सीएमसी रिपोर्ट में बताया गया है कि 66 फीसदी सीवेज को शोधन के बगैर नदियों, तलाबों और जलाशयों में बहा दिया जाता है। एसटीपी की शोधित करने के पूरी क्षमता का भी इस्तेमाल नहीं हो रहा है।
एनजीटी के चीफ जस्टिस एके गोयल की अगुवाई वाली पीठ के समक्ष पेश रिपोर्ट में सीएमसी ने कहा है कि 31 राज्यों व केंद्र शासित प्रदेशों के शहरों से प्रतिदिन 53,696 एमएलडी सीवेज निकलता है। इन राज्यों में 1212 सीवेज शोधन सयंत्र के जरिए 29,566 एमएलडी सीवेज शोधन का क्षमता है। लेकिन कुल क्षमता का 62 फीसदी का ही इस्तेमाल हो रहा है। 18330 एमएलडी सीवेज का ही शोधन हो पा रहा है।
कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष सहित 200 के खिलाफ मुकदमा दर्ज, राहुल गांधी ने कहा – मैं किसी से नहीं डरूंगा सीएमसी रिपोर्ट के मुताबिक देशभर में अभी 35,366 एमएलडी यानी 66 फीसदी सीवेज के दूषित पानी को शोधन के बगैर ही नदियों, जलाशायों में बहा दिया जाता है। यही पानी जल प्रदूषण का सबसे बड़ा स्रोत है। इसी की वजह से प्रमुख नदियों का पानी जहरीला हो गया है।
देशभर में विकसित एसटीपी की क्षमता का 100 फीसदी इस्तेमाल न होने के सीएमसी रिपोर्ट में कई गिनाए गए हैं। इनमें तकीनीकी खामी, काफी सालों से अपग्रेड नहीं होना, एसटीपी तक सीवेज का दूषित पानी की पहुंच सुनिश्चित न होना है।
मानकों के अनुरूप नहीं हैं 235 एसटीपी उत्तर प्रदेश, उतराखंड, गुजरात, उड़िसा, छत्तीसगढ़, मणिपुर सहित 10 राज्यों के 235 में से 162 सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट तय मानकों पर काम कर रहा है। जबकि बाकी तय मानकों की अनदेखी करके काम कर रहा है। जो काम कर रहे हैं उसमें में क्षमता का कुशलतम प्रयोग नहीं हो रहा है।
Punjab and Haryana High Court : निजी स्कूल रोजाना ऑनलाइन क्लास देने पर ही ले सकते हैं छात्रों से ट्यूशन फी इस मामले में दिल्ली सबसे आगे सीवेज वाटर को शोधित कर यूज में लाने के मामले में दिल्ली सबसे आगे है। छत्तीसगढ़ में सबसे कम सीवेज का शोधन किया जाता है। दिल्ली में 35 एसटीपी के जरिए 90 फीसदी सीवेज को शोधित किया जाता है। जबकि छत्तीसगढ़ 6 से 8 फीसदी वाटर ही शोधित हो पाता है। सिक्कम 89, गुजरात 83, हरियाणा 82, पंजाब 80 और एमपी में 75 फीसदी है। उत्तर प्रदेश में 76 फीसदी और बिहार में 55 फीसदी सीवेज का शोधन किया जाता है।