लॉकडाउन और प्रदूषण का स्तर विषय पर अध्ययन आईआईटी दिल्ली, फुदान विश्वविद्यालय शंघाई और शेनजेन पाॅलिटेक्निक विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं ने किया है। इस अध्ययन रिपोर्ट में कहा गया कि अगर लाॅकडाउन की अवधि की तरह साल भर वायु प्रदूषण कम करने की स्थिति में भारत आ जाए तो सालाना होने वाली मौतों की संख्या को हम 6.5 लाख कम कर सकते हैं।
Weather Forecast : विदर्भ और मराठवाडा में लू, Delhi NCR के लोग झेलेंगे गर्मी की मार अध्ययन रिपोर्ट में बताया गया है कि लॉकडाउन के पहले महीने में आर्थिक गतिविधियां प्रतिबंधित होने की वजह से जानलेवा पार्टिकुलेट मैटर ( PM ) में 52 फीसदी की कमी देखी गई। नवीनतम अध्ययन में भी ये बातें सामने आई कि इसे बरकरार रखने पर हेल्थ रिस्क को 4 गुना कम किया जा सकता है।
भारत के 22 शहरों में मार्च 17 से लेकर अप्रैल 14, 2020 तक शोधकर्ताओं ने सैम्पल कलेक्ट करने का काम किया। फिर उसका तुलनात्मक अध्ययन 2017 से लेकर 2020 तक की समान अवधि के दौरान प्रदूषण की स्थिति किया गया। शोध टीम ने अपने अध्ययन में 6 मुख्य पाल्यूटैंट पर ध्यान केंद्रित किया। इनमें पीएम 10, पीएम 2.5, कार्बन मोनोआक्साइड, नाइट्रोजन आक्साइड, ओजोन, सल्फर डाईआक्साइड की सांद्रता शामिल है।
तमिलनाडु में लॉकडाउन से कुछ और राहत, चाय सहित स्टैंडअलोन दुकानें खोलने की छूट इस अध्ययन को विज्ञान पत्रिका एल्सेवियर पब्लिक हेल्थ इमरजेंसी कलेक्शन के तहत प्रकाशित किया गया है। इस बारे में आईआईटी दिल्ली हर्ष कोटा ने कहा कि अगर एक महीने के दौरान कम सांद्रता का स्तर एक साल तक बनी रहती है तो 6.5 लाख लोगों की जान बच सकती हैं। वर्तमान में वायू प्रदूषण से हम इतने ही लोग की जान गंवा देते हैं।
अध्ययन में इस बात का भी खुला हुआ है कि लॉकडाउन के दौरान एयर क्वालिटी इंडेक्स ( AQI ) में देशभर में 30 फीसदी की कमी आई। नॉर्थ इंडिया में 44 फीसदी, दक्षिण भारत में 33 फीसदी, पश्चिम भारत में 32 फीसदी, पूर्वी भारत में 29 फीसदी और मध्य भारत में 15 फीसदी तक की कमी आई है।
लांसेट प्लेनेटरी हेल्थ जर्नल 2017 में हुए पहले अध्ययन में ये बातें उभरकर सामने आई थी कि वायू प्रदूषण की वजह से भारत में 12.4 लाख अपनी जान गंवा देते है। इससे पहले दिल्ली आईआईटी के सागनिक डे और अन्य शोधार्थियों के एक अध्ययन के आधार पर दावा किया गया था कि लकड़ी, उपले, कोयले और केरोसिन जैसे प्रदूषण फैलाने वाले ईंधन से होने वाले उत्सर्जन पर रोक लगा कर भारत सालाना करीब 2 लाख 70 हजार लोगों की जान बचा सकता है।