बेटे को मानती हैं बालाजी और श्रीकृष्ण की देन अफरोज बताती हैं उनके जीवन में काफी परेशानियां चल रही थीं। वे जिस बस्ती में रहती हैं वो हिंदू-मुस्लिम की मिलीजुली बस्ती है। इसी बस्ती में रहने वाले कुछ लोग बालाजी जा रहे थे। उन्होंने अफरोज से कहा कि वे भी चलें। बालाजी उनकी मनोकामना पूरी करेंगे। अफरोज ने अपनी मन्नत एक कागज पर लिखकर बालाजी और मथुरा कृष्ण के पास भिजवा दी। अफरोज कहती हैं उसके बाद से तो उनकी जिंदगी में चमत्कार हो गया। वे अब हर साल बालाजी और मथुरा कृष्ण के दर्शन करने जाती हैं।
घर में एक तरफ कुरान है तो दूसरी तरफ श्रीकृष्ण भगवान अफरोज के इबादतगाह में एक तरफ कुरान है तो दूसरी ओर कृष्ण की सुंदर मूर्ति रखी हुई है। जिसकी वे रोज पूजा करती हैं। अफरोज का कहना है कि उनकी भक्ति के आड़े कभी मजहब की दीवार नहीं आई। वे ईद मनाती है तो जन्माष्टमी भी उसी उत्साह और श्रद्धा के साथ मनाती हैं। जन्माष्टमी के दिन वे अपने घर में सजावट करती हैं। वे अपने बेटे को कृष्ण का अवतार मानती हैं। उनको कहना है कि बेटा भगवान कृष्ण और बालाजी की देन हैं। बेटा होने के बाद वे बालाजी गईं थी और वहां पर उद्यापन भी किया था।