script15 वीं शताब्दी में मांडू के सुल्तान ने किया था मंदसौर में किले का निर्माण | In the 15th century, the Sultan of Mandu built the fort at Mandsaur | Patrika News
मंदसौर

15 वीं शताब्दी में मांडू के सुल्तान ने किया था मंदसौर में किले का निर्माण

15 वीं शताब्दी में मांडू के सुल्तान ने किया था मंदसौर में किले का निर्माण

मंदसौरMar 01, 2020 / 11:33 am

Nilesh Trivedi

gohad ka kila bhind in Madhya Pradesh

प्रदेश के इस किले में है पानी को फिल्टर व ठंडा गर्म करने की तकनीक

मंदसौर.
मंदसौर का किला ऐतिहासिक होकर गौरव गाथा को बया कर रहा है। इस ऐतिहासिक किले का निर्माण 15 वी शताब्दी में मांडू के सुल्तान हुशंगशाह ने करवाया था। इसका प्रमाण गुजरात में मिले ग्रंथ निराली सिकंदरी में है। यह किला अपने राज्य के उत्तरी और पश्चिमी सीमा की सुरक्षा के लिए बनाया गया था। यहां कोई स्वतंत्र राज्य नहीं था फिर भी किला मांडू के सुल्तान के अधीन था।

मालवा-मेवाड़ का रहा संधि स्थल
बताया तो यह भी जाता है कि चित्तौड़ पर आक्रमण करने जाते समय उनकी सेना यहां से गुजरती थी तब अतिरिक्त सेना जो होती थी वह यहां रुकती थी जहां उनका मुख्यालय था लगता है। मंदसौर मालवा और मेवाड़ का संधि स्थल यह किला व क्षेत्र रहा है यह दोनों के मध्य स्थित होने के कारण इस दुर्ग पर मालवा और मेवाड़ तथा मुगलों का समय-समय पर शासन होता रहा है।
वर्तमान में मंदसौर के इस खंडहर नुमा दिखने वाले किले के सालो बाद फिर से कायाकल्प की शुरुआत हुई। इतिहास का वर्णन करने वाला यह किला अब विलुप्त होता चला जा रहा था लेकिन कलेक्टर मनोज पुष्प ने इसका निरीक्षण कर यहा रंग-रोगन से लेकर इसके कायाकल्प की शुरुआत करवाई है।

पांचवी से सातवी शताब्दी के ओलिकर वंश रहा
मंदसौर का प्राचीन इतिहास गौरवपूर्ण है। पुरातत्वविद कैलाशचंद्र पांडे ने बताया कि पांचवी से सातवीं शताब्दी तक ओलिकर वंश यहां रहा। ऐसा प्रमाण भानपुरा में एक खंडित शिलालेख जो 475 ईसवी का है। उससे पता चलता है महाराणा कुंभा ने जब मांडू के सुल्तान को पराजित किया तब सोलवी शताब्दी में उनका इस पर कब्जा हुआ महाराणा कुंभा के किलेदार अशोक मूल राजपूत को यहां की जिम्मेदारी सौंपी गई।
18 वीं शताब्दी में यह मराठों के कब्जे में आया उस समय ग्वालियर के शासक सिंधिया के यह कब्जे में था। 26 अगस्त 1857 से 63 दिन तक यह शहजादे फिरोज के कब्जे में रहा जिसे दिल्ली के मुगल बादशाह के परिवार का होना बताया गया। ऐसा बताया जाता है कि उस समय उसका राज्यारोहण हुआ था।

गुजरात के शासन की सेना तालाब किनारे ठहरी थी
पुरातत्व विद् पांडे ने बताया कि 24 सितंबर 1857 को शहजादा फिरोज का अंग्रेजों की सेना से गुराडिया में युद्ध हुआ था जिसमें वह पराजित हो गया तो फिर वहां से भागकर उत्तर प्रदेश की ओर चला गया। मुगल सम्राट का गौरवशाली पक्ष यह भी है कि चित्तौड़ के दूसरे साके जोहर के समय चित्तौड़ की महारानी कर्मण्य वती ने राखी भेजकर मुगल सम्राट हुमायूं को आमंत्रित किया था तब हुमायूं ने इस किले में अपनी सेना सहित लगभग एक माह रुका था कि नए से उत्तर पश्चिम में गुजरात के शासक बहादुर शाह गुजराती की सेना तालाब किनारे यहां ठहरी थी। यहां 5 वी से 7 वी शताब्दी में कोई डेढ़ सौवर्षो ओलिकर वंश रहा। उसके बाद होशंग शाह से लेकर फिरोजशाह तक के राजवंशों ने यहां शासन किया अकबर ने 1561 में जब अपने राज्य का पुनर्गठन किया तब मंदसौर एक सरकार के रूप में विकसित हुआ। 1925 में सिंधिया ने यहां सुबायत कायम की थी।तब ॅ कलेक्टर कार्यालय का भवन बना था।
उस समय लकडिय़ों के मकान होते थे। दिल्ली के सुल्तानों की तरफ से माथुर परिवार को कानूनगों के रूप में पदस्थ किया गया था जिनकी सात मंजिला हवेली भी कभी इस किले में हुआ करती थी जो 400 वर्ष पुरानी हो गई थी।
मंदसौर के इस किले में है १२ दरवाजें
शहर में स्थित इस किले की खासियत एक और यह है कि इसमें 12 दरवाजे है। लेकिन देखरेख के भाव में जहां यह दरवाजे कुछ क्षतिग्रस्त हुए हैं वही इस किले की चार दिवारी जिसे परकोटा भी कहा जाता है को कुछ जगह से नुकसान पहुंचाया गया तो कुछ जगह से वह गिर गई है यह सभी 12 दरवाजे अलग-अलग नामों से जाने जाते हैं। दक्षिण पूर्व में नदी दरवाजा इसका मुख्य मार्ग था। 1496 मुखबिर खान ने कराया था इसका दूसरा दरवाजा भी प्रख्यात है। वर्तमान में उसे मंडी गेट के नाम से भी जाना जाता है इस दरवाजे पर 1857 की क्रांति के दौरान शहजादा फिरोज की सेना ने जीरन के मैदानी युद्ध में 12 अक्टूबर 1857 को कैप्टन और टक्कर के सर काटकर गेट पर टांग दिया था। क्रांतिकारी लाला सोहरमल को छोड़कर 3 क्रांतिकारियों को 18 दिसंबर 1958 को फांसी दी गई थी।

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