दरअसल, 20 मार्च को जारी अपनी रिपोर्ट में इंपीरियल कॉलेज आफ लंदन ने कहा था कि लॉकडाउन के दौरान सभी देशों को अपनी मेडिकल तैयारियों को इमरजेंसी लेवल पर करना है। लेकिन गंभीरता का हाल यह है कि हमारे देश में ज्यादातर राज्यों ने इस तरफ ध्यान ही नहीं दिया, जिसके कारण न नए अस्पताल खड़े हो पाए और न ही उसके लिए जरूरी संसाधनों का इंतजाम हो पाया है। अब जो बातें सामने आ रही हैं, वह और ज्यादा डरावनी हैं। पांच राज्यों ने साफ कर दिया है कि आने वाले वक्त में उनके पास मेडिकल तैयारियों के नाम पर कुछ नहीं होगा। जिस तेजी से मरीज उनके यहां पर बढ़ रहे हैं, वह उनको मेडिकल सुविधा नहीं दे पाएंगे।
बीते रोज केंद्रीय गृह सचिव राजीव गावा के साथ हुई वीडियो कान्फ्रेंस में जो बातें सामने आई हैं, उनके मुताबिक, दिल्ली, महाराष्ट्र, तमिलनाडु, गुजरात और उत्तर प्रदेश में जिस तरह के हालात हैं, उसमें आने वाले वक्त में मेडिकल सुविधा मुहैया करा पाना संभव नहीं होगा। अभी जो आंकड़े सामने आ रहे हैं, उसमें देश के 13 राज्यों के 46 जिले ऐसे हैं, जिनमें कोरोना मरीजों की जांच के दस फीसदी पॉजिटिव केस आ रहे हैं। जबकि 69 जिलों में यह आंकड़ा पांच फीसदी का है। ऐसे में मुश्किल यही है कि आने वाले वक्त में क्या इंतजाम होंगे।
क्या यह विकास की पोल खुल गई
इस वक्त में एक सबसे बड़ा सवाल यह खड़ा हो गया है कि जिन इलाकों और राज्यों में विकास के बड़े—बड़े दावे किए जा रहे थे, वहां पर कोरोना ने मेडिकल इमरजेंसी के हालात खड़े कर दिए हैं। ऐसे में यह सवाल उठ रहा है कि आखिर राज्य सरकारों ने सरकारी मेडिकल सुविधा के नाम पर प्रदेश में क्या किया है?
जिम्मेदार कौन
सबसे बड़ा सवाल यही है कि केंद्र से लेकर राज्य तक इन मेडिकल अव्यवस्थाओं के लिए जिम्मेदार कौन है। दिल्ली से लेकर मुंबई तक मरीजों को निजी और सरकारी दोनों अस्पतालों में जगह नहीं मिल रही है। जांच के लिए लोगों को चार से पांच घंटे तक लाइन में इंतजार करना पड़ रहा है। जो सरकारें कल तक अपने अस्पतालों में हजारों बेड खाली होने की बातें कर रही थीं, उनमें अब बेड नहीं मिल रहे हैं। निजी अस्पतालों में बेड के नाम पर कालाबाजारी शुरू हो गई है।
आखिर क्यों नहीं हुई यह तैयारियां
इंपीरियल कॉलेज ने लॉकडाउन में जिन तैयारियों की बात की थी, उनमें यह सब चीजें थीं। जिनकों लेकर किसी भी राज्य सरकार ने गंभीरता नहीं दिखाई और उसका असर यह है कि राज्यों में बेड की संख्या में कमी आना शुरू हो गई है। कई राज्य तो अभी से कहने लगे हैं कि वह आने वाले वक्त में इलाज मुहैया कराने में भी कमजोर साबित होंगे। आखिर इन चीजों पर सरकारों ने ध्यान क्यों नहीं दिया।…कालेज ने यह सिफारिशें की थी।