भाजपा और बसपा में टिकट वितरण का फार्मूला तय
मंडल-कमंडल की राजनीति लाई हाशिए पर
करीब 23 साल तक प्रदेश की सत्ता की कमान ब्राह्मण समुदाय के हाथ में रही, लेकिन मंडल और कमंडल की राजनीति ने उन्हें हाशिये पर धकेल दिया। कांग्रेस से छिटकने के बाद ब्राम्हण कभी सपा के साथ तो कभी बसपा और कभी बीजेपी के साथ गया।
मंत्रिमंडल में उचित और महत्वपूर्ण मंत्रालयों में प्रतिनिधित्व न होना, कथित एनकाउंटर्स में कई ब्राह्मणों का मारा जाना और तमाम सरकारी नियुक्तियों में भी ब्राह्मणों को नजरअंदाज किया जाने से ब्राह्मण नाराज हैं।
आजादी के बाद से 1989 तक यूपी की सियासत में ब्राह्मणों का वर्चस्व रहा। गोविंद वल्लभ पंत, सुचेता कृपलानी, कमलापति त्रिपाठी, हेमवती नंदन बहुगुणा, श्रीपति मिश्र और नारायण दत्त तिवारी सहित छह नेता मुख्यमंत्री बने। ये सभी कांग्रेस से थे। इनमें नारायण दत्त तिवारी तीन बार यूपी के सीएम रहे।
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राज्य में 13 फीसदी ब्राह्मण मतदाता
यूपी में करीब 11 से 12 फीसदी तक ब्राह्मण मतदाता हैं। हालांकि कुछ जिले ऐसे भी हैं जहां इनकी संख्या करीब 20 फीसद है। पश्चिमी यूपी के हाथरस, बुलंदशहर, मेरठ, अलीगढ़, पूर्वांचल व लखनऊ के आसपास के कई जिलों में ब्राह्मण मतदाता निर्णायक स्थिति में हैं।
भाजपा- ह्रदयनारायण दीक्षित, डॉ. दिनेश शर्मा, सतीश द्विवेदी, श्रीकांत शर्मा, रीता बहुगुणा जोशी, महेंद्र नाथ पांडेय, ब्रजेश पाठक
सपा- माता प्रसाद पांडेय, अभिषेक मिश्रा, मनोज पांडे, तेज नारायण पांडेय ‘पवन’
बसपा- सतीश चंद्र मिश्र, विनय तिवारी, नकुल दुबे
कांग्रेस- प्रमोद तिवारी, आराधना शुक्ला