रोक के बाद भी साबुन सोडा का उपयोग
नदियां कई छोटे-बड़े कारणों से प्रदूषित होती हैं कारखानों, फैक्ट्रियों से निकलने वाली अपशिष्ट नदियों को नुकसान पहुंचाते ही है। साथ ही आमजनों द्वारा किए
शहर के प्रमुख नर्मदा तटों में नर्मदा स्वच्छता को लेकर नारे-संदेश तो लिखे गए हैं लेकिन उन संदेशों का पालन होता दिखाई नहीं देता है। इसके लिए समय-समय में नगरपालिका एवं पुलिस को भीड़-भाड़ वाले नर्मदा तटों में गश्ती कर प्रदूषण फैलाने वालों को रोकना-टोकना चाहिए।
इन्द्रजीत भंडारी, समाजसेवी
पिछले कुछ सालों में नर्मदा शुद्धिकरण को लेकर सीवर ट्रीटमेंट प्लांट, सीवर लाइन जैसे बड़े उपाय तो किए गए लेकिन लाखों की लागत से बनाया गया ट्रीटमेंट प्लांट योजना असफल हो गई इसके बाद अब सीवर लाईन का निर्माण कराया जा रहा है उसमें भी गुणवत्ताहीन काम होने की खबरें लगातार सामने आ रही है। प्रशासन को इस तरह के कामों में लगातार नजर बनाए रखने की जरूरत है।
धर्मेन्द्र सिंह, महासचिव, हिसेप मप्र
शहर में कुछ नर्मदा तटों में श्रद्धालुओं की काफी भीड़ जमा होती है ऐसे नर्मदा तटों का चिन्हांकन करके वहां नर्मदा भक्त युवकों की एक-एक टीम को बनाकर उन्हें जवाबदेही दी जानी चाहिए। जो अपने क्षेत्राधिकार अंतर्गत नर्मदा में प्रदूषण करने वालों को रोकें साथ ही अन्य स्तर पर हो रहे प्रदूषण को रोकने में भी अपनी भूमिका निर्वहन करें।
दीपक सचान, समाजसेवी
जाने वाले साबुन-सोडे के उपयोग से भी नदियों में प्रदूषण बढ़ रहा है। शहर के रपटा घाट में रोजाना सैकड़ों लोग यहां नर्मदा दर्शनों, पूजन अर्चन के लिए पहुंचते हैं जिसके चलते नगरपालिका द्वारा यहां दीवारों में नर्मदा स्वच्छता को लेकर संदेश तो लिखवा दिए गए हैं लेकिन इन संदेशों का मात्र 70 से 80 प्रतिशत लोगों पर ही असर होता दिखाई दे रहा है। बाकी अपनी आदत अनुसार नर्मदा को प्रदूषित करने में भूमिका निर्वहन कर रहे हैं। नर्मदा तटों लिखे गए संदेशों के अनुसार रपटा घाट में स्नान करने वाले लोगों को साबुन-सोड़े का उपयोग नहीं करने की बात कही गई है लेकिन यहां स्नान करने पहुंचे लोगों द्वारा इन नियमों के विपरीत साबुन, शैम्पू का जमकर उपयोग किया जाता है। इसी तरह रपटा घाट में रोजाना बड़ी संख्या में दूध बेचने वाले दूध के बर्तनों को यहां नर्मदा नदी में धोते हैं इन बर्तनों को धोने, इसकी चिकनाहट को दूर करने के लिए वाशिंग पाउडर का उपयोग किया जाता है। इन लोगों में उन दूध बेचने वालों की संख्या अधिक है जो रोजाना आसपास के ग्रामीण क्षेत्रों से शहर दूध बेचने के लिए आते हैं। दूध बेचने के बाद वे उन बर्तनों को रोजाना नर्मदा नदी में वाशिंग पाउउर से धोते हैं। यहां दीवारों में लिखे गए नारों में इस बात का भी उल्लेख किया गया है पूजन के बाद निकले निर्माल्य सामग्री को नर्मदा नदी में न फेंका जाए लेकिन बाद भी लोग अपने घर से पूजन के बाद निकले निर्माल्य सामग्र को प्लास्टिक में नदी में फेंककर चले जाते हैं। इस दौरान यदि किसी नर्मदा भक्त की नजर पड़ जाती है तो वह उस प्लास्टिक को नदी से बाहर निकालने का प्रयास करते है लेकिन अधिकांशत: यह निर्माल्य सामग्री नदी के प्रवाह के साथ आगे बढ़ जाती है जो नर्मदा प्रदूषण का भी कारण बनती है। रपटा घाट को शहर का प्रमुख धार्मिक स्थलों में गिना जाता है, जिसके चलते रपटा घाट में मछली मारने पर भी रोक लगाई गई है। रपटा घाट में ही पुलिस लाईन की ओर से बहकर नालों के माध्यम से आने वाला पानी यहां घाट मे जमा हो रहा है। इसे रोकने अब तक कोई प्रयास नहीं किए गए हैं।
रोक-टोक है जरूरी
कई नर्मदा भक्तों का कहना है कि सिर्फ नारों से नर्मदा साफ नहीं हो सकती, जो नारे दीवारों में लिखवाए गए हैं उनका पालन प्रशासन के जिम्मेदारों को नर्मदा नदी के तटों में स्वयं पहुंचकर कराना चाहिए। प्रशासन द्वारा नदियों के तटों में बड़े-बड़े अक्षरों में स्वच्छता संबंधित नारे तो लिखवा दिए गए हैं लेकिन कोई रोक-टोक नहीं होने से लोग बेखौफ होकर नदी में साबुन-सोड़े का उपयोग करते हैं। पूर्व में नगरपालिका या फिर पुलिस के कर्मचारियों द्वारा नर्मदा तटों में साबुनसोड़े का उपयोग करने वालों पर कार्यवाही की जाती रही है लेकिन लंबे समय से इस तरह की कोई कार्यवाही नहीं होने से कुछ लोग जानबूझकर नर्मदा में प्रदूषण के स्तर पर बढ़ा रहे हैं। यही नहीं इनमें से कुछ लोगों का यह भी तर्क होता है कि नर्मदा में बड़े-बड़े नालों का पानी 24 घंटे नर्मदा को प्रदूषित कर रहा है पहले उस पर रोक लगाई जाना जरूरी है। भले ही यह कहना एक हद तक ठीक हो सकता है लेकिन पहले से बढ़ते प्रदूषण के बीच अपनी ओर से उस प्रदूषण को रोकने की जगह प्रदूषण को बढ़ाने में सहयोग करना भी उचित नहीं ठहराया जा सकता है।