यह दर्द किसी एक छात्रा या अध्यापिका का नहीं, बल्कि उन सभी का है, जिन्हें सप्ताह में छह दिन गांव के बाहरी हिस्से में बने स्कूल में जाना पड़ता है। स्कूल में मॉडल शौचालय का निर्माण तो हो गया, लेकिन छात्रएं और अध्यापिकाएं उसका प्रयोग नहीं कर सकतीं। अध्यापिकाओं ने समस्या को महकमे के अफसरों के सामने रखा तो शौचालय के लिए 35 हजार रुपये आवंटित भी कर दिए और निर्माण भी शुरू हुआ, लेकिन अचानक शिक्षा अधिकारियों ने निर्माण पर रोक लगा दी। तर्क दिया कि मॉडल शौचालय का प्रयोग ही किया जाए। लेकिन जब शाचालय पर ताला लटके होने की शिकायत उन से की गई तो अधिकारियों की जुबां खामोश हो गई। कई छात्रओं ने बताया कि स्कूल के पास निर्माणधीन इंटर कॉलेज है। वहां लघुशंका आदि के लिए जाती हैं। कई बार मनचले छिपे खड़े रहते हैं। बचकर खेत में जाते हैं तो वहां सांप-नेवले व अन्य जीव-जन्तुओं को काटने का डर सताने लगता है।
खामोश हैं योगी के अफसर
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ कहते हैं कि बहू-बेटियों के सम्मान और सुरक्षा के साथ कोई खिलवाड़ नहीं होने दिया जाएगा, लेकिन टांडा में छात्रओं के सामने दोनों ही चुनौतियां है। सरकारी अफसरों के रूप में यहां बीडीओ से लेकर डीएम तक की फौज है, लेकिन शौचालय पर पड़ा ताला कोई नहीं खुलवा पा रहा है। मामला मीडिया में आते ही खण्ड शिक्षा अधिकारी अब जल्द ही ताला खुलवाने की बात कह रहे हैं। इस मामले बड़ा सवाल ये है कि आखिर ये अधिकारी मीडिया के कैमरे देखकर ही क्यों जागते हैं। उससे पहले इनकी नींद क्यों नही टूटी।
घर-घर शोचालय की बात साथ ही एक फिल्म भी बनी “टॉयलेट एक प्रेम कथा” लेकिन क्या घर-घर शोचालय का सपना दिखाने वाली सरकार खुद सरकारी महकमो के शोचालयो पर भी नज़र डालेगी या पीएम के सपने पर पानी डालकर आँख मूंदी बैठी रहेगी |