पर्यावरण प्रेमियों का कहना है कि पर्यावरणीय संकट वर्तमान परिदृश्य में एक महत्वपूर्ण समस्या के रूप में उभरा है। यह पर्यावरण के तत्वों में होने वाला नकारात्मक परिवर्तन है जो कि प्राणी और वनस्पति जगत को प्रत्यक्ष व परोक्ष रूप से हानि पहुंचाता है तथा इस हानि की परिणति विनाश में होती है।
पर्यावरण धीरे-धीरे विनाश की ओर अग्रसर हो रहा है। प्रदूषण नकारात्मक प्रकार्यों से उत्पन्न असंतुलन है। पर्यावरण संकट का सबसे बड़ा कारण उच्च उपभोक्तावादी संस्कृति है। जनसंख्या वृद्धि, संसाधनों के अनुचित दोहन व प्रयोग, कचरा कुव्यवस्थापन, वैज्ञानिक प्रयोगों, रेडियोधर्मी विकिरणों, खनन आदि के परिणामस्वरूप पर्यावरण प्रभावित हो रहा है। ये सभी गतिविधियां पृथ्वी के अस्तित्व के लिए खतरा उत्पन्न कर रही हैं।
पर्यावरणीय संकट हमें प्रत्यक्ष और परोक्ष रूप से वैश्विक तापमान में वृद्धि, जलवायु परिवर्तन, गर्म हवाएं और तापाघात, दावानल, भूकंप, भूस्खलन, थलचर- जलचर- नभचर जीवों की प्रजातियों का विनाश, अनेक शारीरिक व मानसिक रोगों की उत्पत्ति, भूमि का बंजर होना, भौम और सतही जलस्तर में निरंतर गिरावट, सुनामी, ओजोन क्षरण, जैव विविधता का ह्वास, ग्रीन हाउस गैसों में वृद्धि, जल प्लावन, लवणीकरण, अम्ल वर्षा आदि के रूप में देखने को मिल रहे हैं। कृषि में रासायनिक खादों का प्रयोग न करते हुए जैविक खादों के प्रयोग को बढ़ावा देने से प्रदूषण में कमी के साथ ही उत्पादन व उर्वरा शक्ति में वृद्धि होती है। एयर कंडीशनर एवं रेफ्रीजरेशन उपकरणों का प्रयोग कम से कम किया जाए तो उचित होगा। हमें जनसंख्या विस्थापन को भी रोकना होगा क्योंकि अपने मूल निवास स्थान से विस्थापित जन समूह अपने आर्थिक सामाजिक क्रियाकलापों से पर्यावरण को क्षति पहुंचाता है।