‘निजता के अधिकार का उल्लंघन’
बता दें कि यह याचिका सामाजिक कार्यकर्ता और वकील अमित साहनी ने दायर की थी। याचिकाकर्ता ने सरकार को मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी (MTP) विधेयक की धारा 3(2)(B) में उचित संशोधन करने की मांग की है। याचिका में गर्भपात के लिए 20 हफ्तों की समय-सीमा को बढ़ाकर आगे 4 या 6 हफ्तों तक करने के लिए आदेश देने की मांग की गई है। याचिकाकर्ता ने कहा कि MTP विधेयक प्रेग्नेंसी के 20 हफ्तों बाद भ्रूण के गर्भापात की इजाजत नहीं देता है, जो निजता के अधिकार का उल्लंघन है। याचिकाकर्ता का कहना है कि अगर भ्रूण किसी गंभीर असामान्यता का शिकार है, तो भी गर्भपात करने की अनुमति नहीं दी जाती है।
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असामान्य भ्रूण मामले में होती है दिक्कत
याचिका में आगे लिखा गया है, ‘इस बात का पर्याप्त जोखिम है कि अगर ऐसे बच्चे का जन्म होता है तो उसे शारीरिक या मानसिक असामान्यता का सामना करना पड़ेगा। वहीं, जब दुष्कर्म की वजह से प्रेग्नेंसी हो या फिर महिला और पति द्वारा प्रयोग किए गए साधन के विफल होने की स्थिति में गर्भाधान होता है तो यह विधेयक इस पर कुछ नहीं कहता। अगर गर्भपात विधेयक के अनुसार नहीं किया जाता है तो यह भारतीय दंड संहिता के अंतर्गत दंडनीय अपराध है।’ याचिकाकर्ता ने दलील दी है कि भ्रूण की असमान्यता की पहचान 18 से 20 हफ्तों में होती है और अभिभावक के लिए एक से दो हफ्ते का समय यह निर्णय लेने के लिए बहुत कम होता है कि गर्भपात कराए या नहीं।
महिलाओं के स्वास्थ्य और जिंदगी पर खतरा
गैर-कानूनी और गुप्त रूप से अबॉर्शन का हवाला देते हुए, याचिका में कहा गया, ‘कानूनी अनुमति के अभाव में लोग अवैध तरीके से गर्भपात कराते हैं। इसमें ज्यादातर मामलों का निपटारा किसी गैरपेशेवर लोगों द्वारा बिना साफ-सुथरे ढंग से किए जाता है। इससे हजारों महिलाओं की जिंदगी पर खतरा उत्पन्न होता है।’
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अविवाहिता और विधवाओं को भी मिले अधिकार
साहनी ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले का हवाला दिया, जिसमें कहा गया था कि महिला की निजता, गरिमा और शारीरिक शुचिता के अधिकार का सम्मान किया जाना चाहिए। साहनी ने इसके अलावा यह भी मांग की कि अविवाहित महिलाओं और विधवाओं को भी MTP विधेयक के अंतर्गत गर्भपात कराने का अधिकार मिलना चाहिए।