भाजपा कार्यसमिति बैठक में विपक्ष पर जमकर बरसे भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा
जर्मनी में 2013 में जूनियर विश्व कप में भारतीय टीम को कांस्य पदक दिलाने में वंदना की अहम भूमिका थी। वंदना ने टूर्नामेंट के चार मैचों में पांच गोल दागकर अपनी प्रतिभा साबित की थी। वंदना का कहना है कि उस जीत के बाद जब उनके पिता मीडिया के सामने खड़े हुए तो उनकी आंखों से आंसू बंद ही नहीं हो रहे थे। पिता की आंखों में खुशी के आंसू थे। ऐसा इसलिए क्योंकि परिवार में एकमात्र पिता नाहर सिंह ही थे जो वंदना के हॉकी खेलने के पक्ष में थे। परिवार से छिपाकर लखनऊ हॉस्टल में प्रवेश दिलाने ले गए थे। करीब दो महीने पहले पिता के गुजर जाने से वंदना बेहद आहत हैं लेकिन उनमें पिता के सपने को पूरा करने का जज्बा अभी बाकी है। माता रोहण देवी सहित पूरा परिवार उन्हें इस सपने को पूरा करने को प्रेरित करता है।मूल रूप से उत्तराखंड के रोशनाबाद की रहने वाली वंदना कटारिया ने हाकी की शुरुआती प्रशिक्षण मेरठ के एनएएस कालेज स्थित हाकी मैदान पर कोच प्रदीप चिन्योटी के मार्गदर्शन में किया। प्रदीप ने वंदना को एक प्रतियोगिता के दौरान रोशनाबाद में देखा था और वहां के हाकी कोच स्वर्गीय केके ने वंदना और उनकी बहन को मेरठ में प्रशिक्षण के लिए भेजा था। वंदना ने मेरठ में साल 2004 से 2006 तक रहने के दौरान हाकी सीखी और जिले से लेकर प्रदेश स्तर की प्रतियोगिताओं में हिस्सा लिया। साल 2007 के शुरुआत में वंदना का चयन लखनऊ हास्टल में हुआ।