कोरोना से ठीक होने के 6 माह बाद तक बने रह सकते हैं कई लक्षण, क्या करें और क्या नहीं
कोरोना वायरस बीमारी से ठीक होने के 3-6 महीने बाद तक पोस्ट-कोविड-19 के लक्षणों का अनुभव हो सकता है और इससे घबराएं नहीं बल्कि चिकित्सक से सेहत का मूल्यांकन करवाएं।
नई दिल्ली। क्या निगेटिव रिपोर्ट आने पर COVID-19 के खिलाफ लड़ाई वाकई खत्म हो जाती है? ऐसे कौन से शुरुआती चेतावनी संकेत हैं, जिनपर ध्यान देना चाहिए? किस प्रकार का भोजन या पोषण लेना चाहिए? इसके अलावा भी तमाम ऐसे सवाल हैं, जिनके जवाब लोगों के जेहन में अक्सर आते रहते हैं। इसे लेकर मंगलवार को पीआईबी द्वारा आयोजित एक वेबिनार में इन सभी सवालों के जवाब दिए गए।
पोषण विशेषज्ञ ईशी खोसला और पल्मोनोलॉजिस्ट डॉ. निखिल नारायण बंटे ने पोस्ट-कोविड लक्षणों यानी कोरोना से ठीक होने के बाद सामने आने वाली परेशानियों के बारे में बताया। इस दौरान यह भी जानकारी दी गई कि पोस्ट-कोविड लक्षणों से कैसे निपटा जाए और कैसे पौष्टिक भोजन कोविड से लड़ने और ठीक होने के बाद मदद कर सकता है।
फेफड़े और टीबी विशेषज्ञ डॉ. निखिल नारायण बंटे ने बताया कि महामारी की दूसरी लहर में बड़ी संख्या में कोरोना से ठीक हो चुके मरीज पोस्ट-कोविड-19 सिंड्रोम का शिकार हो रहे हैं। उन्होंने कहा, “लगभग 50-70 फीसदी मरीजों को कोरोना से ठीक होने के 3-6 महीने बाद तक मामूली या गंभीर लक्षणों का सामना करना पड़ सकता है और यह उन मरीजों में ज्यादा देखा जाता है जिनमें संक्रमण का स्तर मध्यम या गंभीर था।” जानिए डॉ. निखिल नारायण बंटे द्वारा पोस्ट-कोविड विषय पर आयोजित वेबिनार के प्रमुख अंश:
पोस्ट-कोविड-19 सिंड्रोम क्या है? अधिकांश कोरोना मरीज 2-4 सप्ताह में ठीक हो जाते हैं। हालांकि, कुछ मरीजों में, कोविड के लक्षण चार सप्ताह से अधिक वक्त तक बने रहते हैं- और यह एक ऐसी स्थिति है जिसे एक्यूट पोस्ट कोविड सिंड्रोम कहा जाता है। अगर लक्षण 12 महीने के बाद भी बने रहते हैं, तो इसे पोस्ट-कोविड सिंड्रोम के रूप में जाना जाता है।
पोस्ट-कोविड-19 के सबसे आम लक्षण:कोरोना के बाद के मनोवैज्ञानिक लक्षण:पोस्ट-कोविड लक्षणों के कारण?1) वायरस से संबंधित: कोरोना वायरस न केवल हमारे फेफड़ों को प्रभावित करता है, बल्कि लिवर, मस्तिष्क और किडनी सहित सभी अंगों को प्रभावित कर सकता है। इसलिए, हमारे शरीर को संक्रमण से उबरने में समय लगता है।
2) रोग-प्रतिरोधक क्षमता से संबंधित: वायरस के प्रवेश से हमारा रोग प्रतिरोधक तंत्र यानी इम्यून सिस्टम अतिसक्रिय हो जाता है। शरीर और वायरस के बीच लड़ाई में विभिन्न रसायन निकलते हैं जो हमारे अंगों में सूजन पैदा करते हैं। कुछ मरीजों में, सूजन लंबे समय तक बनी रहती है।
