बता दें कि अक्टूबर-नवंबर में सरसों की बुवाई होती है, जिसकी कटाई 100 से 120 दिन में हो जाती है। अधिकतर खेतों में फसल तैयार खड़ी है, कुछ जगह किसान कटाई में जुट गए हैं। किसान रहेश चौधरी ने बताया कि फसल पक चुकी है, जो इस बार बेहतर हुई है। मौसम की मार नहीं पड़ी और रोग भी दूर ही रहे हैं। एक बीघा में आठ से नौ कुंतल सरसों की उम्मीद है। लेकिन बाजार के लिए भटकना होगा। मंडियों में मनमाने रेट लगाए जाते हैं और खरीद केंद्र एक या दो ही खुलते हैं। फरवरी के प्रथम सप्ताह में केंद्र खुल जाने चाहिए, लेकिन अभी तक ऐसा नहीं हो सका है। गत वर्ष भी चंद किसानों से खरीद कर केंद्र लंबे समय के लिए बंद कर दिए गए थे।
यह भी देखें: भूमाफिया की डेढ़ करोड़ की संपत्ति जब्त, कोर्ट ने सुनाई 4 साल की सजा मेरठ मंडल में घट रहा सरसों का रकबा :— सात दशक पूर्व तक गेहूं और सरसों मेरठ मंडल की प्रमुख फसल मानी जाती थी। इसके बाद सरसों का रकबा कम होता गया। मंडल में क्षेत्रफल घटकर 30 हजार हेक्टेयर रह गया। किसान अपनी जरूरत के तेल के लिए ही सरसों बोते रहे है। गेहूं के साथ सरसों की बुवाई बंद की जा चुकी है। वर्ष 2015 में कुछ वृद्धि हुई। ये बढ़त 45 हजार हेक्टेयर तक पहुंची और कई साल तक यही स्थिति बनी रही। इस बार अकेली सरसों की फसल का क्षेत्रफल डेढ़ लाख हेक्टेयर तक हुआ है। करीब एक लाख हेक्टेयर में गेंहू के साथ लगभग 50 प्रतिशत सरसों बोई गई है। साथ ही गेंहू के साथ कतारों में सरसों उगाई है। ऐसे में सरसों का कुल क्षेत्रफल ढाई लाख हेक्टेयर तक माना जा रहा है। इसकी बढ़ी वजह यह रही कि पिछले साल गेहूं के दाम कम रहे। सरसों छह हजार रुपये कुंतल तक रहा। तेल का दाम भी 200 रुपये प्रति किग्रा तक मिल रहा है। इसलिए गेहूं घटाकर सरसों की बुवाई की गई। कृषि विभाग ने सभी ब्लॉक पर 2-2 कुंतल बीज बुवाई के लिए दिया। किसानों ने हाथों हाथ इसे लिया। किसी ब्लॉक पर बीज नहीं बचा। वहीं उप कृषि निदेशक बृजेश चंद का कहना है कि इस बार सरसों का क्षेत्रफल बढ़ा है। विभाग की तरफ किसानों को गन्ने के अलावा दूसरी फसल बोने के लिए प्रोत्साहित किया जा रहा है।