प्रीतम का ब्लड ग्रुप ओ पॉजिटिव, हेमा का बी पॉजिटिव प्रीतम ने किडनी ट्रांसप्लांट के लिए रजिस्ट्रेशन करवा रखा था, लेकिन नंबर एक हजार लोगों के बाद था। ऊपर से उनका ब्लड ग्रुप ओ पॉजिटिव था जिसके चलते किडनी मिल पाना और मुश्किल हो रहा था। उनके परिवार में किडनी डोनर ना होने के चलते मुसीबत बढ़ गई थी। ऐसे में हेमा ने आगे आने का फैसला किया। हेमा का ब्लड ग्रुप बी पॉजिटिव था। आमतौर पर किडनी प्रत्यारोपण से पहले ब्लड ग्रुप मैच किया जाता है। हालांकि अलग-अलग ब्लड ग्रुप के बावजूद किडनी प्रत्यारोपण का यह पहला मामला नहीं हैं।
सिविल सेवा परीक्षा पास किए बिना भी बन सकेंगे IAS अधिकारी, ऐसे मिलेगा मौका …तीन दिन पहले से तैयारी, ऐसे हुआ प्रत्यारोपण प्रत्यारोपण से पहले आई इस समस्या के बाद हेमा ने इंटरनेट से जानकारी जुटाई। इंटरनेट पर उन्होंने एबीओ असंगत प्रत्यारोपण के बारे में जानकारी मिली, इस व्यवस्था में ब्लड ग्रुप मैच ना होने पर भी किडनी प्रत्यारोपित की जा सकती है। हालांकि अलग-अलग ब्लड ग्रुप होने के चलते एंटी बॉडी रिजेक्शन का खतरा ज्यादा रहता है और प्रत्यारोपण असफल होने का खतरा भी बढ़ जाता है इसलिए एंटी बॉडी लेवल कम किया गया। ऐसे में डीसेंसिटाइजेशन जैसी खतरनाक प्रक्रिया को अंजाम दिया गया।