज प्रशासन द्वारा लिए गए कुछ सख्त फैसलों पर सवाल खड़े करने शुरू कर दिए। इसके बाद कुछ छात्राएं विरोध और उसके तरीकों को लेकर कुछ ज्यादा ही उत्साहित हो गईं। उन्होंने बाकायदा एक ग्रुप बनाया, जिसका नाम रखा पिंजरा तोड़ ग्रुप। इसमें विभिन्न कॉलेजों की छात्राओं को शामिल किया गया। तो ऐसे बना यह पिंजरा तोड़ ग्रुप, जिसे दिल्ली के विभिन्न कॉलेजों में पढऩे वाली छात्राएं चला रही हैं। हांलांकि, अगले कुछ वर्षों में यह ग्रुप पंजाब, कोलकाता, ओडिशा और दक्षिण भारत के कुछ राज्यों के विश्वविद्यालयों और कॉलेजों में भी सक्रिय हुआ और वहां विभिन्न मुद्दों को लेकर विरोध-प्रदर्शन किया।
जब पिंजरा तोड़ ग्रुप बन गया तो इसमें शामिल छात्राओं ने न सिर्फ अपने बल्कि, दूसरे विश्वविद्यालयों में लागू कुछ फैसलों को लेकर विरोध करना शुरू कर दिया। ग्रुप से जुड़ी छात्राओं का कहना है कि विश्वविद्यालयों और कॉलेजों में वहां के प्रबंधन-प्रशासन की ओर से छात्राओं पर लगाए जाने वाले कुछ प्रतिबंध उन्हें मंजूर नहीं हैं। छात्राओं का कहना है कि उनके पीजी (पेइंग गेस्ट) और हॉस्टल का किराया भी काफी अधिक है और यह कम किया जाना चाहिए।
पिंजरा तोड़ ग्रुप में धीरे-धीरे कॉलेजों की छात्राओंं के अलावा बाहरी महिलाओं का भी प्रवेश होता गया। पहले इसमें कॉलेज में पढऩे वाली मौजूदा छात्राएं शामिल हुईं। इसके बाद उन कॉलेजों से पढक़र निकल चुकी छात्राएं भी इसमें शामिल होती गईं। इनकी मांग होती थी कि कॉलेज प्रशासन ने हॉस्टल में छात्राओं को लेकर जो प्रतिबंध जारी किए हैं, उन्हें खत्म किया जाए। इनका तर्क होता था कि महिलाओं की सुरक्षा के नाम पर उनके अधिकार नहीं छीने जाएं। साथ ही, उन्हें पूरी आजादी से जीने का अधिकार मिलना चाहिए।
जब यह ग्रुप बना तो सब कामकाज ठीक रहा। सारे काम सहमति से होते रहे, लेकिन धीरे-धीरे इसमें भी राजनीति शुरू हो गई। कुछ लोग किसी मुद्दे को उठाते, तो ग्रुप से जुड़े कई लोग उस मुद्दे का ही विरोध कर देते। यही बात विरोध करने वालों की तरफ से उठाए गए मुद्दों को लेेकर भी होने लगी। इसके बाद तो जैसे यह दौर ही शुरू हो गया। इसमें असल मुद्दे और ग्रुप बनाने का जो उद्देश्य था, वह कहीं पीछे छूट गया। अब इसमें हावी हो गई थी पूरी तरह नेतागिरी। विरोध अब छात्राओं के हित को लेकर नहीं था, यह था एकदूसरे की बातों को काटने का। उन्हें नीचे दिखाने का, एकदूसरे के पक्ष को कमजोर साबित करने का।
ग्रुप में राजनीति इस कदर हावी होती गई कि मुद्दों को लेकर विरोध कम होते गए और आपसी विरोध ज्यादा शुरू हो गए। इससे छात्राओं के हितों की बात सामने नहीं आ रही थी। आखिरकार, एक दिन ऐसा भी आया, जब यह ग्रुप नहीं गुटबाजी का अड्डा बन गया। माना जाता है कि 20 फरवरी 2019 का वह दिन था, जब इससे जुड़ी कुछ छात्राओं-महिलाओं ने ग्रुप से अलग होने का ऐलान कर दिया। यही नहीं, अलग होने से पहले उन्होंने जो आरोप लगाए वह भी दिलचस्प, मगर चौंकाने वाले थे। जी हां, इनका दावा था कि पिंजरा तोड़ ग्रुप में सवर्ण हिंदू महिलाएं हावी हो गई हैं और इन्हीं की बातें इसमें सुनी और मानी जाती हैं। यानी आरोप लगे कि यह ग्रुप पिंजरा तोड़ ग्रुप नहीं बल्कि, सवर्ण हिंदू महिला ग्रुप बन गया था।
पिछले साल दिसंबर से लेकर इस साल करीब मार्च महीने तक दिल्ली के कुछ इलाकों में विभिन्न चरणों में दंगा भडक़ा था। दावा है कि यह दंगा नागरिकता संशोधन कानून (CAA) लागू होने के विरोध को लेकर था। वैसे तो इस कानून का विरोध देशभर में पहले से चल रहा था और दिल्ली हिंसा इसी का विस्तारित स्वरूप था। दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल इस पूरे मामले की जांच कर रही है। जांच के बाद पुलिस ने कुछ लोगों को गिरफ्तार भी किया है। इसमें पिंजरा तोड़ ग्रुप की दो सदस्य देवांगना कलीता और नताशा भी शामिल हैं। लंबी पूछताछ के बाद पुलिस ने 31 मई को नताशा को यूएपीए एक्ट (UAPA Act) के तहत गिरफ्तार कर जेल भेज दिया। वहीं, देवांगना कलीता से पूछताछ अभी चल रही है। दावा किया जा रहा है कि दोनों से अब तक हुई पूछताछ में सामने आया कि ग्रुप के सदस्य पूरे CAA के विरोध को लेकर काफी सक्रिय थे। यही नहीं, उन पर यह भी आरोप है कि विभिन्न जगहों पर हिंसा में उनका किरदार अहम था। इसी के तहत नताशा को जाफराबाद में दंगों की साजिश रचने की जिम्मेदारी ग्रुप की तरफ से दी गई थी। इससे पहले, 13 फरवरी 2017 को ग्रुप की कुछ सदस्यों ने दिल्ली में ‘अवाइड ब्रा एंड पैंटी’ नाम से एक थिएटर शो किया था। इसके बाद कुछ सार्वजनिक जगहों पर ‘ब्रा’ लटकाकर छोड़ दिए गए, जिसको लेकर काफी विवाद हुआ।
पुलिस सूत्रों की मानें तो दिल्ली में एंटी सीएए प्रोटेस्ट में महिलाओं को भडक़ाने और विभिन्न जगहों पर सुनियोजित तरीके से प्रदर्शन कराने और हिंसा कराने में पिंजरा तोड़ ग्रुप ने अहम भूमिका निभाई। ग्रुप की सदस्य नताशा और देवांगना की पीएफआई से जुड़े कुछ लोगों के साथ कई बार मुलाकात हुई थी, जिसमें हिंसा की साजिश रची गई। आरोप है कि एंटी सीएए और देश के विभिन्न राज्यों में इसको लेकर फैली हिंसा में पीएफआई ने भी प्रमुख रोल अदा किया है।