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मेरठ

विक्टोरिया पार्क अग्निकांडः 12 साल पहले का हादसा याद आने पर कांप गर्इ रूह, नम हो गर्इ आंखें!

मेरठ में 12 साल पहले हुए अग्निकांड की बरसी पर शांति यज्ञ, भंडारा आैर कैंडल मार्च निकाला गया
 

मेरठApr 10, 2018 / 05:35 pm

sanjay sharma

meerut
मेरठ। मंगलवार को विक्टोरिया पार्क अग्निकांड को 12 साल पूरे हो गए। यहां 10 अप्रैल 2006 को लगे तीन दिवसीय कंज्यूमर मेले के आखिरी दिन हुए अग्निकांड में 65 लोगाें की मौत हुर्इ थी आैर 161 लोग घायल हो गए थे। इस हादसे में मृतकों को श्रद्धांजलि देने के लिए अग्निकांड की बरसी पर काफी लोग इकट्ठा हुए। सुबह के समय यहां शांति यज्ञ हुआ आैर इसके बाद भंडारा हुआ। हादसे से जुड़े घायलों समेत बरसी पर वे तमाम लोग शामिल हुए, जिन्होंने विक्टोरिया पार्क अग्निकांड को करीब से देखा था।
यहां पहुंचे जन प्रतिनिधियों, विभिन्न संगठनों के लोग मृतकों की आत्मा की शांति के लिए श्रद्धांजलि देने पहुंचे। कार्यक्रम में मृतकों के परिजन आैर घायलों ने आपस पर बैठकर एक-दूसरे के हालचाल पूछे, लेकिन 12 साल पहले हादसे का जिक्र होते ही इनकी रूह कांप गर्इ आैर आंखें नम हो गर्इ। अपनों को याद करते हुए इन्होंने श्रद्धांजलि दी आैर कंज्यूमर मेले के आयोजकों पर जमकर गुस्सा भी दिखाया। मृतक आश्रितों आैर 181 घायलों को अभी तक पूरा मुआवजा नहीं मिला है। सुप्रीम कोर्ट में मुआवजे पर फैसला छह महीने से सुरक्षित है। अभी तक राज्य सरकार की आेर से इन्हें सात-सात लाख रुपये की धनराशि मिली है। जबकि घायलों को अपने इलाज में पिछले 12 वर्षों में लाखों रुपये खर्च करने पड़े हैं। मेरठ विक्टोरिया पार्क अग्निकांड आहत कल्याण समिति के महामंत्री संजय गुप्ता का कहना है कि इस अग्निकांड से आहत हुए लोग इंसाफ चाहते हैं, तब तक वे प्रयास करते रहेंगे। बरसी पर शाम को कैंडल मार्च भी निकाला गया।
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इनके जेहन में जिंदा है 10 अप्रैल की वह शाम

विक्टोरिया पार्क मैदान में तीन दिवसीय कंज्यूमर इलेक्ट्रॉनिक्स मेले के अंतिम दिन मेला खत्म होने के 15 मिनट पहले ही मेला समेटने की तैयारी ही थी, उस समय यहां लगाए गए पंडाल में 3000 से ज्यादा लोग थे, उस दिन गर्मी भी बहुत थी। तभी शॉर्ट सर्किट या फिर कुछ और कारण से उठी चिंगारी लोहे के फ्रेम पर प्लास्टिक की चादरों पर ऐसे गिरी कि सेकेंडों में पंडाल के अंदर हा-हाकार मच गया। तब किसी को कुछ समय नहीं आया कि क्या हुआ, धुएं के साथ पंडाल में आग फैलती जा रही थी। साथ ही प्लास्टिक का पंडाल उपर से पिंघल रहा था। यहां भगदड़ मच गई। सब मेन गेट की ओर भागे। काफी लोग अंदर रह गए आैर बाहर भी आए। मेले के आयोजन में आग से सुरक्षा के इंतजाम नदारद थे। अंदर से जो लोग आग की लपटें लिए आ रहे थे, उन्हें कहीं न कहीं ठंडक चाहिए थी। कोई गोबर में जा घुसा, कोई लपटें लिए दर्द से दौड़ रहा था, तो कोई मिट्टी या रेत तलाशते हुए बार-बार गिर-उठ रहा था। आसपास के लोग भी तब तक यहां पहुंच गए थे, जिससे जो मदद हो सकती थी उसने की। इस मेला का स्थान पुलिस लाइन से 100-150 मीटर भी नहीं, इसके बावजूद मदद के लिए जब तक पहुंचते, बहुत देर हो चुकी थी। घायलों को अस्पतालों में पहुंचाया गया, लेकिन सभी में बर्न चिकित्सा नहीं थी। इनके लिए ये व्यवस्था थोड़ी थी। किसी तरह इनका ट्रीटमेंट किया गया।
पंडाल के अंदर जिन लोगों ने मौके पर ही दम तोड़ दिया था, लोगों को अपने पहचानने मुश्किल हो गए थे। इसमें 64 की मौत हुई, जबकि 161 लोग घायल हुए, जिनमें से 81 को गंभीर घायल थे। बाद में एक की मौत आैर होने से मरने वालों की संख्या 65 पहुंच गर्इ। इस घटना के बाद से मेले के तीनों आयोजकों और जिला प्रशासन व पुलिस के खिलाफ गुस्सा फूट पड़ा। जगह-जगह विरोध और जाम हुए। घटना के बाद यहां मलवा हटवाने के लिए चलवाए बुल्डोजर से कलेक्ट्रेट में भी तोड़फोड़ की गई।

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