scriptDragon fruit : थायलैंड के पौधों से मध्यप्रदेश की धरती उगल रही अफ्रीका के ड्रैगन फ्रूट | Dragon fruit cultivation started in Madhya Pradesh | Patrika News
मंदसौर

Dragon fruit : थायलैंड के पौधों से मध्यप्रदेश की धरती उगल रही अफ्रीका के ड्रैगन फ्रूट

Dragon fruit : मध्यप्रदेश के मंदसौर जिले के एक किसान ने थायलैंड से पौधे मंगवाकर ड्रैगन फ्रूट की खेती शुरू कर दी है। जिससे वह खुद तो आत्मनिर्भर बना ही है, साथ ही विदेशों में पाया जाने वाला यह फल अब मध्यप्रदेश में भी मिलने लगेगा।

मंदसौरSep 19, 2021 / 04:58 pm

Subodh Tripathi

Dragon fruit

Dragon fruit

मंदसौर/शामगढ़. जहां आज के युवा डॉक्टर और इंजीनियर बनने की चाह में गांव छोड़कर शहरों की ओर पलायन कर रहे हैं, वहीं मध्यप्रदेश के शामगढ़ के एक किसान ने आत्मनिर्भर बनने के लिए गांव में ही कुछ ऐसा करने की ठानी, जिससे उसे अच्छी आमदानी भी हो सके, इसके लिए उसने एक बार कदम आगे बढ़ाया, तो फिर पीछे मुड़ कर नहीं देखा, यही कारण है कि आज मध्यप्रदेश की धरती पर चायना और अफ्रीका में पाया जाने वाले ड्रैगन फ्रूट लहलहा उठा है।
इंटरनेट पर वीडियो देखकर आया ख्याल


पहले नेट पर वीडियो देखा फिर औरंगाबाद में इसकी खेती देखी तो नवाचार का ख्याल मन में आया। मेहनत और खर्चा तो अधिक लगा लेकिन तीन साल बाद आज खेती में किए इस नवाचार ने किसान को आत्मनिर्भर बना दिया। थायलैंड से पौधें मंगवाए जो कोलकत्ता पहुंचे और अब यह पौधे अफ्रीका व चायना में पाया जाने वाला ड्रैगन फ्रूट शामगढ़ में भी तैयार हो रहा है। शामगढ़ की माटी से पैदा हो रहे इस विदेशी फल की अब देश के अन्य राज्यों के साथ स्थानीय मांग भी बढ़ गई है।
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ह्दय से लेकर कैंसर तक कई बीमारियों में लाभदायक

तीन साल पहले 1300 पौधे किसान ने एक बीघा खेत में लगाए थे। अब इस नवाचार ने लाभ का सौदा खेती को बनाते हुए किसान को आत्मनिर्भर बना दिया है। यह कहानी है शामगढ़ के किसान लालचंद बैरागी की। जिसने अपने फॉर्म हाऊस बरखेड़ा राठौर में ड्रैगन फ्रूट की खेती को अपनाया है। बताया जाता है कि यह फ्रूट ह्दय और कैंसर रोगियों के लिए भी फायदेमंद है।
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अन्य राज्यों में भी बढ़ी डिमांड


अफ्रीकी ड्रैगन फ्रूट का शामगढ़ में भी उत्पादन हो रहा है। परंपरागत खेती को छोड़ किसान ने इसे अपनाया तो थोड़ी मेहनत में यह खेती उसके लाभ का सौदा बन गया। तीन साल से वह इसकी खेती गांव बरखेड़ा राठौर में सुरक्षित व प्राकृतिक वातावरण के बीच कर रहा है। इस फल को देश के अन्य राज्यों तक भेज रहे है तो अब स्थानीय बिक्री भी इसकी शुरु हो गई है। बाजार में इसके अच्छे दाम मिल रहे है।
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600 रुपए किलो में बिकता है ड्रैगन फ्रूट


किसान लालचंद बैरागी ने बताया कि वे ड्रैगन फ्रूट की विशेषता एवं महत्व को देखकर थायलैंड से पौधे मंगवाए थे। जो उन्हें कलकत्ता से लाना पड़े। गांव बरखेड़ा राठौर स्थित कृषि फॉर्म पर विधिवत पद्धति से बुवाई के बाद पूर्णता प्राकृतिक एवं सुरक्षित वातावरण में इसका उत्पाद 3 साल बाद प्रारंभ हुआ। इसे बाहर भी भेजा जा रहा है तथा स्थानीय बिक्री भी होने लगी है। इसका भाव 500 से 600 किलो तक बताया गया है। बैरागी ने बताया कि ड्रैगन फ्रूट के उत्पाद के लिए उनके 1600 पौधों को टिकाने के लिए आरसीसी के 400 पोल खड़े किए तथा आरसीसी छतरी नुमा शेड बनाया।
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20 सालों तक मिलता है यह फल


मौसम की प्रतिकूलता से बचाने के लिए निगरानी रखना होती है। इसके उत्पाद में कोई रासायनिक खाद या कीटनाशक दवाई का उपयोग नहीं किया जाता क्योंकि कोई भी किट इसे नुकसान नहीं पहुंचा सकता। फल जितना रसीला और फायदेमंद है उसका ऊपरी आवरण उतना ही सख्त हैं। इसका छिलका नहीं खाया जाता। उन्होंने बताया कि फल आने का समय श्रावण मास से कार्तिक तक यानी अगस्त से नवंबर तक का होता है। एक बार पौधे लगाने के बाद 20 सालों तक फल देता है। इतना ही नहीं इसमें सुगंधित फल रात में खिलते है। वैज्ञानिक नजरीए से भी यह लाभकारी है। यह सभी तत्व ब्लड में शुगर की मात्रा को नियंत्रण करने में मदद करता है। जिन लोगों को डायबिटीज नहीं है। उनके लिए ड्रैगन फ्रूट का सेवन डायबिटीज से बचने का अच्छा तरीका हो सकता है। इस फल को सीमित ही मात्रा में खाना जाता है।

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