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वे दो रिसेप्टर जो कोरोना की मानव शरीर में बढऩे में मदद करते हैंयह रिसर्च यूनिवर्सिटी ऑफ पेनसिलवेनिया के अबरामसन कैंसर सेंटर के विशेषज्ञों ने किया है। विशेषज्ञों का दावा है कि यह प्री-क्लीनिकल रिसर्च साबित करता है कि कैसे एंटी एंड्रोजन दवा उन विशेष रिसेप्टरों को खत्म कर देती है, जिनकी मानव कोशिकाओं पर वायरल हमला करने में आवश्यकता होती है। विशेषज्ञों के मुताबिक, हारमोन की दवाएं एंड्रोजन के स्तर को कम कर देती हैं, जिससे कोरोना वायरस के स्पाइक प्रोटीन को कम किया जा सकता है। बता दें कि कोरोना वायरस स्पाइक प्रोटीन का उपयोग करके ही शरीर में कोशिकाओं को संक्रमित करता है। विशेषज्ञों का दावा है कि ये दवाएं इस तरह से कोरोना को शरीर में बढऩे से रोकने में कारगर साबित हो सकती हैं। विशेषज्ञों ने यह भी बताया कि कैसे एसीई-2 और टीएमपीआरएसएस-2 नामक दो रिसेप्टर एंड्रोजन हार्मोन से नियंत्रित किए जा सकते हैं।
हालांकि, विशेषज्ञों का मानना है कि एसीई-2 और टीएमपीआरएसएस-2 रिसेप्टर का उपयोग करके ही सार्स कोव-2 यानी कोरोना कोशिकाओं में प्रवेश कर पाता है। चिकित्सीय तौर पर प्रामाणिक इनहिबिटर कैमोस्टेट और एंटी एंड्रोजन थेरेपी से इन रिसेप्टर को रोककर वायरस का प्रवेश और शुरुआत में ही उसकी संख्या बढऩे यानी प्रतिकृतियां बनने से रोका जा सकता है। इस रिसर्च से कोरोना वायरस के आणविक स्तर की जानकारी तो मिलती ही है, कोरोना संक्रमण के इलाज के लिए एंटी एंड्रोजन थेरेपी के उपयोग को भी मजबूती मिलती है। यह थेरेपी अभी क्लीनिकल ट्रायल के लेवल पर जांची और परखी जा रही है और अच्छी खबर यह है कि इसने सकारात्मक परिणाम दिए हैं।
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पुरुषों में कोरोना की गंभीरता का खतरा ज्यादा क्यों हैगौरतलब है कि एंड्रोजन हारमोन मनुष्यों में प्रजनन के लिए जिम्मेदार होते हैं। आमतौर पर इसे पुरूष हारमोन माना जाता है, लेकिन यह पुरूष और महिला दोनों ही स्तनपायी-रीढ़धारी जीवों में पाया जाता है। यह प्रमुख रूप से जीवों में नर गुणों को कायम रखने में मददगार होता है। टेस्टोस्टेरोन एक प्रमुख एंड्रोजन माना जाता है। रिसर्च में यह भी सामने आया है कि कोरोना बीमारी महिलाओं के मुकाबले पुरुषों में अधिक गंभीर क्यों होती है। विशेषज्ञों का दावा है कि इसकी वजह एंड्रोजन हारमोन हैं। जिन पुरुषों में बहुत कम एंड्रोजन स्तर होते हैं, उनमें इस बीमारी का खतरा अधिक रहता है।
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आगे और तलाश जारी है, जल्द ही अच्छे नतीजे मिलने की उम्मीदविशेषज्ञों की मानें तो पहले हुए रिसर्च के माध्यम से इस बात के पहले प्रमाण दिए जा चुके हैं कि एंड्रोजन को नियंत्रित करने वाला टीएमपीआरएसएस-2 रिसेप्टर के साथ एसीई-2 भी इस हारमोन को सीधे नियंत्रित होता है। विशेषज्ञों के अनुसार, यह पहले बताया जा चुका है कि कोशिकाओं में प्रवेश करने के लिए सार्स कोव-2 स्पाइक इन दोनों रिसेप्टर पर निर्भर होती है और मौजूदा दवाओं की मदद से इन्हें रोका जा सकता है। विशेषज्ञ अब इस मामले में और आगे बढक़र विस्तृत रिपोर्ट और तथ्य पाना चाहते हैं, जिससे इसमें असफलता की कोई गुंजाइश नहीं रहे।