पत्र में आगाह किया गया है कि विश्व स्वास्थ्य संगठन और वैक्सीन निर्माता कंपनी की ओर से परीक्षण के बाद वैक्सीन नकली होने और निर्माता कंपनी द्वारा आपूर्ति न किए जाने की पुष्टि की गई है। इसलिए डीएम और सीएमओ नकली टीकों से बचाव के लिए सप्लाई चेन की निगरानी बढ़ाएं। खासतौर पर निजी कोविड टीकाकरण केन्द्रों पर निगरानी रखी जाए। इस पत्र से आमजन की भी चिंता बढ़ गयी है।
कोविड के नकली टीके से पहले यूपी में कोविड वैक्सीनेशन बढ़ाने के लिए मुर्दांे तक को टीके लगाने की खबरें आयी थीं। एक जिले से वैक्सीन लाकर दूसरे जिले में वैक्सीन लगाने का भी खेल चल रहा है। बाराबंकी में तो श्रावस्ती से वैक्सीन लाकर लगाने पर खूब बवाल भी हुआ। ग्रामीणों ने इस खेल को उजागर किया तो उन्हें एक कमरे में कैद कर जिंदा जलाने की भी कोशिश हुई। इस मामले में 18 पर नामजद रिपोर्ट लिखी गयी है। टीकाकरण में इसी तरह के कई अन्य फर्जीवाड़े भी चल रहे हैं। निजी अस्पतालों में टीकाकरण की दरें तय हैं लेकिन, मनमाने रेट लिए जा रहे हैं। कुछ अस्पतालों में तो टीकाकरण से पहले कई तरह के स्वास्थ्य परीक्षण की भी खबरें आ रही हैं। इनके लिए वैक्सीनेशन कमाई का जरिया बन गया है।
यूपी सरकार का दावा है कि अब 7.27 करोड़ लोगों को टीके लगाए जा चुके हैं। इसमें सबसे ज्यादा 6.4 करोड़ टीके सीरम इंस्टीट्यूट के कोविशील्ड के हैं। बाकी 86.52 लाख टीके भारत बायोटेक द्वारा बनाए गई कोवैक्सीन के हैं। यूपी में अब तक जितने टीके लगे उसमें से 88 फीसद कोविशील्ड के ही हैं। बाकी 12 फीसद कोवैक्सीन हैं। इसके अलावा कुछ निजी अस्पतालों में रूस की कंपनी स्पूतनिक के भी टीके लग रहे हैं। यूपी में 6.10 करोड़ लोगों ने कम से कम टीके की एक डोज लगवा ली है। जबकि, 1.16 करोड़ लोगों को वैक्सीन की दोनों डोज लग चुकी है। इस तरह 16 प्रतिशत लोगों को दोनों डोज लग चुकी है। अभी बहुत बड़ी संख्या में लोगों को वैक्सीन लगनी है। ऐसे में नकली वैक्सीन की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता। सरकार को चाहिए कि वह टीकाकरण अभियान की कड़ाई से समीक्षा और निगरानी करे। चाहे वह टीकाकरण हो या फिर वैक्सीन की सप्लाई चेन सभी पर सख्त नियंत्रण की जरूरत है अन्यथा सुरक्षा चक्र महज मजाक बनकर रह जाएगा।