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मेरठ

यूपी के इस शहर में मुस्लिम महिलाआें ने उठायी फतवों के खिलाफ आवाज, कही ये बड़ी बातें

मुस्लिम महिलाआें ने कहा कि फतवा मजहब के आधार पर दी जाने वाली रायभर है, थोपी नहीं जा सकती
 

मेरठAug 03, 2018 / 05:27 pm

sanjay sharma

meerut

यूपी के इस शहर में मुस्लिम महिलाआें ने उठायी फतवों के खिलाफ आवाज, कही ये बड़ी बातें

मेरठ। फतवा का मतलब मजहब के आधार पर दी जाने वाली राय भर है। यह न तो फर्ज, न बन्धन और न ही हुक्मनामा है। इन्हें हम किसी पर जबरदस्ती थोप नहीं सकते हैं। जबसे दारूल उलूम से आनलाइन फतवे का सिलसिला शुरू हुआ है तबसे अब तक डेढ़ लाख से अधिक फतवे जारी हो चुके हैं। जिनमें पोलियो ड्राप पर, अरब में डिजिटल हो रहे हैं और सबका साथ-सबका विकास की राह पर बढ़ रहे हैं और दूसरी ओर फतवों की वजह से भी गुमराही भी झेल रहे हैं। यह कहना है मुस्लिम महिला मंच की शाहिन परवीन का। फतवा और उसकी महत्ता को लेकर एक कार्यक्रम उनके आवास पर आयोजित हुआ। जिसमें जारी होने वाले फतवों को लेकर चर्चा की गई। इसमें सैकड़ों मुस्लिम महिलाओं ने भाग लिया।
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बैंकर से शादी नहीं करने का फतवा

उन्हाेंने कहा कि अभी कुछ दिन पहले एक फतवा जारी किया गया था कि बैंकर से शादी न करें क्योकि इस्लाम व अन्य धर्मों में सूदखोरी ठीक नहीं है, लेकिन क्या यह फतवा सही है। उन्होंने कहा कि आज अधिकांश मुसलमान इस राय से इत्तेफाक नहीं रखते क्योंकि आज के दौर में किस समाज के खाते बैंक में नहीं हैं, वे कर्ज नहीं लेते या ब्याज का लेनदेन नहीं करते अथवा एफडी नहीं करते। यह तो मुनाफा हैै। बदलते वक्त में जागरूकता की रोशनी उच्च एवं मध्यम आय वर्ग से निम्न आय वर्ग तक पहुंच रही है। इसलिए तीन तलाक का मामला गांव कस्बों से अधिक आ रहे हैं।
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फतवों की सियासत तरक्की में बाधा

उन्होंने कहा कि हमें समझना चाहिए कि मुफ्ती हजरात की राय केवल इस्लामी रोशनी में होती है। तबके के नौजवानों में यह सोच बढ़ रही है कि फतवों की सियासत उनकी रोजमर्रा की जिंदगी और समूची जमात की तरक्की के आड़े आ रही है।
सऊदी में बदलाव की बयार तो यहां क्यो नहीं

शाहिन ने कहा कि इसी के मद्देनजर सऊदी अरब सरकार ने उदारवादी नजरिया अपनाकर महिलाओं को कार चलाने की, स्टेडियम में मैच खेलने की (पहले दोनों ही तरह की आजादी मुस्लिम महिलाओ को नहीं थी) इजाजत दी और सऊदी शाह सलमान ने खेल अथारिटी की स्थापना करके विश्व भर के विद्वानों द्वारा हालात के मद्देनजर शरीयत की रोशनी में कुछ मुद्दों पर विचार करने की सहूलियत प्रदान की है। 21 वीं सदी के इस दौर में इनसे इन्तसार और सीख लेकर अन्य इस्लामी संस्थाएं और मुल्क भी इस दिशा में आगे बढ़ रहे हैं, जो कि एक अच्छी शुरुआत है।

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