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डीएफओ मेरठ राजेश कुमार ने बताया कि प्रधान मुख्य वन संरक्षक वन्य जीव उत्तर प्रदेश से प्राप्त निर्देशों के अनुसार जिले में तीसरे चरण की सारस गणना का कार्य वैज्ञानिक विधि से पूर्ण किया। वन रेंज में टीमों ने दो दिन तक किए गए जमीनी सर्वे में जिन स्थानों में सारस मिले वहां से जुड़ा डाटा व जीपीएस निर्देशांक, चित्र आदि एकत्र किया गया। जमा किया गया डाटा लखनऊ भेजा जाएगा। इससे सारस के संरक्षण व उससे जुड़े शोध आदि में मदद मिलेगी। इस कार्य में डब्लूडब्लूएफ की टीम आदि ने भी सहयोग दिया।
तराई क्षेत्र व गंगा नदी के मैदानी भाग सारस का प्राकृतिक वास एक जुलाई 2014 को सारस को उत्तर प्रदेश का राज्य पक्षी घोषित किया गया था। सारस (क्रेन) प्रजाति ऐतिहासिक रूप से भारत के उत्तरी और उत्तर-पश्चिमी तराई क्षेत्रों में गंगा नदी के मैदानों में पाई जाती है। भारत में, सारस क्रेन को पवित्र पक्षी माना जाता है व मानव द्वारा इसे कभी नुकसान नहीं पहुंचाया जाता है। सारस से जुड़ी देश में कुछ किंवदंती भी हैं। देश के कुछ हिस्सों में नवविवाहित जोड़ों को एक सारस जोड़ी को देखने की परंपरा है।
सारस पक्षी की पहचान निम्न प्रकार है
व्यस्क सारस के सिलेटी रंग के पंख और शरीर व लाल रंग का सिर एवं गर्दन होती है। चोंच तीखी, लंबी और हरी होती है नर व मादा में रंगों में कोई भेद नहीं होता परंतु नर औसतन मादा से बड़े होते है। नर के सिर व गर्दन का लाल रंग प्रजनन के मौसम में ज्यादा चमकदार होता है। युवा सारस क्रेन का रंग भूरा होता है जोकि उम्र के साथ-साथ बदलता रहता है। अव्यस्कों की चोंच का निचला भाग पीला व सिर भूरा होता है और पंखों से ढका रहता है। सिर के पास व पीछे का हिस्सा नुकीले पंखें से ढका रहता है।