रिपाेर्टर : हिंदी का विकास कैसे संभव है ? जबकि हिंदी के सरकारी शब्दकोशों में कई शब्द ऐसे हैं जो व्यावहारिक ही नहीं हैं ?
हरिओम पंवार : ये सौ फीसदी सही है कि एक राष्ट्रभाषा होने के बाद भी देश में इसको वो दर्जा नहीं मिला जो कि मिलना चाहिए था। हिंदी उत्तरी भारत के कुछ राज्यों तक सिमट कर रह गई है। आप दक्षिण चले जाइए, उत्तर पूर्व की ओर चले जाइए या अन्य किसी राज्य में वहां हिंदी की क्या गति है आपको पता चल जाएगी। हिंदी के शब्दकोशों और इसकी गुणवत्ता के लिए केंद्रीय हिंदी संस्थानों की स्थापना हुई थी। यहां हिंदी के शब्दों पर शोध चलते रहते हैं। अंग्रेजी जैसी भाषा से चार गुना बड़ा हिंदी शब्दकोश है। मैं इसको नहीं मानता कि हिंदी के शब्दकोशों में जो शब्द हैं वो व्यावहारिक नहीं हैं। हिंदी और उर्दू दोनों एक दूसरे की पूरक हैं। हिंदी के शब्दकोश में कुछ शब्द ऐसे हैं जो कि उर्दू का बोध कराते हैं।
रिपाेर्टर : इंटरनेट के दौर में हिंदी के विकास के लिए भाषा को कितना लचीला रुख अपनाना चाहिए और कितना सख्त ?
हरिओम पंवार : इंटरनेट क्या जब कम्प्यूटर युग की शुरूआत हुई थी तब से माना जाने लगा था कि हिंदी अब समाप्त हो जाएगी और सभी काम अंग्रेजी में ही होंगे लेकिन कम्प्यूटर और इंटरनेट के दौर में हिंदी को और बढावा ही मिला है। इंटरनेट से हिंदी का विकास ही हुआ है। इसके माध्यम से हिंदी उन क्षेत्रों तक भी पहुंची है जहां इसका पहुंचना असंभव था।
रिपाेर्टर : हिंदी के साथ इसकी सहायक भाषाओं या बोलियों को समृद्ध बनाने की दिशा में सरकार के स्तर पर क्या पहल हो ?
हरिओम पंवार : सबसे पहले तो अपनी राष्ट्रभाषा को ही मजबूत किया जाए। यह काम भाजपा सरकार में हुआ है। सरकारी कामकाजों में हिंदी के प्रयोग में तेजी आई है। आज देश के प्रधानमंत्री से लेकर मुख्यमंत्री तक हिंदी में ही भाषण देते हैं। विदेश में भी प्रधानमंत्री ने हिंदी में भाषण देकर देश और हिंदी दोनों का मान बढाया है। दूसरी क्षेत्रीय भाषाएं या कहें कि हिंदी की सहायक बोलियों को समृद्ध करने की ओर राज्य सरकारों को पहल करनी चाहिए। तभी क्षेत्रीय भाषाओं को भी पहचान मिलेगी।