यह एक ऐसा आंदोलन बना जिसने दुनिया भर में दबे-कुचलों के लिए लड़ाई के मामले में अपनी अलग पहचान बनाई। आज ही के दिन उन्होंने जीवनदायिनी शिविर की शुरुआत की थी।
बॉलीवुड सितारों को क्रिकेटर्स ने इस मामले में छोड़ा पीछे, Virat Kohli सबसे पसंदीदा सेलेब दरअसल, विनोबा भावे गांधीजी के अनुयायी थे। वह गांधी के अहिंसा और सबके लिए समानता के सिद्धांत के असली पुजारी थे। वैसे तो उन्होंने जनहित में कई काम किए लेकिन उनका सबसे बड़ा काम भूदान आंदोलन है जिसकी विश्व स्तर पर तारीफ की हुई।
भावे को मिला सामुदायिक नेतृत्व का पहला पुरस्कार समाज सेवी विनोबा भावे ने अपना जीवन गरीबों और दबे-कुचले वर्ग के हितों की संघर्ष में समर्पित कर दिया। आजादी के बाद देश में वह उन लोगों के अधिकारों के लिए खड़े हुए जिनके लिए आज भी कोई खुशी—खुशी खड़ा नहीं होना चाहता।
उन्होंने भारत को आजादी मिलने के बाद देशभर में भूदान आंदोलन चलाया। इस आंदोलन को सबसे ज्यादा लोकप्रियता मिली। वह लोकप्रियता के मामले में शिखर पर पहुंच गए। इस आंदोलन के लिए उन्हें सामुदायिक नेतृत्व के लिए 1958 में पहला अंतरराष्ट्रीय रमन मैगसेसे पुरस्कार मिला। इतना ही नहीं, 1983 में मरणोपरांत उनको देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न से सम्मानित किया गया।
Rhea Chakraborty की जमानत याचिका खारिज, हाईकोर्ट का करेंगी रुख मां से मिली थी आध्यात्म की राह पर चलने की प्रेरणा बता दें कि 11 सितंबर, 1895 को उनका जन्म महाराष्ट्र कोलाबा के गागोड गांव में हुआ और निधन 15 नवंबर, 1982 को हुआ था। उनका वास्तवित नाम विनायक नरहरि भावे था। उनके पिता का नाम नरहरि शम्भू राव और माता का नाम रुक्मिणी देवी था। उनकी माता रुक्मिणी धार्मिक स्वाभाव वाली महिला थीं। अध्यात्म के रास्ते पर चलने की प्रेरणा उनको अपनी मां से ही मिली थी।