9 अप्रैल को विजिलेंस टीम ने राजकीय निर्माण निगम के तत्कालीन चार बड़े अधिकारियों को गिरफ्तार किया। इनमें वित्तीय परामर्शदाता विमलकांत मुद्गल, महाप्रबंधक तकनीकी एसके त्यागी, महाप्रबंधक सोडिक कृष्ण कुमार और इकाई प्रभारी कामेश्वर शर्मा शामिल हैं। कई अन्य की जल्द ही गिरफ्तारी की बात हो रही है। लेकिन, सवाल अब भी यही है कि इस घोटाले के असली मछलियां अब भी पकड़ से दूर हैं। मायावती के निकटस्थ माने जाने वाले और उनकी सरकार में शामिल रहे कई नेता अब पार्टी छोड़ चुके हैं। परियोजना से जुड़े कई अन्य अफसर भी रिटायर्ड हो चुके हैं। ऐसे में सवाल है विजिलेंस टीम का अब किनकी गिरफ्तारी का शिगूफा छोड़ रही है।
अंबेडकर जयंती के बहाने उत्तर प्रदेश में दलित पॉलिटिक्स शुरू, जानें- राजनीतिक दलों की स्ट्रैटजी
2007 से 2011 के बीच का मामला
मामला वर्ष 2007 से 2011 का है। तब प्रदेश में बहुजन समाज पार्टी की सरकार थी। मायावती मुख्यमंत्री थीं। लखनऊ और नोएडा में दलित महापुरुषों के नाम पर तब पांच स्मारक पार्क बनाने के लिए लगभग 4,300 करोड़ रुपये स्वीकृत किये थे। इसमें से लगभग 4200 करोड़ रुपए खर्च हुए थे। पार्को में तत्कालीन मुख्यमंत्री मायावती, बसपा संस्थापक कांशीराम व बाबा साहेब डॉ. भीमराव आंबेडकर के अलावा पार्टी के चुनाव चिह्न हाथी की सैकड़ों मूर्तियां लगाई गईं थीं। तब स्मारकों में लगे पत्थरों के ऊंचे दाम वसूलने की बात सामने आई थी। लोकायुक्त जस्टिस एनके मेहरोत्रा की जांच रिपोर्ट में अनुमान लगाया था कि करीब एक तिहाई रकम भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ गई है।
जांच के बाद पता चला कि कागजों में तो दिखाया गया कि पत्थरों को राजस्थान ले जाकर वहां कटिंग कराई गई और फिर तराशा गया। जबकि पत्थरों की तराशी राजस्थान में नहीं बल्कि मिर्जापुर में एक साथ 29 मशीनें लगाकर की गई थीं। इन सबके बीच ढुलाई के नाम पर भी करोड़ों रुपयों का खेल हुआ। कंसोर्टियम बनाया गया जो कि खनन नियमों के खिलाफ था। 840 रुपये प्रति घनफुट के हिसाब से ज्यादा वसूली की गई।
अंबेडकर जयंती पर मनायें ‘दलित दिवाली’- अखिलेश यादव
चेहेते ठेकेदारों को मिला था कमीशन
आरोप है कि मायावती सरकार के खास मंत्रियों, अफसरों और इंजीनियरों ने अपने चहेतों को मनमाने ढंग से पत्थर सप्लाई का ठेका दिया था और मोटा कमीशन लिया था। विजिलेंस की जांच में यह बात भी सामने आयी थी कि मनमाने ढंग से अफसरों को दाम तय करने के लिए अधिकृत कर दिया गया था। ऊंचे दाम तय करने के बाद पट्टे देना शुरू कर दिया गया था। सलाहकार के भाई की फर्म को मनमाने ढंग से करोड़ों रुपये का काम दे दिया गया था।
वर्ष 2014 में लोकायुक्त जस्टिस एनके मेहरोत्रा ने स्मारकों के निर्माण में 1,400 करोड़ के घोटाले की आशंका जताते हुए सीबीआई या एसआईटी से मामले की विस्तृत जांच कराने की सिफारिश की थी। इसके बाद सरकार ने मामले की जांच यूपी पुलिस के सतर्कता अधिष्ठान (विजिलेंस) को सौंपी थी। मामले में इलाहाबाद हाईकोर्ट की दखल के बाद विजिलेंस ने जांच पूरी की और अभियोजन की स्वीकृति के लिए प्रकरण शासन को भेजा। अभियोजन की स्वीकृति के लिए प्रकरण अभी भी शासन स्तर पर लंबित है।