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मंदसौर

पत्रिका ग्राउंड रिर्पोट: यहां पहली बार हो रहे हैं उपचुनाव, लोगों ने कहा- विधायकी छोड़नी थी तो पांच साल बाद छोड़ते

यहां कर्जमाफी और बिजली के बिल जैसे मुद्दे प्रभावी हैं।

मंदसौरOct 02, 2020 / 11:43 am

Pawan Tiwari

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मंदसौर. जिले की सुवासरा विधानसभा सीट पर पहली बार उपचुनाव हो रहे हैं। दोनों दलों के मुखियाओं ने अपनी चुनावी सभा कर चुनावी रण का आगाज भी कर लिया है। उपचुनाव के रण का रंग अब नगरीय क्षेत्र से लेकर ग्रामीण क्षेत्रों तक चढ़ने लगा है। गांवों में चौपालें लगना शुरु हो गई हैं। इस सीट पर रोजगार, कृषि आधारित उद्योग, उपज का सही दाम के साथ खेतों में सिंचाई के लिए पानी, कर्जामाफी और बिजली बिलों में बढ़ोतरी प्रमुख मुद्दे हैं। इन मुद्दों के साथ चौपालों में अभी सबसे अधिक कर्जमाफी का मुद्दा छाया हुआ है तो भाजपा और कांग्रेस की सीतामऊ में हुई चुनावी सभा में भी कर्जमाफी को लेकर मुख्यमंत्री से लेकर पूर्व मुख्यमंत्री ने एक-दूसरे को घेरा है।
गांवों में चाय की दुकान हो या पेड की नीचे लगी चौपालों के बीच दलावदा और दीपाखेड़ा में पत्रिका टीम गुरुवार को पहुंची। दलावदा में चाय की दुकान पर कई लोगों ने कहा कि क्षेत्र में युवा अभी कोरोनाकाल में आए हैं। इसमें गांव के युवा भी शामिल हैं। विधानसभा में ही रोजगार की व्यवस्था हो जाए तो बेरोजगार युवा बाहर नहीं जाएगा। रोजगार होना जरूरी है। इसके साथ ही हमको उपज का सही दाम मिलना चाहिए। हमारे क्षेत्र में पहली बार उपचुनाव हो रहे हैं। इससे पहले हमने उपचुनाव नहीं देखा।
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बाबूलाल, जितेंद्र, ओम शर्मा सहित अन्य ने कहा कि विधायक ने कांग्रेस छोड़ी तो उनको पहले छोडऩा था या फिर पांच साल बाद छोड़ते तो अच्छा होता, अब बीच में पार्टी छोड़ी तो कई किसानों की कर्जमाफी अटक गई। 15 साल में सड़क सहित अन्य काम हुए, लेकिन अभी 15 माह कांग्रेस सरकार अच्छा काम कर रही थी। इस साल फसल नहीं हुई। अब फिर से समस्या आ गई है। दीपाखेड़ा में चौपाल पर बैठे राजेंद्र सिंह, शौकिन सिंह, लाल सिंह, रतनलाल, बंशीदास सहित अन्य ने कहा कि यहां पर तीन किलोमीटर दूर चंबल नदी है, लेकिन कई खेतों में सिंचाई की व्यवस्था नहीं है। नील गाय की समस्या से सब त्रस्त हैं। 2018 की ओलावृष्टि का अभी तक गांव में कई लोगों को मुआवजा नहीं मिला तो 2018-19 में कई किसानों को फसल बीमा नहीं मिला है।
कर्जमाफी से लेकर गद्दार नहीं वफादार चाहिए जैसे सियासी मुद्दे छाए
चुनावी दौर में कर्जमाफी, गद्दार नहीं वफादार और 15 साल बनाम 15 माह जैसे सियासी मुद्दे अब घर-घर तक पहुंच गए हैं। दलावदा और दिपाखेड़ा में चौपाल पर बैठे लोगों ने इन मुद्दों पर कहा कि कर्जमाफी हो रही थी, यदि सरकार रहती तो दो लाख रूपए तक की कर्जमाफी हो जाती। तो गद्दार नहीं वफादार के मुद्दे पर लोगों ने कहा कि ऐसे बीच में पार्टी नहीं छोडऩा चाहिए। पहले पंद्रह साल में सड़क, पानी और बिजली की व्यवस्था हुई तो इन 15 माह में कर्जमाफी, अच्छा मुआवजा और सस्ती बिजली की तारीफ भी लोगों ने की। वहीं, केंद्र सरकार द्वारा लाए गए कृषि विधेयक पर कुछ किसानों ने कहा कि इससे किसानों को नुकसान है।
भाजपा आठ तो कांग्रेस ने छह बार जीती सीट, हार-जीत का अंतर रहता कम
सुवासरा विधानसभा सीट 1952 में गरोठ विधानसभा में शाामिल थी।
अब तक 14 बार चुनाव हुए हैं। भाजपा ने 8 और कांग्रेस ने छह बार विजय पाई है।
2008 में पहली बार भाजपा से राधेश्याम पाटीदार और कांग्रेस से हरदीप सिंह डंग चुनाव लड़े। जिसमें राधेश्याम पाटीदार 6 हजार 849 मतों से विजय रहे।
2013 में फिर से दोनों उमीदवार आमने-सामने हुई। इस चुनाव में कांग्रेस से हरदीप सिंह डंग 7 हजार 125 मतों से विजय रहे।
2018 में तीसरी बार दोनों उमीदवार आमने-सामने हुए। हरदीप सिंह डंग 350 मतों से जीते। डंग को 45.3 प्रतिशत मत मिले थे और पाटीदार को 44.86 प्रतिशत मत मिले थे।
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1990 से 2018 तक अंतर 15 हजार तक पहुंचा, बाकी चुनाव में काफी कम
सुवासरा सीट पर 1990 से 2018 तक सिर्फ 1990 और 2013 में जीत हार का अंतर 15 हजार या उससे अधिक है। शेष पांच चुनावों में हार-जीत का अंतर 8 हजार मतों के अंदर रहता है। उससे पहले भी कई चुनावों में हार-जीत का अंतर कम रहा है।
(मंदसौर के सुवासरा से विकास तिवारी की रिपोर्ट )

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