सत्तारूढ़ भाजपा को आज अगर किसी दल से सबसे अधिक खतरा है तो वह सपा ही है। इस समय भाजपा सरकार की प्रमुख विपक्ष बनकर उभरी सपा विधानसभा चुनाव में कड़ी टक्कर देने की स्थिति में है। ऐसे में अगर ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (एआईएमआईएम) के प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने यूपी में जोर आजमाइश की तो इसका नुकसान सपा सहित उन अन्य दलों को होगा जो कि मुस्लिम वोट बैंक को अपना समझते हैं।
वैसे भी पश्चिमी बंगाल, तमिलनाडु विधानसभा चुनाव में भाग्य अजमाने के बाद असदुद्दीन ओवैसी यूपी में जोर आजमाइश की तैयारी कर चुके हैं। उन्होंने इसकी बकायदा घोषणा भी कर दी है कि पार्टी ने यूपी में 100 सीटों पर चुनाव लड़ेगी। इसी कवायद में ओवैसी अयोध्या सहित तीन जिलों के दौरे पर हैं। बाहुबली और जेल में बंद पूर्व बसपा नेता अतीक अहमद के उनकी पार्टी में शामिल होने से उन्होंने अपने मंसूबे भी जता दिए हैं। ऐसे में उत्तर प्रदेश में ओवैसी फैक्टर किसे नुकसान पहुंचाएगा, यही सबसे बड़ा सवाल है। क्योंकि बिहार के विधानसभा चुनावों (नवंबर 2020) में 5 सीटें जीतकर उन्होंने राजद के मंसूबों को बड़ा झटका दिया था।
22 प्रतिशत मुस्लिम वोटरों से ओवैसी को बड़ी उम्मीद प्रदेश में असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी पहली बार चुनाव लड़ रही है। प्रदेश में मौजूद 21-22 प्रतिशत मुस्लिम वोटरों से उन्हें बड़ी उम्मीद है। इस कारण वे भाजपा पर सीधा हमला बोल रहे हैं और कहा रहे हैं कि “हमारा मकसद प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी को हराना है। हम चुनाव लड़ेंगे भी और जीतेंगी भी। यह जीत उत्तर प्रदेश के मुसलमानों की होगी। मुजफ्फरनगर दंगों में जिन नेताओं का नाम आया था, उनके केस वापस ले लिए गए हैं। उन्होंने कहा कि प्रज्ञा और सेंगर जैसे नेता लोकप्रिय हो जाते हैं लेकिन मुख्तार और अतीक अहमद का नाम आता है तो वह बाहुबली कहलाते हैं।”
साफ है कि ओवैसी मुस्लिम मतदाताओं को लुभाने की कोशिश में हैं। पार्टी को उम्मीद है कि जिस तरह बिहार के सीमांचल में उन्होंने 25 सीटों पर चुनाव लड़कर 5 सीटें हथिया ली थी, वैसा वह उत्तर प्रदेश में भी कर लेंगे। लेकिन पश्चिम बंगाल विधान सभा चुनाव में पार्टी को एक भी सीट नहीं मिली, उससे उन्हें बड़ा झटका भी लगा है। इसलिए यह भी बड़ा सवाल है कि क्या उत्तर प्रदेश के मुस्लिम मतदाता समाजवादी पार्टी और दूसरे दलों का साथ छोड़ ओवैसी का दामन थामेंगे।
मुसलमानों को रिझाने की कोशिश मुसलमानों को रिझाने के लिए ओवैसी, सभी तरह की कोशिश कर रहे हैं। रणनीति के तहत अयोध्या की जगह फैजाबाद का नाम पोस्टर में रखना। इससे कोशिश यही है कि भले ही बाबरी मस्जिद विवाद खत्म हो चुका है और अयोध्या में राम मंदिर का निर्माण हो रहा है लेकिन मुस्लिम मतदाताओं के मन में फैजाबाद के जरिए बाबारी मस्जिद की याद ताजा रहे। इसके अलावा उनकी यही कोशिश है कि प्रदेश में वह मुस्लिम बहुल इलाकों पर ही ज्यादा से ज्यादा फोकस करें। इसीलिए वह जब बहराइच गए थे तो बाले मियां की मजार पर गए थे। और बाद में जौनपुर के गुरैनी मदरसे और आजमगढ़ के सरायमीर में बैतुल उलूम मदरसे पहुंचे थे। इस बार के दौरे में उन्होंने मुस्लिम बहुल इलाकों वाले सुलतानपुर, बाराबंकी और अयोध्या को चुना है।
ओवैसी के यूपी में एंट्री से तमतमाई सपा और बसपा वहीं ओवैसी के यूपी में एंट्री से सपा और बसपा तमतमाई हुई हैं। एक तरफ जहां सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव ओवैसी को भाजपा का एजेंट बता रहे हैं तो वहीं दूसरी ओर बसपा सुप्रीमो मायावती ने भी ओवैसी को मौका परस्त नेता बताया है। पूर्व मुख्यमंत्री मायावती ने कहा कि ओवैसी जहां-जहां जा रहे हैं वहां नकारे जा रहे हैं। उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव में उनकी और अधिक दुर्गति होने वाली है।