मथुरा. कृष्ण के भाई और बृज के राजा दाऊ बाबा का जन्मोत्सव (बल्देव छठ) जिला मुख्यालय से लगभग 30 किलोमीटर दूर दाऊजी मंदिर में बड़े हर्षोल्लास के साथ मनाया जा रहा है। दूर दराज से तमाम भक्त दाऊ बाबा के दर्शन करने के लिए दाऊजी में उमड़ पड़े़ हैं। श्रद्धालु लूटते हैं नारियल बुधवार सुबह दर्शन और मंगला आरती के बाद दाऊ बाबा का पंचामृत से आचार्यो ने अभिषेक कराया। ठाकुर जी को बेशकीमती आभूषण धारण कराए। जन्म के बाद मंदिर प्रांगण में नरियल लुटाए जाते हैं, जिन्हें मल्लविद्या के तरीके से आपस में छीना झपटी करके श्रद्धालु प्राप्त करते हैं।
कृष्णकालीन मंदिर है यह मंदिर बहुत प्राचीन कृष्णकालीन बताया जाता है। मंदिर में औरंगजेब के द्वारा चढ़ाया गया छत्र है। यह मूर्ति क़रीब 8 फुट ऊँची एवं साढे तीन फुट चौडी श्याम वर्ण की है। पीछे शेषनाग सात फनों से युक्त मुख्य मूर्ति की छाया करते हैं। मूर्ति नृत्य मुद्रा में है, दाहिना हाथ सिर से ऊपर वरद मुद्रा में है एवं बाँये हाथ में चक्र है। पौराणिक आख्यान के अनुसार भगवान श्रीकृष्ण के पौत्र वज्रनाभ ने अपने पूर्वजों की पुण्य स्मृति में इस मंदिर का निर्माण कराया था दाऊजी का दूसरा नाम संकर्षण है ब्रज के राजा दाऊजी महाराज के जन्म के विषय में ‘गर्ग पुराण’ और भागवत जी में बताया गया है कि देवकी के सप्तम गर्भ को योगमाया ने संकर्षण कर रोहिणी के गर्भ में पहुँचाया। भाद्रपद शुक्ल षष्ठी के स्वाति नक्षत्र में वसुदेव की पत्नी रोहिणी, जो कि नन्द बाबा के यहाँ रहती थी, के गर्भ से अनन्तदेव ‘शेषावतार’ प्रकट हुए। इस कारण श्री दाऊजी महाराज का दूसरा नाम ‘संकर्षण’ हुआ। भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि बुधवार के दिन मध्याह्न 12 बजे तुला लग्न तथा स्वाति नक्षत्र में बल्देव जी का जन्म हुआ। उस समय पाँच ग्रह उच्च के थे। इस समय आकाश से छोटी-छोटी वर्षा की बूँदें और देवता पुष्पों की वर्षा कर रहे थे।
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पंचामृत अभिषेक होता है जन्मोत्सव के उपलक्ष्य में बलदेव मन्दिर में पट मंगला हेतु सुबह जल्दी खुल जाते हैं। उसके बाद स्नान-शृंगार, बाल भोग और आरती होती है। मध्याह्न 12 बजे पुन: पंचामृत अभिषेक होता है। जन्मोत्सव के दिन विशेष आभूषण तथा बहुमूल्यरत्नों से जड़ित जवाहरात धारण कराये जाते हैं। मन्दिर में बधाई गायन होता है। हल्दी, केसर, दही, मिश्रित कर गोस्वामी कल्याण देव के वंशजों एवं भक्तों पर छिड़का जाता है, जिसको ‘दधिकोत्सव’ के नाम से जाना जाता है।
मनोवांछित फल मिलता है मन्दिर कमेटी द्वारा बधाई के साथ-साथ नारियल, लड्डू, वस्त्र, फल आदि लुटाया जाता है और मन्दिर परिसर “नन्द के आनन्द भये जय दाऊदयाल की” ध्वनि के साथ गुंजायमान रहता है। इस अवसर पर मन्दिर परिसर एवं क़स्बे में भजन संध्या तथारसिया दंगल, काव्य गोष्ठी, यज्ञ व शोभायात्रा आदि का आयोजन किया जाता है। ठाकुर श्री दाऊजी महाराज व धर्मपत्नी जगत जजनी माता रेवती के दर्शन भाव से सारे कष्टों से मुक्ति मिलती है व मनोवांछित फल प्राप्त होता है।
ब्रज में बाजत आज बँधाईं ।। भादौं सुदी छट्ट दिन नींकौ , लागत परम सुहाई । मातु रौहिणी के गृह प्रगटे , श्रीबलदाऊ सुखदाई ।। आनंद भयौ सकल ब्रज-मण्डल , गौरस कीच मँचाई । नंद के माँथैं दूब – दधि छिरकत , नाँचत लोग – लुगाईं ।। फूले फिरत सब ब्रज के बासी , आनंद की निधि पाई । प्रैंमीं निज चरनन कौ चेरौ , गावत सुभग बँधाईं ।।