मटुआ समुदाय अनुसूचित जाति से ताल्लुक रखता है। बंगाल में इसकी आबादी करीब 3 करोड़ है। राज्य की 70 विधानसभा सीटों पर इसका प्रभाव माना जाता है। यही नहीं, राज्य की 42 संसदीय सीटों में से 10 अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित है। इनमें से 4 सीटें भाजपा ने 2019 के लोकसभा चुनाव में जीती थीं। भाजपा ने वादा किया था कि पार्टी इस समुदाय के हित में नागरिकता संशोधन कानून यानी सीएए बनाएगी। तो अब आप समझ गए होंगे कि सीएए बनवाने में मटुआ समुदाय का कितना बड़ा रोल है।
बंगाल में नामशूद्र समुदाय में शामिल मटुआ को बंगाल में अब भी कई जगह चांडाल नाम से पुकारा जाता है। यह पुराने दौर की परंपरा से जुड़ा शब्द है। आजादी के बाद इनकी स्थिति कापुी बेहतर हुई। विभाजन के बाद से जातीय गणित इस तरह रहे कि मटुआ समुदाय को बंगाल में शरणार्थी माना गया, जबकि इनकी आबादी इतनी अधिक रही। इस आबादी का एक बड़ा हिस्सा हिंदू समुदाय है। इसके बाद ही तमाम गणित देखते हुए सीएए की रणनीति के तहत इन्हें बचाने का काम शुरू हुआ।
शरणार्थी माने जाने से परेशान इस समुदाय को सीएए ने काफी राहत दी। हालांकि, भाजपा का यह अहम कदम भूल सुधार कार्यक्रम के तहत भी यहां देखा जाता है। यानी कि जब एनआरसी के तहत शरणार्थियों को हटाए जाने की बात हुई तो यह समुदाय परेशान हो गया, तब सीएए लाकर उन्हें राहत दी गई। भाजपा के लिए यह कदम इस समुदाय के लिए महत्वपूर्ण है, जिसे वोट बैंक में बदलकर भाजपा भुना रही है। दूसरी ओर ममता बनर्जी इनके लिए भूमि सुधार की बात करके इन्हें अपने पक्ष में करने की कोशिश में जुटी हैं।