एलियन्स और उड़नतश्तरियों पर अमरीकी सरकार का बड़ा खुलासा, 144 बार दिखे यूएफओ
भारतीय वायु सेना ने सोशल मीडिया पर जानकारी देते हुए कहा है कि धमाकों से किसी भी तरह का जान-माल का नुकसान नहीं हुआ है। परन्तु धमाके के लिए ड्रोन का प्रयोग देश में पहली बार हुआ है। अभी तक हमलों की जिम्मेदारी किसी ने नहीं ली है।दूसरे विश्वयुद्ध का बंकर अब दुनिया का पहला 10K 3D तारामंडल
देश में पहली बार ड्रोन से हुआ है आतंकी हमलाएक्सपर्ट्स के अनुसार पूरे देश में यह पहली ऐसी घटना है जब ड्रोन के जरिए विस्फोटक को आर्मी एरिया तक पहुंचाकर ब्लास्ट किया गया है। ऐसे में सुरक्षा एजेंसियों के सामने सबसे बड़ी चुनौती यही है कि तकनीक के इस दुरुपयोग को किस तरह रोका जाए। हालांकि ऐसी कई घटनाएं पहले भी देखने को मिल चुकी हैं जिनमें पाया गया कि पंजाब तथा जम्मू-कश्मीर स्थित आंतकियों तक हथियार तथा विस्फोटक सामग्री पहुंचाने के लिए पाकिस्तान ड्रोन का प्रयोग कर रहा है। परन्तु हमला करने के लिए पहली बार ड्रोन का उपयोग किया गया है।
उल्लेखनीय है कि ड्रोन अटैक्स की आशंकाओं को देखते हुए पहले ही देश की सरकार एंटी-ड्रोन टेक्नोलॉजी खरीदने के लिए दुनिया भर की हथियार कंपनियों से बात कर रही है। इसी संदर्भ में इजरायल के साथ एंटी-ड्रोन सिस्टम स्मैश 2000 प्लस (Smash 2000 Plus) को खरीदने के लिए बात चल रही है। इसके अलावा डीआरडीओ (Defence Research and Development Organisation) भी स्वदेशी एंटी-ड्रोन तकनीक को विकसित कर रहा है। डीआरडीओ द्वारा बनाई गई स्वदेशी तकनीक का प्रयोग स्वतंत्रता दिवस पर लाल किले में सुरक्षा व्यवस्था बनाने के लिए किया गया था।
वर्ष 1991 में छिड़े खाड़ी युद्ध के दौरान अमरीका ने इराकी सेना तथा युद्ध क्षेत्र पर नजर बनाए रखने के लिए पहली बार ड्रोन का प्रयोग किया था। इन ड्रोन्स को एएवन आरक्यू-2 पायोनियर (AAI RQ-2 Pioneer) तथा एयरोवायरोन्मेंट एफक्यूएम-151 प्वाइंटर (AeroVironment FQM-151 Pointer) नाम दिया गया था। ड्रोन द्वारा जासूसी किए जाने के बाद इसे हमलावर तथा ज्यादा घातक बनाने की कोशिशें भी शुरू कर दी गईं। इक्कीसवीं सदी की शुरूआत में ही ड्रोन को मिसाइल दागने की क्षमता जोड़ कर और भी ज्यादा घातक बना दिया गया और उन्हें जनरल एटोमिक्स एमक्यू-1 प्रीडेटर (General Atomics MQ-1 Predator) नाम दिया गया। ये आजकल प्रचलित ड्रोन जितने छोटे नहीं थे वरन इन्हें एक छोटा एयरक्रॉफ्ट कहा जा सकता है। धीरे-धीरे इन प्रीडेटर ड्रोन्स की क्षमता बढ़ाई जाने लगी। प्रीडेटर ड्रोन्स का उपयोग जनवरी 2012 से फरवरी 2013 तक के बीच अफगानिस्तान में किया गया। आज के हालात देखें तो ड्रोन्स के जरिए हल्के वजन के किसी भी हथियार या विस्फोटक सामग्री को ट्रांसपोर्ट किया जा सकता है, यहां तक कि मशीनगन्स, मिसाइल और ग्रेनेड दागने जैसी कैपेसिटी भी इनमें जोड़ कर इन्हें एक बेहद छोटे लड़ाकू विमान में बदल दिया गया है जो आसानी से रडार की पकड़ में नहीं आता।
शुरू में यह क्षमता केवल अमरीका और कुछ देशों की आर्मी के पास ही रही बाद में इसे ओसामा बिन लादेन के अल कायदा और अबू बकर के इस्लामिक स्टेट (ISIS) जैसे आतंकी संगठनों ने भी अपना लिया। आईएस ने इराक और सीरिया में ऐसे कई हमलों को अंजाम दिया जिन्हें ड्रोन के जरिए किया गया था। इसके लिए आतंकियों के एक छोटे समूह को भी प्रशिक्षित किया गया जिसका काम दुश्मन सेनाओं पर ड्रोन के जरिए हमला करना था। ड्रोन का प्रयोग करते हुए इस्लामिक स्टेट ने जानमाल का कोई नुकसान उठाए बिना इराकी सेना के दर्जनों सैनिकों को मार गिराया था।
इसके बाद दुनिया भर में कई स्थानों पर ड्रोन के जरिए आतंकी हमले देखने को मिले। संक्षेप में हम कह सकते हैं कि वर्तमान में ड्रोन को पूरे विश्व में एक ऐसी टेक्नोलॉजी के रूप में पहचान मिल चुकी है जिसका उपयोग कर सटीकता के साथ हमला कर दुश्मनों को आश्चर्यचकित किया जा सकता है। फिर चाहे इसका उपयोग देश की सरकार करें या फिर आतंकी संगठन। और यही कारण है कि इस वक्त पूरी दुनिया में तेजी से एंटी-ड्रोन तकनीक पर भी काम हो रहा है जो ड्रोन के हमले को बेअसर कर सकती है। एंटी-ड्रोन तकनीक के विकास में इस वक्त अमरीका, इजरायल जैसे देशों के अलावा कई हथियार कंपनियां भी काम कर रही हैं। भारत में भी डीआरडीओ ने स्वदेशी एंटी-ड्रोन तकनीक का विकास किया है।