पंजाब के स्थानीय लोगों और रेलवे विशेषज्ञ का कहना है कि जिस रेलवे क्रासिंग के पास यह हादसा हुआ है वहां दशहरे का मेला 6 साल पहले से लग रहा है इस बात की जानकारी रेलवे के स्थानीय प्रशासन, स्टेशन मास्टर, गेटमैन और वहां से गुजरने वाली ट्रेन ड्राइवरों को जरूर होगी। बावजूद इतना भयानक हादसे में बड़ी संख्या में लोगों की जान चली गई । जानकारों की माने तो गेटमैन को इस बात की जानकारी थी कि दशहरे मेले में आए लोग ट्रैक पर खड़े होकर वीडियो बना रहे हैं इसके बाद भी उसने मैग्नेटो फोन ( हॉट लाइन) से स्टेशन मास्टर को इसकी जानकारी नहीं दी थी, जिससे वहां से गुजरने वाली ट्रेनों को कम रफ्तार पर नहीं चलाया गया। यदि स्टेशन मास्टर ट्रेन चालकों को ट्रेन धीरे चलाने की चेतावनी देता तो शायद हादसा टल सकता था ।
अमृतसर हावड़ा एक्सप्रेस और जालंधर अमृतसर लोकल ट्रेन के ड्राइवरों की भी उतनी ही गलती है जितनी गेटमैन और स्टेशन मास्टर की। दरअसल किसी भी ड्राइवर को यात्री ट्रेनें 8 से 10 साल के अनुभव के बाद ही चलाने को दी जाती हैं। यानी इन ड्राइवरों को पता था कि इस स्थान पर हर साल दशहरे के मेले में खासी भीड़ जुटती है फिर भी दोनों ट्रेनें अपने फुल रफ्तार से वहां से गुजरी। आपको बता दें कि ट्रेन ऑपरेशन मैन्युअल, जनरल रूल और एक्सीडेंट मैन्युअल यह साफ कहता है रेलवे ट्रैक पर किसी तरह की बाधा, इंसान, जानवर आदि नजर आते हैं तो ड्राइवर को न सिर्फ गाड़ी धीरे कर देनी चाहिए । बल्कि रोक देनी चाहिए और इसकी सूचना तुरंत पास के स्टेशन मैनेजर को देनी चाहिए। लेकिन दोनों ड्राइवरों ने इन नियमों का पालन नहीं किया।
रावण दहन के दौरान काल बनकर आई तेज रफ्तार ट्रेन अपने साथ 60 से ज्यादा जिंदगियां ले गई। हादसे के वक्त ट्रेन की न तो रफ्तार कम हुई और ना ही ट्रेन रुकी। दरअसल ड्राइवर की माने तो ट्रेन को हादसे के वक्त वहां रोकना काफी जोखिम वाला काम था। क्योंकि हादसे के तुरंत बाद ट्रेन पर पथराव शुरू हो गया था ऐसे में ट्रेन के अंदर बैठे यात्रियों की जान का भी खतरा बना हुआ था। यही वजह थी कि ट्रेन को घटना स्थल पर नहीं रोका गया।