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मेरठ

चार महीने पहले भाजपा के इस कद्दावर नेता ने दी थी यह सलाह, इस पर काम नहीं हुआ तो मिल रही हार!

भाजपा के पूर्व प्रदेशाध्यक्ष डा. लक्ष्मीकांत वाजपेयी की सलाह थी- सत्तारुढ़ दल नहीं बनना होगा, सड़क की लड़ार्इ लड़नी होगी
 

मेरठMar 29, 2018 / 03:46 pm

sanjay sharma

meerut
मेरठ। चार महीने होने को आए, लेकिन भाजपा संगठन के लोग अपने वरिष्ठों की सलाह को नजरअंदाज कर रहे हैं। यही वजह है कि भाजपा को हर बार हार का सामना करना पड़ रहा है। पिछले साल एक दिसंबर को मेरठ निकाय चुनाव में भाजपा की मजबूत उम्मीदवार कांता कर्दम का हारना, इसी चुनाव में जनपद की नगर पंचायत व नगर पालिका के कुल 16 अध्यक्ष पद में से एक उम्मीदवार का जीतना, उसके बाद गोरखपुर व फूलपुर उपचुनाव में भाजपा उम्मीदवारों की हार के बाद मेरठ में नगर निगम कार्यकारिणी के चुनाव में भाजपा को सपा-बसपा से पटखनी मिली तो अब जिला योजना समिति चुनाव में भाजपा को मुंह की खानी पड़ी है। सपा-बसपा के संयुक्त मोर्चा को सभी 14 सीटें मिली हैं। भाजपा को प्रदेश मेरठ समेत कर्इ हिस्सों से जिस तरह हार का सामना करना पड़ रहा है, उससे लगता है कि संगठन वाकर्इ सत्तारुढ़ संगठन बन गया है आैर संगठन के नेता आैर कार्यकर्ता सड़क पर लड़ार्इ लड़ने के मूड में नहीं हैं।
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डा. लक्ष्मीकांत ने दी थी यह सलाह

पिछले साल निकाय चुनाव के ठीक बाद भाजपा के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष व पूर्व विधायक डा. लक्ष्मीकांत वाजपेयी से बात हुर्इ थी तो उन्होंने मेयर पद पर भाजपा उम्मीदवार कांता कर्दम के नहीं जीतने पर हार स्वीकार करते हुए अपने संगठन को सलाह दी थी। डा. वाजपेयी ने कहा था कि इस हार से हमें सीखने को मिला है। अब हमें सत्तारुढ़ दल बनकर नहीं रहना है, बल्कि सड़क की लड़ार्इ लड़नी होगी। जो कमियां हैं, उन्हें दूर करनी होगी। संगठन को इस पर बैठकर विचार करने की जरूरत है।
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नहीं हुआ काम, मिल रहीं पराजय

भाजपा के स्थानीय नेता आैर कार्यकर्ता ने चार महीने पहले मिली इस सलाह पर कितना काम किया, यह लगातार पराजय मिलने से जाहिर है। पहले नगर निगम कार्यकारिणी चुनाव आैर जिला योजना समिति चुनाव में भाजपा को करारी हार मिली है। मतलब भाजपा नेता व कार्यकर्ताआें में सत्तारूढ़ संगठन होने की खुमारी चढ़ी हुर्इ है आैर सड़क की लड़ार्इ तो दूर एक मंच पर जनपद के सारे भाजपाा नेता एकट्ठे हो जाएं, वही गनीमत है, क्योंकि प्रदेश में भाजपा सरकार बनने के बाद से यहां भाजपा नेताआें में ग्रुप पाॅलिटिक्स हावी हो गर्इ है आैर हर ग्रुप दूसरे से आगे निकलना चाहता है।

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