इसके पीछे यह कहानी स्वतंत्रता सेनानी धर्म दिवाकर इस प्रभात फेरी के शुरु होने से लेकर अब तक गवाह रहे हैं। उम्र बढ़ने के बावजूद वह इसमें जरूर शामिल होते हैं। उन्होंने बताया कि देश को स्वतंत्रता मिलने के करीब 15 साल पहले से महत्वपूर्ण मौकों पर प्रभात फेरी शुरू करने का फैसला लिया गया था। इसमें शहर आैर आसपास के गांवों के युवक आैर बुजुर्ग शामिल होते थे। सुबह छह बजे इस प्रभात फेरी गांधी आश्रम से निकलने का समय होता था, उसका समय आज भी वही है। इसमें शामिल लोग आजादी के लिए तराने गाते थे। साथ ही लोगों को जोड़ने के लिए ‘अब रैन कहां जो सोवत है, जो सोवत है वो रोवत है’ जैसी लाइनें सुनाकर लोगों में ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ जोश भरते थे। उन्होंने बताया कि मेरठ में आजादी की सभाआें से अलग प्रभात फेरी एक एेसा माध्यम थी, जिसमेंसबसे ज्यादा लोग आसपास के लोग एकत्र हाेते थे आैर अपने विचार रखते थे आैर तब शहर में प्रभात फेरी निकाली जाती थी।
यह हुआ था पहले गणतंत्र दिवस पर वयोवृद्ध धर्व दिवाकर ने बताया कि पहले गणतंत्र दिवस पर उस दिन सबसे अलग माहौल था। गांधी आश्रम से बच्चा पार्क स्थित प्यारेलाल शर्मा स्मारक तक प्रभात फेरी निकाली गर्इ। इसमें हर धर्म, हर वर्ग के लोग शामिल हुए। सुबह सात बजे यहां झंडारोहण के बाद सभी लाेग एक-दूसरे से मिले। इसमें पंडित गौरी शंकर, प्रकाशवती सूद, जगदीश शरण रस्तोगी, शांति त्यागी कैलाश प्रकाश, रतनलाल गर्ग, कमला चौधरी, मुसद्दीलाल, आचार्य दीपांकर, रामस्वरूप शर्मा समेत कर्इ सम्मानित लोग शामिल हुए। शहर में कर्इ जगह तोरण द्वार बनाए गए थे आैर रैलियां निकाली गर्इ थी। बच्चों ने स्कूलों में अनेक देशभक्ति व सांस्कृतिक कार्यक्रम प्रस्तुत किए, यह परंपरा आज तक कायम है। उस दिन पूरे शहर में सजावट की गर्इ थी। उन्होंने कहा कि स्वतंत्रता दिवस से ज्यादा पहले गणतंत्र दिवस पर ज्यादा हर्षोल्लास देखा गया था, क्योंकि आजादी का जश्न मनाने के समय देश के बंटवारे की वेदना थी।