कुछ सामान्य पोस्ट-कोविड सिंड्रोमथ्रोम्बोएम्बोलिज़्मः यह सबसे अधिक डरावनी पोस्ट-कोविड-19 स्थिति है। यह रक्त के थक्कों द्वारा रक्त वाहिका की रुकावट है। थक्के कहां होते हैं, इसके आधार पर इसका नतीजा दिल का दौरा या स्ट्रोक भी हो सकता है। हालांकि, कोरोना से ठीक होने वाले 5 फीसदी से कम मरीजों में ही थ्रोम्बोएम्बोलिज़्म देखा जा रहा है।
पल्मोनरी एम्बोलिज्मः एक ऐसी स्थिति है जिसमें फेफड़ों में रक्त के थक्के के शुरुआती लक्षण दिखाई देते हैं। लक्षणों में सांस लेने में कठिनाई और रक्तचाप में गिरावट शामिल है। ऐसे मरीजों को तुरंत अस्पताल में भर्ती करने और जांच करने की आवश्यकता होती है।
डी-डाइमर का ऊंचा स्तर: गंभीर मरीजों और उच्च डी-डाइमर लेवल वाले लोगों को अस्पताल में भर्ती होने के साथ-साथ कोरोना से ठीक होने के बाद 2-4 सप्ताह के लिए चिकित्सीय एंटी-कोगुलेंट की जरूरत हो सकती है। लेकिन एंटी-कोगुलेंट्स को डॉक्टर से सलाह लेने के बाद ही सही ढंग से लिया जाना चाहिए।
पुरानी खांसी: एक अन्य प्रमुख पोस्ट-कोविड-19 संक्रमण पुरानी खांसी या संक्रमण के बाद की खांसी है। हमारे एयरवेज में संक्रमण और इसके चलते होने वाली सूजन के कारण ठीक होने के बाद भी सूखी खांसी बनी रह सकती है। ठीक होने की प्रक्रिया शुरू होने पर फेफड़ों में अकड़न के कारण भी खांसी बनी रह सकती है। सूखी खांसी वाले मरीजों के लिए गहरी सांस लेने के व्यायाम की सलाह दी जाती है।
खांसी की थकान: कोरोना से ठीक होने के बाद के मरीज अक्सर खांसी से परेशानी की शिकायत करते हैं। पुरानी खांसी के कारण उन्हें छाती के निचले हिस्से में पसली दर्द महसूस हो सकता है। इस स्थिति का मूल्यांकन करना भी महत्वपूर्ण है। कॉस्टोकॉन्ड्राइटिस या रिब-केज में दर्द कोरोना के दौरान सूजन के कारण ठीक होने के बाद हो सकता है।
पल्मोनरी फाइब्रोसिसः पोस्ट-कोविड सिंड्रोम के अंतर्गत एक और खतरनाक लक्षण पल्मोनरी फाइब्रोसिस है जो कोविड से फेफड़ों के ठीक होने के बाद स्कारिंग के कारण होता है। 90% रोगियों में स्कारिंग चिकित्सकीय रूप से महत्वपूर्ण नहीं होता है। हालांकि, 10% रोगियों को लंबे वक्त तक ऑक्सीजन की जरूरत हो सकती है। इसके उन कोरोना मरीजों में होने की अधिक संभावना है, जिनके फेफड़े 70% से अधिक तक क्षतिग्रस्त हो गए हैं। ऐसे मरीजों में भी फेफड़े की फाइब्रोसिस उनमें से लगभग 1% में ही पाई जाती है।
जिन्हें मध्यम से गंभीर कोविड-19 था और वे ऑक्सीजन थेरेपी पर थे, ठीक होने के एक महीने बाद फेफड़ों के फंक्शन का टेस्ट करवा सकते हैं। ताकि यह समझा जा सके कि क्या फेफड़ों की क्षमता पूरी तरह से बहाल हो गई है और ऑक्सीजन निकालने की क्षमता पूरी तरह से पिछले स्तरों पर बहाल हो गई है। उन्होंने आगे बताया कि कोरोना से ठीक होने वाले कई मरीजों में सीने में दर्द का अनुभव होता है और उन्हें दिल का दौरा पड़ने का डर होता है। लेकिन, COVID से ठीक होने वाले 3% से कम रोगियों में ही दिल का दौरा देखा गया है।
