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दिल्ली हाईकोर्ट ने समान नागरिक संहिता पर की टिप्पणी, कहा- बदल रहा है समाज

 
दिल्ली हाईकोर्ट ने यूनिफॉर्म सिविल कोड की दिशा में आगे बढ़ने की वकालत की है। अदालत की मंशा के मुताबिक भारतीय समाज अब सजातीय हो रहा है। समाज में जाति, धर्म और समुदाय से जुड़ी दूरियां मिटने लगी हैं। यानि अब सभी के लिए एम समान कानून होना चाहिए।

Jul 09, 2021 / 05:26 pm

Dhirendra

delhi high court
नई दिल्ली। दिल्ली हाईकोर्ट ने एक याचिका पर सुनवाई के बाद यूनिफॉर्म सिविल कोड को लेकर अहम टिप्पणी की है। जस्टिस जस्टिस प्रतिभा सिंह ने एक मामले की सुनवाई के बाद कॉमन सिविल कोड की पैरवी करते हुए कहा कि भारतीय समाज अब सजातीय हो रहा है। समाज में जाति, धर्म और समुदाय से जुड़ी बाधाएं मिटती जा रही हैं। अदालत ने अनुच्छेद 44 के कार्यान्वयन पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले का जिक्र करते हुए कहा कि केंद्र सरकार को इस पर एक्शन लेना चाहिए।
सीजेआई को लिखी चिट्ठी में है इस बात का जिक्र

सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश को लिखी चिट्ठी में इस बात का जिक्र है। इसमें उनसे अपील की गई है कि पर्सनल लॉ को एक समान करने के लिए दाखिल अलग-अलग याचिकाओं पर सुनवाई के लिए एक बेंच का गठन किया जाए। ऐसा इसलिए कि इससे संबंधित याचिकाओं को समग्रता में देखा जाए तो मामला इसे लागू करने की ओर ही जाता है।
क्या है अनुच्छेद 44

भारतीय संविधान अनुच्छेद 44 राज्य नीति निर्देशकों तत्वों की श्रेणी में आता है। अनुच्छेद 44 में समान नागरिक संहिता का उल्लेख है। इस अनुच्छेद में कहा गया है कि राज्य, भारत के समस्त राज्यक्षेत्र में नागरिकों के लिए एक समान नागरिक संहिता प्राप्त कराने का प्रयास करेगा। बता दें कि नीति निर्देशक तत्व में शामिल प्रावधानों के तहत संविधान भारत सरकार से अपेक्षा करती है कि वो जनहित व राष्ट्रहित में यूनिफॉर्म सिविल कोड बनाए।
धर्म के हिसाब से है अलग-अलग पर्सनल लॉ

अभी देश में अलग-अलग समुदाय और धर्म के लिए अलग-अलग पर्सनल लॉ हैं। मुस्लिम पर्सनल लॉ चार शादियों की इजाजत देता है, जबकि हिंदू सहित अन्य धर्मों में एक शादी का नियम है। शादी की न्यूनतम उम्र क्या हो? इस पर भी अलग-अलग व्यवस्था है। मुस्लिम लड़कियां जब शारीरिक तौर पर बालिग हो जाएं तो उन्हें निकाह के काबिल माना जाता है। अन्य धर्मों में शादी की न्यूनतम उम्र 18 साल है। जहां तक तलाक का सवाल है तो हिंदू, ईसाई और पारसी में कपल कोर्ट के माध्यम से ही तलाक ले सकते हैं, लेकिन मुस्लिम धर्म में तलाक शरीयत लॉ के हिसाब से होता है।
अभी तक क्यों नहीं बना कानून

सुप्रीम कोर्ट के एडवोकेट अश्विनी उपाध्याय बताते हैं कि अनुच्छेद 44 पर बहस के दौरान बाबा साहब आंबेडकर ने कहा था कि व्यवहारिक रूप से इस देश में एक नागरिक संहिता है, जिसके प्रावधान सर्वमान्य हैं। समान रूप से पूरे देश में लागू हैं। लेकिन विवाह-उत्तराधिकार का क्षेत्र ऐसा है, जहां एक समान कानून लागू नहीं है। यह बहुत छोटा सा क्षेत्र है, जिसके लिए हम समान कानून नहीं बना सके हैं। इसलिए धीरे-धीरे सकारात्मक बदलाव लाया जाए।

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