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मथुरा

श्रीकृष्ण जन्मस्थान ट्रस्ट का बयान, शाही ईदगाह मस्जिद या मुस्लिमों के पास जमीन का स्वामित्व नहीं, वे केवल किराएदार

इस संपूर्ण भूमि पर जो कर योग्य भवन हैं, उनका भुगतान भी श्री कृष्ण ट्रस्ट ही कर रहा है, फिर चाहे वो मंदिर परिसर हो या मस्जिद। यानी शाही ईदगाह मस्जिद या मुस्लिमों के पास उस जमीन का स्वामित्व नहीं है, वो किराएदार के रूप में ही दर्ज है.

मथुराSep 27, 2020 / 09:22 pm

Abhishek Gupta

Mathura news

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मथुरा. 1951 में श्री कृष्ण जन्मभूमि ट्रस्ट के निर्माण के बाद 13.37 एकड़ भूमि पर मालिकाना हक आज भी ट्रस्ट के पास है और मंदिर की जिस जगह पर शाही ईदगाह मस्जिद बनी हुई है उस भूमि का स्वामित्व भी ट्रस्ट के पास है। यहां तक कि इस संपूर्ण भूमि पर जो कर योग्य भवन हैं, उनका भुगतान भी श्री कृष्ण ट्रस्ट ही कर रहा है, फिर चाहे वो मंदिर परिसर हो या मस्जिद। यानी शाही ईदगाह मस्जिद या मुस्लिमों के पास उस जमीन का स्वामित्व नहीं है, वो किराएदार के रूप में ही दर्ज है। यह कहना है श्री कृष्ण जन्मस्थान ट्रस्ट से जुड़े पदाधिकारियों का।
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ये है मामला-

कोर्ट में याचिका दायर होने के बाद श्री कृष्ण जन्मस्थान ट्रस्ट के पदाधिकारियों ने बताया है कि अभी इस याचिका के बारे में उन्हें विस्तृत जानकारी नहीं। ट्रस्ट से जुड़े विशेष कार्यधिकारी विजय बहादुर ने बताया कि 1951 में ट्रस्ट बनने के बाद से समस्त 13.37 एकड़ भूमि पर ट्रस्ट का ही मालिकाना हक है। उन्होंने बताया कि 13.37 एकड़ का भगवान केशव देव का प्रांगण है जो नगर निगम में कटरा केशव देव मोहल्ले के रूप में दर्ज है। यहां करीब 5 हजार साल पहले भगवान केशव देव के मंदिर थे। उन्होंने बताया कि लगभग 1000 साल पूर्व का इतिहास है। विभिन्न मुगलों ने मंदिरों को तोड़ा और बार बार मंदिर का निर्माण हुआ। अंतिम मन्दिर औरंगजेब ने तोड़ा और उसके दो तिहाई भाग पर मस्जिद बना दी गई।
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बनारस के राजा ने खरीदी यह भूमि-

उन्होंने बताया को मुगलों को परास्त करने के बाद अंग्रेजों ने इस भूमि को सरकारी नजूल की भूमि के रूप में नीलाम किया। ईस्ट इंडिया कंपनी ने जमीन की नीलामी की और बनारस के राजा पटनीमल ने ऊंची बोली लगाकर इस भूमि को मंदिर निर्माण के लिए खरीद लिया। उन्होंने बताया कि मुस्लिमों ने इस नीलामी को लेकर कई बार आपत्तियां दर्ज कराईं लेकिन उनकी आपत्ति खारिज होती गई। उन्होंने बताया कि पंडित मदन मोहन मालवीय ने मंदिर के जीर्णोद्धार के लिए 1944 में इस भूमि का क्रय किया। मदन मोहन मालवीय की मृत्यु के बाद उनकी इच्छानुसार उद्योगपति जुगल किशोर बिरला ने 1951 में श्रीकृष्ण जन्मभूमि ट्रस्ट की स्थापना की और भूमि का स्वामित्व ट्रस्ट को सौंप दिया गया।
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उन्होंने बताया कि अभिलेखों में श्री कृष्ण जन्मभूमि ट्रस्ट खसरा नंबर 825 केवट नंबर 255 पर इस भूमि का स्वामी चला आ रहा है। साथ ही बताया कि यहां इस बात का प्रतिवाद नहीं है कि औरंगजेब ने मंदिर को तोड़ा था क्योंकि उनके इतिहासकारों ने ही लिखा है कि यहां मंदिर को तोड़कर मस्जिद बनाई गई, इसलिए यहां कोई ऐसा विवाद नहीं है। उन्होंने बताया कि यहां जो पुराने मुसलमान बसे हुए हैं, उनसे जमीन खाली कराने के लिए ट्रस्ट की ओर से 1967 में मुकदमा किया गया। बाद में इसमें सहमति हुई और सहमति के आधार पर मुस्लिम जैसे रहते आ रहे थे वैसे ही रह रहे हैं, लेकिन उनका इस पर कोई मालिकाना हक नहीं है, वो किरायेदार के रूप में ही दर्ज हैं। उन्होंने बताया कि 13.37 एकड़ भूमि में जो भवन कर योग्य हैं, उन सबका कर (टैक्स) श्री कृष्ण जन्मस्थान ट्रस्ट ही भुगतान कर रहा है फिर चाहे वो मंदिर परिसर हो या मस्जिद परिसर।
ये बोले शाही ईदगाह के अध्यक्ष-

वही शाही मस्जिद ईदगाह कमेटी के अध्यक्ष जेड हसन से फोन पर बात की गई तो उन्होंने बताया कि सुप्रीम कोर्ट का आदेश है कि किसी धर्म स्थली और विशेष रूप से मथुरा और काशी से कोई याचिका दायर नहीं होनी चाहिए। जिस स्थिति में हैं वही स्थिति बनी रहे। उन्होंने कहा कि संभ्रांत लोगों ने समझौता कर लिया था। यहां किसी बात को लेकर झगड़ा ना हो। उन्होंने कहा कि तीनों वक्त की जो नमाज पढ़ी जाती है उसका प्रशासन ने कोई विरोध नहीं किया। अध्यक्ष जेड हसन का यह भी कहना है कि कोरोना से पहले जब मुस्लिम भाई नमाज पढ़कर मस्जिद से नीचे उतरते थे तो हिंदू भाई उनको गले लगाते थे। जेड हसन कहते हैं कि इधर मस्जिद है और उधर मंदिर है दो धार्मिक स्थलों का पूजा पाठ होता है। एक तरफ अजान की आवाज बुलंद होती है तो दूसरी तरफ घंटे घड़ियाल के साथ-साथ भजन कीर्तन की आवाज दूर तक जाती है। ऐसा तो नहीं हो सकता कि एक आवाज पूरब जाए और दूसरी पश्चिम। उन्होंने यह भी कहा कि ऊपर वाला उर्दू और ब्रज भाषा ही नहीं समझता है, वह तो दिल की बात जानता है। यहां के जो लोग हैं वह हमेशा यही चाहते हैं कि यहां प्रेम और सौहार्द बना रहे। यहां हमेशा शांति बनी रहे।

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