नई दिल्ली। हमारे लिए ये सुनना तो आम बात कि जिंदगी की परेशानियों से हार मानकर इंसान तो आत्महत्या करते हैं लेकिन क्या आपने कभी सुना है कि चिडिय़ा भी इंसानों की तरह ही आत्महत्या कर लेते हैं। ये बात सुनने में हैरान भले ही हो लेकिन बता दें कि भारत के असम राज्य के डिमा हसाओ जिले के जटिंगा गांव में बड़ी संख्या में पक्षी आत्महत्या करने के लिए आते हैं। यहां न सिर्फ प्रवासी पक्षी आत्महत्या करने आते हैं बल्कि स्थानीय पक्षी भी ऐसा करते देखे जाते हैं।
यहां पर सामान्यत सितंबर से नवंबर माह के बीच पक्षी आत्महत्या करने को आते हैं। यहां के लोग पक्षियों को ऐसा करते हुए देखा भी है। शाम के छह बजे से लेकर रात के दस बजे तक पक्षियां यहां मौत को गले लगाती है। इसके पीछे दो कारण है एक हैं लोगों की बीच प्रचलित मान्यता और दूसरा पक्षी वैज्ञानिकों द्वारा बताए गए तथ्य।
स्थानीय निवासियों का इस बारे में कहना है कि उनकी गांव पर बुरी आत्माओं का साया है और पक्षियों के रूप में बुरी आत्माएं ही उनके गांव पर हमला करती है। हालांकि पक्षी वैज्ञानिकों का ऐसा कुछ मानना नहीं है बल्कि उनका कहना है कि चिडिय़ा में आत्महत्या की प्रवृत्ति होती ही नहीं है।
बता दें कि साल 1960 के दशक में एक ब्रिटिश भारतीय पर्यावरण प्रेमी एडवर्ड पिचर्ड गी ने सर्वप्रथम इस घटना का उद्घाटन किया। वो मशहूर पक्षी वैज्ञानिक सलीम अली के साथ जटिंगा आए थे।
दोनों ने इस घटना का परीक्षण कर इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि काफी ऊंचाई पर दिशाभ्रम, हवा के तेज़ बहाव और कोहरे के कारण पक्षियों की मौत हो जाती है। ये पक्षी उत्तर दिशा की ओर से आते हैं और जैसे ही शाम ढ़लती है तो ये पक्षी दक्षिणी छोर से आ रही लाइट की ओर जाने का प्रयास करती है और इस चक्कर में वो तेज़ी से उड़ान भरते हैं और घर या फिर चट्टानों से टकराकर दुर्घटना का शिकार हो जाती है।