पोस्ट-कोविड न्यूट्रिशन मैनेजमेंट: क्लीनिकल न्यूट्रिशनिस्ट ईशा खोसला ने कहा कि कोविड-19 के कारण मरने वाले 94% लोगों में पहले से कोई अन्य बीमारी थी, जिसके चलते उन्होंने दम तोड़ दिया और इनमें सूजन एक आम बात है। इसलिए, हमारा आहार सूजन-रोधी होना चाहिए और हमें सही खाने, अपने शरीर को फिट रखने और अपनी प्रतिरक्षा प्रणाली को बरकरार रखने की जरूरत है।
आहार में पर्याप्त प्रोटीन खोसला ने कहा कि प्रोटीन हमारे आहार में एक विशेषरूप से और कम से कम दो बार भोजन में मौजूद होना चाहिए। इसके अलावा, हमें सब्जियों को प्रोटीन के साथ जोड़ना चाहिए, जिससे भोजन का पाचन संतुलित तरीके से हो सके।
न्यूट्रिशनल सप्लिमेंट्स क्लीनिकल न्यूट्रिशनिस्ट ने पोषक तत्वों के सप्लीमेंट्स के इस्तेमाल के बारे में आगाह किया और इसे उचित ढंग से इस्तेमाल करने की सलाह दी। उन्होंने कहा, “जिंक, विटामिन सी और विटामिन डी, विटामिन बी कॉम्प्लेक्स को इस दौरान काफी महत्व मिला है। इन्हें विवेकपूर्ण तरीके से लिया जाना चाहिए और इनकी अति नहीं होनी चाहिए।” ये स्पीलमेंट्स शरीर के ठीक होने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।”
सुरक्षा देने वाला भोजन ये भोजन शरीर के रक्षा तंत्र में मदद करते हैं और इसमें फाइटो-पोषक तत्व और फाइबर होते हैं, जो शरीर की रिकवरी के लिए महत्वपूर्ण हैं। इसलिए, प्रोटेक्टिव फूड भी पर्याप्त रूप से लिया जाना चाहिए। हमारी आंतों में जीवित जीवाणु पाए जाते हैं जो हमारी सेहत और रिकवरी को निर्धारित करते हैं। यदि उन रोगाणुओं को कोई नुकसान हुआ है, तो उनका भोजन जो कि रेशे हैं, शरीर को प्रदान किया जाना चाहिए ताकि उन रोगाणुओं को विकसित किया जा सके।
फाइटो-न्यूट्रिएंट्स, जो विभिन्न रंगों में आते हैं और रेन्बो डाइट के रूप में भी जाने जाते हैं, में इस बात की जानकारी होती है कि किस जीन को काम करना हैं, कौन सी दूर की कोशिकाओं को सक्रिय करना है और कौन सी कोशिकाओं को दबाना है। ये विटामिन और खनिजों से भी अधिक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। “इसलिए, रंगीन भोजन का सेवन करें और दिन में एक बार इन सुरक्षात्मक भोजन से भरा खाना जरूर खाएं।”
सुरक्षात्मक भोजन में एंटी-ऑक्सीडेंट, एंटी-इंफ्लेमेटरी फूड, कोल्ड-प्रेस्ड ऑयल, हल्दी, अदरक, चाय आदि शामिल हैं। हाइड्रेशन: पोषण विशेषज्ञ ने भी विशेष रूप से पर्याप्त पानी पीने के महत्व के बारे में बताया। बीमारी के दौरान और बीमारी के बाद भी शरीर में पानी का स्तर अच्छी तरह से बनाए रखा जाना चाहिए।
मानसिक स्वास्थ्य का संबंध हमारी आंत से भी होता है जिसका हमारे शरीर पर इतना गहरा प्रभाव पड़ता है कि वैज्ञानिक अब इसे “दूसरा मस्तिष्क” कह रहे हैं। इसलिए, यदि हमारा भोजन शरीर के लिए अच्छा नहीं है, तो यह हमारी प्रतिरक्षा के अलावा हमारे मूड को भी खराब करता है। संक्षेप में, एक स्वस्थ आहार बनाए रखें, मौसमी और जैविक भोजन लें।