नए लव जिहाद कानून के अन्तर्गत पहली एफआईआर कानून लागू होने के अगले दिन बरेली में लिखाई गई थी। इसमें टीकाराम राठौड़ ने उवैश अहमद के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज करवाते हुए लिखा था कि अहमद उसकी 20-वर्षीय बेटी को प्रेम संबंध में फांस कर धर्म परिवर्तन करवाना चाहता था। इसके बाद कई अन्य जगहों पर भी नए कानून के तहत एफआईआर दर्ज करवाई गई और पुलिस ने भी त्वरित कार्यवाही करते हुए दोषियों को गिरफ्तार कर लिया। इनमें से कुछ दोषियों को कोर्ट द्वारा रिहा भी किया जा चुका है। हालांकि पुलिस द्वारा इस प्रकार त्वरित कार्यवाही किए जाने से नए कानून पर सवाल उठने भी शुरु हो गए हैं।
यूपी के नए कानून में यदि यह सिद्ध हो जाता है कि धर्म परिवर्तन के लिए ही विवाह किया गया है तो दोषी को 10 वर्ष की कैद हो सकती है। कानून के तहत जबरन, लालच देकर या धोखाधड़ी से धर्म परिवर्तन कराने को भी गैर जमानतीय अपराध माना गया है। पुलिस बिना वारंट के भी आरोपी को गिरफ्तार कर पूछताछ कर सकती है। धर्म परिवर्तन करने वाले व्यक्ति के माता-पिता अथवा रिश्तेदार भी केस दर्ज करा सकते हैं। इस विधेयक की सबसे बड़ी बात यह है कि यदि व्यक्ति अपने पुराने धर्म में लौटता है तो उसे धर्म परिवर्तन नहीं माना जाएगा।
उत्तर प्रदेश विधि विरुद्ध धर्म परिवर्तन प्रतिषेध अध्यादेश- 2020 को भले ही केंद्र सरकार और अदालत ने अभी आधिकारिक रूप से मान्यता नहीं दी है, लेकिन हरियाणा जैसे भाजपा शासित राज्यों में भी इस तरह का कानून लागू करने की कवायद तेज हो गई है। फिलहाल इस कानून के खिलाफ कई याचिकाएं इलाहाबाद उच्च न्यायालय और सर्वोच्च अदालत में विचाराधीन हैं।
एक तरफ जहां विपक्ष और अन्य राजनीतिक पार्टियां इसे धर्म विशेष के अनुयायियों को परेशान करने का हथकंड़ा बता रही हैं तो वहीं दूसरी ओर कई दूसरे राज्यों में भी इसी तरह के कानून बनाए जाने की बात हो रही है। यहीं नहीं मध्यप्रदेश में तो आज इसी तरह के एक कानून मप्र धार्मिक स्वतंत्रता विधेयक-2020 को केबिनेट की मंजूरी भी मिल गई है। इस विधेयक को आगामी विधानसभा के सत्र में पेश किया जाएगा।
इस विधेयक में लव जिहाद जैसे शब्द का उल्लेख नहीं है। फिर भी तय किया गया है कि स्वेच्छा से धर्म परिवर्तन करने वाले को 60 दिन पहले जिला दंडाधिकारी को सूचना आवश्यक तौर पर देना होगी। सूचना न देने पर तीन से पांच साल की सजा और 50 हजार रुपए का जुमार्ना होगा।