मेरठ के कंकरखेडा के डिफेंस एन्क्लेव में अपने भतीजे डा. रिषिपाल मलिक के साथ रह रहे 106 साल के बलराम सिंह मलिक के अनुसार द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान जमीनी और हवाई लड़ाई हुई थी। उस समय के सारे आधुनिक हथियार इस युद्ध में प्रयोग किए गए थे। उन्होंने युद्ध में हवाई जहाज गिराते हुए देखे थे। तीन बार बर्मा, जावा, सुमात्रा, ब्लूचिस्तान में लड़ाई के दौरान भारतीय सेना के साथ गए थे। तृतीय विश्व युद्ध की आशंका पर इस वयोवृद्ध फौजी का कहना है कि तृतीय विश्व युद्ध इतना आसान नहीं है। इससे देशों को काफी नुकसान होता है। यह होना मुश्किल है।
30 के दशक में भारतीय सेना में भर्ती के बारे में बताया कि बुलंदशहर में भर्ती खुली थी। बलराम सिंह ने कांधला में अपने पड़ोसी युवक से सेना में भर्ती की बात सुनी थी। वहां जाने पर उन्हें सेना की ईएमई कोर में भर्ती कर लिया गया। यहां तीन महीने की ट्रेनिंग हुई। इसके बाद मध्य प्रदेश के कटनी में छह महीने की ट्रेनिंग हुई। कटनी में उन्हें लांस नायक का रैंक मिला। इस रैंक के कारण उन्हें तब अलग से पैसा मिलता था। वहां से उनकी पोस्टिंग मेरठ स्थित 510 आर्मी बेस वर्कशाप में हुई। इसके बाद यहां से उन्हें द्वितीय विश्व युद्ध में शामिल होने के लिए भेजा गया। 1945 से लौटने के बाद उनकी देश में पोस्टिंग के दौरान कई स्थानों तैनाती रही। उनकी कोई औलाद नहीं हुई। अब उनके भतीजे का परिवार बलराम सिंह का पूरा ख्याल रखता है।
यह है 106 साल में तंदरुस्त रहने का राज पूर्व फौजी बलराम सिंह मलिक की इस समय 106 साल की उम्र है। वह इन दिनों भी तंदरुस्त हैं और अपने सभी काम खुद करते हैं। उन्होंने कभी शराब को हाथ नहीं लगाया। सेना में तैनाती के दौरान वह अपने घर का घी, दूध, दही, फल और ड्राई फ्रूट्स सामान्य रूप से लेते थे। शाम को ठीक सात बजे हर हाल में खाना लेते थे, जो आज तक कायम है। भुना हुआ जीरा खाद्य वस्तुओं में डालकर खाने के वह शौकीन हैं। 106 साल की उम्र में भी बलराम सिंह एक महीने में एक किलो भुना हुआ जीरा खाने के साथ खा लेते हैं। इस उम्र में भी वह रोजाना ड्राई फ्रूट्स के लड्डू, गाजर की खीर, गाजर का हलवा, खजूर, रसगुल्ला खाते हैं। इनमें वह भुना हुआ जीरा डलवाना नहीं भूलते। खाने में रोजाना एक-एक चपाती सब्जी के साथ खाते हैं। बलराम सिंह 1993 में राधा स्वामी सत्संग से जुड़े हुए हैं तो पिछले दस साल से योग भी कर रहे हैं। अनुलोम-विलोम, कपालभाती नियमित रूप से करते हैं। वह रोजाना सुबह ढाई बजे उठ जाते हैं। भगवान की भक्ति में कई घंटे लीन भी रहते हैं।