scriptइन्फोसिस की सुधा मूर्ती ने एयरपोर्ट पर ‘कैटल क्लास’ कहने वाली महिला को दिया ऐसा जवाब | Sudha Murthy of Infosys gave such a reply to a woman who called 'Cattle Class' at airport | Patrika News
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इन्फोसिस की सुधा मूर्ती ने एयरपोर्ट पर ‘कैटल क्लास’ कहने वाली महिला को दिया ऐसा जवाब

विदेश में भी भारतीय परिधान को पहल देती हैं सुधा मूर्ती ( Sudha Murthy )
अपनी किताब में बयान किया हीथ्रू एयरपोर्ट ( HeathrowAirport ) पर हुआ वाकया
बातों-बातों में ‘उस महिला’ को समझा दिया ‘क्लास’ का मतलब

Jan 24, 2020 / 04:40 pm

Navyavesh Navrahi

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इन्फोसिस ( infosys ) की नींव रखने में महत्वपूर्ण योगदान देने वाली सुधा मूर्ती ( Sudha Murthy ) किसी जान-पहचान की मोहताज नहीं हैं। सामाजिक कार्यों के लिए जानी जाने वाली सुधा मूर्ती कई किताबें भी लिख चुकी हैं। यहां पेश है उनकी मशहूर किताब ‘Three Thousand Stitches: Ordinary People, Extraordinary Lives’ से एक किस्सा। यह वाकया तब का है, जब हीथ्रू इंटरनेशनल एयरपोर्ट पर वे अपनी उड़ान का इंतजार कर रही थीं। उस समय कुछ महिलाओं ने उनके पहनावे को देखकर तंज कसा। उस वक्त सुधा मूर्ती ने जो जवाब उन महिलाओं को दिया, वो सबक लेने वाला है।

आस-पास लोगों को कन्नड़ भाषा में बात करते सुना

सुधा ने पुस्तक में लिखा है कि वे लंदन के हीथ्रू इंटरनेशनल एयरपोर्ट पर बंगलुरु आने की फ्लाइट का इंतजार कर रही थीं। वे लिखती हैं- ‘मैं विदेश में होऊं तब भी साड़ी पहनना पसंद करती हूं। जब यात्रा करनी हो, तो सूट पहनने को पहल देती हूं। इसी अनुसार उम्र का ध्यान रखते हुए मैंने भारतीय परिधान पहने हुए थे। उड़ान भरने में अभी कुछ समय था। मैं वहां बैठ गई और आस-पास के माहौल को देखने लगी। फ्लाइट बंगलुरु के लिए थी, इसलिए मैंने कुछ औरतों को कन्नड़ में बात करते हुए सुना। मैंने देखा मेरी उम्र के कई विवाहित जोड़े थे, जो अमरीका या इंग्लैंड में अपने बच्चों की मदद करने के बाद वापस लौट रहे थे। कुछ ब्रिटिशर्स भारत की तरक्की के बारे में बातें कर रहे थे।’

आपको वहां खड़े होना चाहिए…

वे आगे लिखती हैं- ‘जब मैं लाइन में लगी, तभी मेरे आगे वाली महिला मेरी ओर मुड़ी और अपना हाथ आगे बढ़ाकर बोली- ‘क्या मैं आपका बोर्डिंग पास देख सकती हूं?’ मैं उसे अपना बोर्डिंग पास दिखाने ही वाली थी कि मुझे लगा, वो एयरलाइन की इंप्लॉइ नहीं। मैंने पूछा- क्यों?
उसने आत्मविश्वास से कहा- ‘ये लाइन बिजनेस क्लास यात्रियों के लिए है।’ फिर इकोनॉमी क्लास वाली लाइन की तरफ इशारा करके बोली- ‘आपको वहां खड़ा होना चाहिए।’

मैं उसे बताना चाहती थी कि मेरे पास बिजनेस क्लास टिकट है। लेकिन मैं ये जानना चाहती थी कि इसने किस आधार पर ऐसा सोचा कि मुझे इस लाइन में खड़ा नहीं होना चाहिए। मैंने पूछा- ‘मुझे यहां पर क्यों खड़े नहीं होना चाहिए?’
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…तो पता चला आपको अंतर

उसने आह भरते हुए कहा- ‘मैं समझाती हूं। देखिए, बिजनेस और इकोनॉमी क्लास टिकट में बहुत अंतर है। पहला तो इसकी कीमत ही उससे ढाई गुना ज्यादा है… शायद तीन गुना ज्यादा। उसकी दोस्त ने भी हामी भरी। फिर बोली, ‘इसके साथ ही इसमें कई तरह के खास अधिकार भी जुड़े हुए हैं।
‘अच्छा’ मैंने जानते हुए भी भोलेपन से कहा।

