मयदानव के परिजनों का पूजा केंद्र मान्यता है कि इस काली के इस सिद्धपीठ में मयदानव के परिजन पूजन करने के लिए आते थे। खुद मयदानव देवी के पूजा के लिए यहां पर आया करते थे। मंदिर को पांच सौ साल पूर्व पश्चिम बंगाल से आए पुजारी ने देखभाल के लिए संभााला। इसके बाद से इस मंदिर की पूजा और इसकी देखभाल बंगाली परिवार ही करते हैं। मंदिर में रामनवमी और दशमी के दिन होने वाली विशेष पूजा काली मंदिर के आकर्षण का केंद्र रहती है। मंदिर में चालीस साल से पूजा करने आ रहे प्रीत कहते हैं कि वे प्रतिदिन मंदिर में आते हैं और देवी ने उनकी हर इच्छा पूरी की है।
नवरात्र के दिनों में दी जाती है बलि मंदिर में काली मां के पास बैठी मोनिका कहती हैं कि वे यहां पर बचपन से ही आ रही है। ये उनका मायका है। उन्होंने बताया कि ये देवी का एकमात्र सिद्धपीठ है, जहां पर मेघनाद के नाना पूजा करने आया करते थे। इस मंदिर में नवरात्र के अवसर पर विशेष पूजा की जाती है। मंदिर में नवरात्र के मौके पर बलि दी जाती है। उन्होंने बताया कि मां काली अपने भक्तों की मुराद जरूर पूरी करती हैं। इनसे जो भी मांगों, वह पूरा होता है।
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