पुरातत्वविदों के उत्खनन से पता चला है कि हस्तिनापुर की प्राचीन बस्ती करीब 1000 ईसा पूर्व से पहले की थी, जो कई सदियों की साक्षी रही। वहीं, दूसरी बस्ती करीब 90 ईसा पूर्व बसाई गई, जो 300 ईसा पूर्व तक रही। इसके बाद तीसरी बस्ती 200 ईसा पूर्व से 200 ईस्वी तक थी। जबकि अंतिम बस्ती 11वीं से 14वीं शती तक रही। अब भी उत्खनन के दौरान इन बस्तियों के अवशेष मिलते रहते हैं। यहां प्राचीन हस्तिनापुर के अवशेष की भरमार है। यहां पांडवों का विशालकाय एक किला आज भी भूमि में दफन है, जो देखरेख के अभाव में नष्ट हो रहा है। इसी किले के भीतर पांडवों का महल और मंदिर के साथ अन्य अवशेष भी हैं।
यह भी पढ़ें- पांडवों ने स्वीकार किया था जैन धर्म हस्तिनापुर को जैन तीर्थस्थल के रूप में भी जाना जाता है। कहते हैं कि यहां के एक जैन मंदिर में एक बड़ी पेंटिंग लगी है, जिसमें पांचों पांडवों के साथ द्रोपदी जैन धर्म की दीक्षा लेते नजर आ रहे हैं। अगर आप भी यहां जाएंगे तो यह पेंटिंग आपको हैरान कर सकती है। पेंटिंग देखते ही आपके मन सवाल आएगा कि आखिर पांडवों ने जैन धर्म कब स्वीकार किया। जब हमने पेंटिंग को लेकर मंदिर के पुजारी से पूछा तो उन्होंने बताया कि पांचों पांडवों ने द्रोपदी के साथ जैन धर्म स्वीकार किया था। यह उसी का चित्रण है। उन्होंने यह भी बताया कि जैन धर्मशास्त्र के अनुसार, महाभारत में भी जैन धर्म के 22वें तीर्थांकर थे, जिनका नाम नेमी था। नेमी रिश्ते में श्री कृष्ण के भाई थे। जैन वर्ल्ड डॉट कॉम वेबसाइट पर इस संबंध में काफी जानकारी मौजूद है।
हस्तिनापुर के जैन मंदिर हस्तिनापुर आज भी राजसी ठाठ-बाट, भव्यता और महाभारत के पांडवों और कौरवों की रियासतों के साथ धार्मिक स्थलों को समेटे है। यहां विदुर टीला, पांडेश्वर मंदिर, द्रोणादेश्वर मंदिर, कर्ण मंदिर, बारादरी, द्रौपदी घाट और कामा घाट जैसे स्थल मौजूद हैं। वर्तमान में हस्तिनापुर जैन श्रद्धालुओं का प्रमुख तीर्थस्थल है। यहां वास्तुकला के अद्भुत उदाहरण देखने को मिलते हैं। यहां जम्बुद्वीप जैन मंदिर, प्राचीन दिगंबर जैन मंदिर, अस्तपद जैन मंदिर, श्वेतांबर जैन मंदिर और श्री कैलाश पर्वत जैन मंदिर आदि प्रमुख हैं। जंबुद्वीप में सुमेरू पर्वत और कमल मंदिर मंदिर श्रद्धालुओं के आर्कषण के प्रमुख केंद्र हैं। यहां सैफपुर कर्मचनपुर स्थित गुरुद्वारा सिखों का प्रमुख तीर्थ स्थल है। यहीं पंच प्यारे भाई धर्म सिंह का जन्म हुआ था, जो गुरु गोविंद सिंह के शिष्य थे।
वन्यजीव संरक्षण के लिए भी प्रसिद्ध धार्मिक और एतिहासिक के साथ हस्तिनापुर वन्यजीव संरक्षण के लिए भी प्रसिद्ध है। हस्तिनापुर अभ्यारण्य में वनस्पति की विभिन्न प्रजातियों मौजूद हैं, जो यहां आने वाले पर्यटकों का मन मोह लेती हैं। यही वजह है कि हस्तिनापुर वन्यजीव पर्यटन और ईको-टूरिज्म का भी केंद्र है। हस्तिनापुर में पर्यटकों के रहने और खाने के भी बेहतर इंतजाम हैं। वन विभाग और पीडब्लूडी का गेस्ट हाउस भी काफी अच्छा है। जहां रुकने की अच्छी व्यवस्था है।
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