वे जैसे नाराजगी से बोली- ‘जैसे हम लोग दो बैग ले जा सकते हैं, लेकिन आप लोग केवल एक। इसके अलावा एक ही फ्लाइट में होने के बावजूद अलग तरह का खाना मिलता है। …तो अब पता चला अंतर’ उस महिला ने ये शब्द जोर देकर कहे।

मैंने कैटल-क्लास शब्द पर गुस्सा नहीं किया

उसकी बातें सुनने के बाद भी मैं वहीं खड़ी रही। तभी वो महिला अपनी दोस्त की तरफ मुड़ी और कहने लगी- ‘इन कैटल-क्लास’ लोगों को समझाना बहुत मुश्किल है। स्टाफ को आने दो, वही समझाएंगे कि इसे कहां जाना है। हमारी तो यह सुनेगी नहीं।
मैंने उसके ‘कैटल-क्लास’ शब्द पर कोई गुस्सा नहीं किया। बल्कि मुझे अतीत की एक और याद ताजा हो आई।

एक बार मैं बंगलुरु की किसी डिनर पार्टी में गई। इसमें कई लोकल सेलिब्रिटी और प्रभावशाली लोग शामिल थे। मैंने कुछ मेहमनों से कन्नड़ में बात की। तभी एक व्यक्ति मेरे पास आया और धीरे-धीरे स्पष्ट अंग्रेजी में कहने लगा- ‘क्या मैं अपना परिचय दूं, मैं हूं…’ शायद वो यह समझ रहा था कि मैं अंग्रेजी नहीं समझती। मैंने मुस्कुराते हुए कहा- ‘आप मुझसे अंग्रेजी में बात कर सकते हैं’
उसने झेंपते हुए माफी मांगी और कहने लगा- मुझे लगा शायद आपको अंग्रेजी नहीं आती। मैंने आपको कन्नड़ में बात करते हुए सुना था।

‘इसमें कोई शर्म की बात नहीं है कि मुझे स्थानीय भाषा आती है। असल में यह मेरा हक है और विशेषता भी। मैं अंग्रेजी में तभी बात करती हू, जब सामने वाला कन्नड़ में बात न कर सकता हो।’ मैंने कहा।

आपको यह अधिकार दिया किसने?

खैर, मेरी लाइन में लोग धीरे-धीरे आगे बढ़ने लगे। मैं अपनी यादों से बाहर आई। मेरे आगे वाली औरत फुसफुसा रही थी- ‘अब इसे दूसरी लाइन में भेजा जाएगा। हमने इसे लाख समझाने की कोशिश की, पर इसकी समझ में नहीं आया।’
जब मेरी बारी आई, तो मैंने अपना बोर्डिंग पास अटेंडेंट को दिखाया। पास देखते हुए मुसकुराहट के साथ उसने कहा- ‘आपका फिर से स्वागत है। हम पिछले हफ्ते भी मिले थे ना?’

‘हां’ मैंने उतर दिया और वो दूसरे यात्री की ओर बढ़ गई।
मैं अभी फुसफुसाने वाली महिला से कुछ ही दूर पहंची कि तभी अचानक वापस लौटी। मैंने उससे पूछा- ‘आपको ये कैसे पता चला कि मैं बिजनेस क्लास की टिकट अफॉर्ड नहीं कर सकती? अगर मैं अफॉर्ड ना भी कर पाऊं, तब भी आपको यह पूछने का अधिकार किसने दिया कि मुझे इस लाइन में खड़े होना चाहिए या उस में? क्या मैंने आपसे कोई मदद मांगी थी?’ उसकी जैसे बोलती बंद हो गई।

मदर टैरेसा भी ‘क्लासी’ महिला थीं

‘आपने ‘कैटेल क्लास’ शब्द का उपयोग किया था। ‘क्लास’ के होने का मतलब ज्यादा पैसा होने से नहीं है…।’ मैं अपने आप को रोक नहीं पा रही थी। ‘इस दुनिया में पैसा कमाने के कई रास्ते हैं। आप उस पैसे से विलासिता की चीजें इकट्‌ठा कर सकते हैं, लेकिन ये पैसा आपकी ‘क्लास’ को निर्धारित नहीं करता और ना ही आप इसे खरीद सकते हैं। मदर टैरेसा ‘क्लासी’ (उच्च वर्ग) की महिला थीं। इसी तरह भारतीय मूल की महान गणितिज्ञ मंजुल भार्गव। पैसे से खुद को उच्च वर्ग में समझने वाली सोच बहुत पुरानी हो चुकी है।’
और मैं उसका उत्तर सुने बिना आगे बढ़ गई।

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