बचपन से देशसेवा की भावना
सुखदेव के पिता का नाम रामलाल थापर था। वे अपने व्यवसाय के कारण लायलपुर में रहते थे। इनकी माता रल्ला देवी धार्मिक विचारों की महिला थीं। सुखदेव जब तीन साल के थे, तभी इनके पिताजी का निधन हो गया था। उनका लालन-पालन इनके पिता के बड़े भाई लाला अचिन्त राम ने किया था। वे समाज सेवा के साथ— साथ देशभक्तिपूर्ण कार्यों में हमेशा आगे रहते थे। इसका प्रभाव बालक सुखदेव पर भी पड़ा। बचपन से उनमें कुछ कर गुजरने की चाह थी। सुखदेव ने युवाओं में ना सिर्फ देशभक्ति का जज्बा भरने का काम किया। बल्कि खुद भी क्रांतिकारी गतिविधियों में सक्रिय रूप से भाग लिया।
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बेहद जोशीले थे सुखदेव
साल 1919 में हुए जलियांवाला बाग के भीषण नरसंहार के कारण देश में भय तथा उत्तेजना का वातावरण बन गया था। इस समय सुखदेव 12 वर्ष के थे। पंजाब में लाला लाजपत राय पर लाठीचार्ज के बाद उनके देहांत की घटना ने सुखदेव और भगत सिंह को बदला लेने के लिए प्रेरित किया। और यही वो वजह थी, जिसने भगत सिंह को अप्रैल, 1929 को असेम्बली में बम फेंकने की उस ऐतिहासिक घटना के लिए प्रेरित भी किया था।
भगतसिंह, राजगुरू और सुखदेव को एक साथ दी गई थी फांसी
23 मार्च, 1931 को सुखदेव को राजगुरू, और भगतसिंह के साथ लाहौर षड़यंत्र में आरोपी बनाकर फांसी दे दी गई। मात्र 24 साल की उम्र में ही सुखदेव अपने दोस्त भगतसिंह के साथ देश के लिए कुर्बान हो गए। जबकि सेंट्रल असेम्बली बम केस में बटुकेश्वर दत्त को उम्र कैद की सजा दी गई थी। तीनों को एक ही दिन फांसी हुई। इसलिए इन तीनों का मेमोरियल भी एक ही जगह बनाया गया यानी पंजाब के फीरोजपुर में हुसैनीवालां गांव, जहां तीनों का अंतिम संस्कार सतलज नदी के किनारे किया गया था। लेकिन उन्हें देश में वह सम्मान नहीं मिला जिसके वे हकदार रहे।