इसपर अमूल ने करारा जवाब देते हुए कहा कि क्या पेटा इंडिया 10 करोड़ गरीब किसानों से रोजगार छीनना चाहती है? इसके बाद दोनों के बीच विवाद शुरू हो गया है। सोशल मीडिया पर यह मामला काफी गरमा गया और यूजर्स #milk के जरिए अपना-अपना रिएक्शन दे रहे हैं।
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वीगन मिल्क को लेकर सोशल मीडिया यूजर्स बहस कर रहे हैं। कोई इसे सही करार दे रहा है और पेटा इंडिया के आग्रह को सही बता रहा है तो कोई अमूल के साथ नजर आ आ रहा है।
PETA India ने क्या कहा था?
दरअसल, अमरीकी एनिमल राइट्स ऑर्गनाइजेशन ‘द पीपल फॉर द एथिकल ट्रीटमेंट ऑफ एनिमल्स’ (PETA) ने अंतर्राष्ट्रीय बाजार में हो रहे बदलाव के मद्देनजर अमूल इंडिया के मैनेजिंग डायरेक्टर आर. एस. सोढ़ी को पत्र लिखकर डेयरी दूध के बजाय शाकाहारी दूध के उत्पादन पर जोर देने का आग्रह किया।
पेटा ने कहा कि अमूल को वीगन मिल्क प्रोडक्ट्स के उत्पादन के बारे में विचार करना चाहिए। पेटा ने आगे कहा कि को-ओपरेटिव सोसायटी कंपनी अमूल को तेजी से बढ़ रहे वीगन फूड और मिल्क मार्केट का लाभ मिलना चाहिए। इतना ही नहीं, पेटा ने आगे लिखा कि अमूल को संसाधन बर्बाद करने के स्थान पर पौधों पर आधारित उत्पादों की बढ़ती मांग पर ध्यान देना चाहिए। अन्य कंपनियां इसका फायदा उठा रही हैं तो अमूल भी उठा सकती है।
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सोढ़ी को लिखे अपने पत्र में पेटा ने वैश्विक खाद्य निगम कारगिल की 2018 की रिपोर्ट का हवाला देते हुए कहा कि दुनिया भर में डेयरी उत्पादों की मांग घट रही है, क्योंकि डेयरी को अब आहार का एक अनिवार्य हिस्सा नहीं माना जाता है। पेटा ने दावा किया कि नेस्ले और डैनोन जैसी वैश्विक डेयरी कंपनियां गैर-डेयरी दूध निर्माण में हिस्सेदारी हासिल कर रही हैं।
पेटा ने सुझाव दिया कि अमूल को देश में उपलब्ध 45,000 विविध पौधों की प्रजातियों का उपयोग करना चाहिए और शाकाहारी वस्तुओं के लिए उभरते बाजार का लाभ उठाना चाहिए। इसके बाद मामला काफी गर्मा गया और ट्विटर पर इसे लेकर कई प्रकार के रिएक्शन आने लगे।
हालांकि ट्विटर पर गंभीर प्रतिक्रियाएं देखने के बाद पेटा ने कहा कि यह सिर्फ अमूल को शाकाहारी खपत के मौजूदा रुझानों के बारे में सूचित कर रहा था और एक नया व्यवसायिक विकल्प के लिए प्रोत्साहित करना था।
अमूल ने दिया करारा जवाब
पेटा इंडिया के पत्र पर अमूल के मैनेजिंग डायरेक्टर सोढ़ी ने पलटवार करते हुए जवाब दिया और कहा ‘‘PETA चाहता है कि अमूल 10 करोड़ गरीब किसानों की आजीविका छीन ले और किसानों के साथ मिलकर 75 सालों की कड़ी मेहनक से बनाए अपने सभी संसाधनों को किसी बड़ी एमएनसी कंपनियों द्वारा जेनिटकली मोडिफाई किए गए सोाया उत्पादों के लिए छोड़ दें।
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सोढ़ी ने स्वदेशी जागरण मंच के राष्ट्रीय सह-समन्वयक अश्विनी महाजन के एक ट्वीट को रीट्वीट भी किया है। इस ट्वीट में लिखा है, ”क्या आप नहीं जानते कि ज्यादातर डेयरी किसान भूमिहीन हैं। इस विचार को लागू करने से कईयों की आजीविका का स्रोत खत्म हो जाएगा। ध्यान रहे दूध हमारे विश्वास में है, हमारी परंपराओं में, हमारे स्वाद में, हमारे खाने की आदतों में पोषण का एक आसान और हमेशा उपलब्ध स्रोत है।”
उन्होंने पेटा को जवाब देते हुए आगे लिखा कि 10 करोड़ गरीब डेयरी किसानों में से करीब 70% यानी 7 करोड़ लोग भूमिहीन हैं। उनके बच्चों की स्कूल फीस कौन भरेगा? इतना ही नहीं, कितने लोग फैक्ट्री में केमिकल और सिंथेटिक विटामिन से बने इन महंगे उत्पादों को खरीद पाएगा?
क्या है वीगन मिल्क?
आपको बता दें कि वीगन मिल्क (Vegan Milk) पौधों से बनाए जाने वाला दूध है। यह स्वास्थ्य के लिए काफी फायदेमंद माना जाता है। वीगन मिल्क पशुओं से प्राप्त दूध से काफी अलग होता है। पौधों से बनाए गए इस दूध का स्वाद जानवरों से प्राप्त दूध से अलग होता है और इसमें कम मात्रा में फैट यानी वसा पाया जाता है। अंतर्राष्ट्रीय बाजार में कई कंपनियां वीगन मिल्क का उत्पादन कर रही है।