विशेषज्ञों की मानें तो किसान इन कृषि विधेयकों को लेकर असमंजस की स्थिति में हैं। दावा किया जा रहा है कि विधेयकों से जुड़े कुछ मुद्दों को लेकर किसान आशंकित हैं, जिसका स्पष्ट तौर पर जवाब उन्हें नहीं मिल रहा। हालांकि, केंद्र सरकार ने इस बारे में विभिन्न माध्यमों से काफी कुछ स्पष्ट करने की कोशिश की है, मगर किसान इससे संतुष्ट नहीं हैं। हालांकि, विरोध के बीच इन विधेयकों के समर्थन में भी कुछ राज्यों के किसान आगे आए हैं। महाराष्ट्र और दिल्ली में कई किसान संगठनों ने विधेयक का समर्थन करते हुए 25 सितंबर से इसके पक्ष में आंदोलन करने की घोषणा की है। महाराष्ट्र के बड़े किसान समूह शेतकारी संगठन ने भी विधेयक को समर्थन दिया है।
क्या कॉरपोरेट घरानों की नीतियां हावी होंगी? केंद्र सरकार का कहना है कि कृषि विधेयक किसान के हित के लिए हैं। इससे देश का हर किसान सशक्त बनेगा। दूसरी ओर, विपक्षी दल और लाखों किसान यह सोचकर आशंकित हैं कि इस कानून के लागू होने से देश का किसान कॉरपोरेट घरानों की नीतियों पर निर्भर हो जाएगा। वैसे, ज्यादातर किसान इस पूरे मामले के राजनीतिकरण से भी परेशान हैं। वह चाहते हैं कि सरकार खुद आगे आए और उनकी आशंकाओं को दूर करे। साथ ही, यह भी बताए कि ये विधेयक उन्हें सशक्त बनाने में कैसे मददगार साबित होंगे।
किसानों का व्यापारियों से संपर्क कैसे होगा?
जिन विधेयकों को लेकर किसान और राजनीतिक दल विरोध कर रहे हैं, उसमें कृषि उपज व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सुविधा) विधेयक 2020 और कृषक (सशक्तिकरण एवं संरक्षण) कीमत आश्वासन समझौता और कृषि सेवा पर करार विधेयक 2020 शामिल है। इसमें कृषि उपज व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सुविधा) विधेयक 2020 के तहत किसान या व्यापारी अपनी उपज को मंडी के बाहर भी अन्य माध्यमों से आसानी से खरीद या बेच सकेंगे। इन विधेयकों के तहत किसान अपनी फसल का व्यापार अपने गृह राज्य में या फिर देश के दूसरे अन्य राज्यों में कहीं भी कर सकेंगे। इसके लिए अलग से व्यवस्थाएं भी की जाएंगी।
बिचौलियों और बड़े किसानों से मुक्ति मिलेगी या नहीं? यही नहीं, किसानों को मंडियों के साथ-साथ व्यापार क्षेत्र में फॉर्मगेट, वेयर हाउस, कोल्ड स्टोरेज, प्रोसेसिंग यूनिट पर भी फसल बेचने की आजादी होगी। बिचौलिये को दूर किया जाए, इसके लिए किसानों से प्रोसेसरों, निर्यातकों, संगठित रिटेलरों के बीच सीधा संबंध स्थापित किया जाएगा। चूंकि, भारत में छोटे किसानों की संख्या अधिक है। इसमें करीब 85 प्रतिशत किसानों के पास दो हेक्टेअर से भी कम कृषि योग्य भूमि है, इसलिए उन्हें बड़े खरीदारों-व्यापारियों से बात करने में परेशानी होती थी। ऐसे में ये किसान या तो बड़े किसानों या फिर बिचौलियों पर निर्भर होते थे। इससे उन्हें कई तरह की परेशानियों का सामना करना पड़ता था। साथ ही, अक्सर फसल के सही दाम, सही समय पर नहीं मिलते थे। इन विधेयकों के लागू होने के बाद हर छोटा-बड़ा किसान आसानी से सही व्यापारी तक अपनी फसल बेच सकेगा।
क्या किसान अपनी इच्छा से फसल का दाम तय कर सकेगा?
इसके अलावा, कृषक (सशक्तिकरण एवं संरक्षण) कीमत आश्वासन समझौता और कृषि सेवा पर करार विधेयक के जरिए किसान कहीं भी व्यापारियों, कंपनियों, प्रसंस्करण इकाइयों और निर्यातकों से सीधे जुड़ेगा। यह कृषि करार के माध्यम से बुवाई से पहले ही किसान को उपज के दाम निर्धारित करने और बुवाई से पहले किसान को उचित मूल्य का आश्वासन देता है। किसान को व्यापारियों से अनुबंध में पूर्ण स्वतंत्रता रहेगी। वह अपनी इच्छा के अनुसार दाम तय कर फसल बेचेगा। देश में करीब दस हजार कृषक उत्पादक समूह बनाए जा रहे हैं। ये एफपीओ छोटे किसानों को जोडक़र उनकी फसल को बाजार में उचित लाभ दिलाने में मददगार साबित होंगे।
न्यूनतम समर्थन मूल्य जारी रहेगा या नहीं?
केंद्र सरकार ने कई बार आश्वस्त किया है कि नए विधेयकों में न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) को नहीं हटाया गया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी कई बार इसको लेकर ऐलान कर चुके हैं कि एमएसपी को खत्म नहीं किया जा रहा है। हालांकि, किसान बाहर की मंडियों को फसल की कीमत तय करने की अनुमति देने को लेकर अब भी आशंकित हैं। किसानों की इन चिंताओं के बीच कुछ राज्यों की सरकारें, विशेष रूप से पंजाब और हरियाणा सरकार इस बात को लेकर आशंकित है कि यदि किसानों की फसल सीधे व्यापारी खरीदेंगे, तो उन्हें मंडियों में मिलने वाले टैक्स का नुकसान होगा।