राजनीतिक जमीन खोज रहे राजनीतिक दल दरअसल इस बार होने वाले विधानसभा चुनाव में कई राजनीतिक दल देश के इस बड़े यूपी में अपनी राजनीतिक जमीन खोजने की तैयारी कर रहे हैं। एआईएमआईएम चीफ असदुद्दीन ओवैसी पहले ही 100 सीटों पर चुनाव लड़ने का ऐलान कर चुके हैं। इसके अलावा कई छोटे दल सपा के साथ गठबंधन करके चुनाव लड़ने का विचार कर रहे हैं। तो वहीं सुहेलदेव समाज पार्टी भी भाजपा के खिलाफ बिगुल फूके हुए है। आम आदमी पार्टी भी यूपी में ताल ठोक चुकी है, लेकिन निगाहें राष्ट्र मंच पर टिकी हुई हैं जो खुद को तीसरा विकल्प बता रहा है।
पीके बढ़ाएंगे बीजेपी की टेंशन प्रशांत किशोर के जरिए ममता बनर्जी, शरद पवार और नीतीश कुमार यूपी में संभावनाएं तलाशने में जुटे हैं। ऐसे में अगर इनकी इंट्री हुई तो पीके सत्तारूढ़ दल की चिंता बढ़ा सकता है। कारण यह भी है कि बीते दिनों पश्चिम बंगाल के चुनाव भाजपा के पक्ष में नहीं रहे थे। वहां भी प्रशांत किशोर ने बड़ी भूमिका निभाई थी। हालांकि नीतीश कुमार के बारे में अभी कुछ कह पाना मुश्किल है, क्योंकि जदयू केंद्र में भाजपा की सहयोगी है। लेकिन इसमें कोई शक नहीं है कि उत्तर प्रदेश में अगर पीके आये तो वर्तमान में सत्तारूढ़ दल के लिए चुनौती बढ़ेंगी। क्योंकि कोरोना की दूसरी लहर के दौरान सरकार की छवि को धक्का लगा है। इसका फायदा दूसरे दल उठा सकते हैं।
पश्चिमी यूपी में भाजपा के सामने चुनौती वहीं इसके अलावा पश्चिमी यूपी में किसान आंदोलन की वजह से भी भाजपा को चुनौती का सामना करना पड़ रहा है। उधर कुछ दिन पहले ही टीएमसी के यशवंत सिन्हा ने राकेश टिकैत से मुलाकात की थी। राकेश टिकैत पहले से ही कहते आए हैं कि वह चुनाव के दौरान भी जनसभाएं करेंगे और लोगों से भाजपा को वोट न देने की अपील करेंगे। हालांकि उन्होंने यह नहीं बताया कि वह किसको वोट देने की अपील करेंगे। लेकिन ऐसे में एक बात तय है कि किसान संगठन भाजपा को बड़ा नुकसान पहुंचाने का काम करेंगे।