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मेरठ

देश को राष्ट्रीय एकता की कड़ी में जोड़ती है हिंदी: हरिओम पंवार

हिंदी दिवस के अवसर पर महान कवि हरिओंम पंवार के साथ विशेष बातचीत
हरिओम पंवार ने कहा है कि देश के सभी सरकारी कार्यालयों में हिंदी काम हाे

मेरठSep 14, 2020 / 04:43 pm

shivmani tyagi

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हरिओम पंवार

मेरठ ( केपी त्रिपाठी ) कवि हरिओम पंवार किसी परिचय के मोहताज नहीं। अपनी कविताओं के माध्यम से देश के युवाओं के हदय को झकझोक कर रख देने वाले हरिओम पंवार ने हिंदी दिवस ( Hindi Divas ) पर पत्रिका के साथ राष्ट्रीय भाषा हिंदी के बारे में खुलकर बातें की। पेश हैं उन्हीं बातचीत के कुछ अंश


रिपाेर्टर : नई शिक्षा नीति लागू होने के बाद यह पहला हिंदी दिवस है। देश के कई राज्य केंद्र पर हिंदी थोपने का आरोप लगा रहे हैं। बालकृष्ण शर्मा ‘नवीन’ ने कहा था ‘राष्ट्रीय एकता की कड़ी हिंदी ही जोड़ सकती है।’ कैसे जुड़ेगी राष्ट्रीय एकता की कड़ियां ?

हरिओम पंवार : हिंदी शुरू से ही राष्ट्रीय एकता की पहचान रही है। नई शिक्षा नीति में हिंदी को अधिक महत्व दिया गया है। यह बहुत पहले होना चाहिए था। हिंदी राष्ट्र भाषा है। इसलिए इसको सभी राज्यों में अनिवार्य किया जाना चाहिए। देश को राष्ट्रीय एकता की कड़ी में जोड़ने वाली हिंदी ही है।

रिपाेर्टर: सरकारी कामकाज में हिंदी को प्राथमिकता देना लोकतंत्र को मजबूत करने के लिए जरूरी माना जाता है। लोकतंत्र के हित में यह सपना कब साकार होगा ?
हरिओम पंवार : बेशक सरकारी कामकाज में राष्ट्रीय भाषा को ही प्राथमिकता देनी चाहिए। इससे लोकतंत्र तो मजबूत होता ही साथ ही राष्ट्रीय भाषा का प्रचार-प्रसार भी होता है। आज किसी भी देश में चले जाइए। वहां पर सभी सरकारी कामकाज उस देश की राष्ट्रभाषा में ही होता है। देश में भी सभी सरकारी कार्यालयों में कामकाज हिंदी में ही होना चाहिए। आखिर हमारी पहचान हिंदी से ही है।

रिपाेर्टर : हिंदी का विकास कैसे संभव है ? जबकि हिंदी के सरकारी शब्दकोशों में कई शब्द ऐसे हैं जो व्यावहारिक ही नहीं हैं ?

हरिओम पंवार : ये सौ फीसदी सही है कि एक राष्ट्रभाषा होने के बाद भी देश में इसको वो दर्जा नहीं मिला जो कि मिलना चाहिए था। हिंदी उत्तरी भारत के कुछ राज्यों तक सिमट कर रह गई है। आप दक्षिण चले जाइए, उत्तर पूर्व की ओर चले जाइए या अन्य किसी राज्य में वहां हिंदी की क्या गति है आपको पता चल जाएगी। हिंदी के शब्दकोशों और इसकी गुणवत्ता के लिए केंद्रीय हिंदी संस्थानों की स्थापना हुई थी। यहां हिंदी के शब्दों पर शोध चलते रहते हैं। अंग्रेजी जैसी भाषा से चार गुना बड़ा हिंदी शब्दकोश है। मैं इसको नहीं मानता कि हिंदी के शब्दकोशों में जो शब्द हैं वो व्यावहारिक नहीं हैं। हिंदी और उर्दू दोनों एक दूसरे की पूरक हैं। हिंदी के शब्दकोश में कुछ शब्द ऐसे हैं जो कि उर्दू का बोध कराते हैं।

रिपाेर्टर : इंटरनेट के दौर में हिंदी के विकास के लिए भाषा को कितना लचीला रुख अपनाना चाहिए और कितना सख्त ?

हरिओम पंवार : इंटरनेट क्या जब कम्प्यूटर युग की शुरूआत हुई थी तब से माना जाने लगा था कि हिंदी अब समाप्त हो जाएगी और सभी काम अंग्रेजी में ही होंगे लेकिन कम्प्यूटर और इंटरनेट के दौर में हिंदी को और बढावा ही मिला है। इंटरनेट से हिंदी का विकास ही हुआ है। इसके माध्यम से हिंदी उन क्षेत्रों तक भी पहुंची है जहां इसका पहुंचना असंभव था।

रिपाेर्टर : हिंदी के साथ इसकी सहायक भाषाओं या बोलियों को समृद्ध बनाने की दिशा में सरकार के स्तर पर क्या पहल हो ?

हरिओम पंवार : सबसे पहले तो अपनी राष्ट्रभाषा को ही मजबूत किया जाए। यह काम भाजपा सरकार में हुआ है। सरकारी कामकाजों में हिंदी के प्रयोग में तेजी आई है। आज देश के प्रधानमंत्री से लेकर मुख्यमंत्री तक हिंदी में ही भाषण देते हैं। विदेश में भी प्रधानमंत्री ने हिंदी में भाषण देकर देश और हिंदी दोनों का मान बढाया है। दूसरी क्षेत्रीय भाषाएं या कहें कि हिंदी की सहायक बोलियों को समृद्ध करने की ओर राज्य सरकारों को पहल करनी चाहिए। तभी क्षेत्रीय भाषाओं को भी पहचान मिलेगी।

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