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लखनऊ

Aurangzeb: काशी में दो ही नहीं, कुल डेढ़ हजार मंदिर तुड़वाया था औरंगजेब, जानें हकीकत…

1984 में शुरू हुए राममंदिर आंदोलन के नेता कहा करते थे कि हम अपने एक लाख मंदिर नहीं, सिर्फ तीन मंदिर मांग रहे हैं- काशी, मथुरा और अयोध्या। इन दिनों काशी का मामला न्यायालय में हैं। काशी क्षेत्र में करीब डेढ़ हजार मंदिरों को नष्ट और अपवित्र किया था जिंदा पीर कहे जाने वाले औरंगजेब ने। जाने विस्तार से…

लखनऊJun 01, 2023 / 01:42 pm

Markandey Pandey

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विध्वंस किया गया पूजास्थल

Temples Destroyed by Aurangzeb: इतिहासकारों का दावा है कि काशी में छत्रपति शिवाजी की गतिविधियां बढ़ गई थी और औरंगजेब का बड़ा भाई काशी आकर संस्कृत की पढ़ाई करने लगा था, जिससे औरंगजेब नाराज होकर काशी के विश्वेसर मंदिर और बिंदू माधव मंदिर को तोडऩे का आदेश दिया।
लेकिन सवाल यह है कि अगर उक्त कारण से औरंगजेब नाराज था तो मथुरा और उज्जैन समेत अन्य मंदिरों को उसने क्यों तुड़वाया। इसके अलावा काशी में और काशी के आसपास के डेढ़ हजार मंदिरों को उसने क्यों ध्वंस किया।
काशी विश्वनाथ पर हमले का पहला प्रयास औरंगजेब का नहीं था, उसके पहले भी मुगल शासकों ने ऐसी कोशिशें की थीं, लेकिन नागाओं के कड़े प्रतिरोध के कारण नाकाम रहे थे। औरंगजेब की भी पहली कोशिश नाकाम रही थी, अपनी सेना के साथ उसने 1664 में मंदिर पर धावा बोला था, लेकिन काशी के महानिर्वाणी अखाड़े के नागाओं के आगे उसे घुटने टेकने पड़े थे।
इस संघर्ष में 40,000 से अधिक नागाओं ने अपना बलिदान दिया था। मुगलों के इस पराजय का वर्णन इतिहाकार जेम्स लोचटेफैल्ड ने अपनी किताब इनसाईक्लोपीडिया ऑफ हिंदुइज्म में लिखा है कि वाराणसी में महानिर्वाणी अखाड़े के अभिलेखागार में हाथ से लिखी एक किताब में लिखा है कि 40 हजार नागाओं ने बलिदान दिया।
इसके अलावा प्रसिद्ध इतिहासकार जदुनाथ सरकार ने भी अपनी पुस्तक “ए हिस्ट्री ऑफ दशनामी नागा सन्यासी” में लिखा है कि नागा संन्यासियों ने काशी विश्वनाथ के सम्मान की रक्षा किया। युद्ध सूर्योदय से सूर्यास्त तक चलता रहा। इसके चार साल बाद 1669 में औरंगजेब ने फिर से नई तैयारी के साथ काशी पर हमला कर दिया।
जिसके बाद वह सफल हो पाया और मंदिर तोडक़र उसकी दीवारों के सहारे मस्जिद का निर्माण कराया। बाकायदा यह इतिहास में दर्ज है और इसे अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के इतिहास के प्रोफेसर इरफान हबीब ने भी स्वीकार किया है।
काशी क्षेत्र में ढहाए डेढ़ हजार मंदिर
काशी क्षेत्र के प्राचीन शिवमंदिरों की फोटोग्राफी कुछ दिनों पूर्व अंतरराष्ट्रीय हिंदू परिषद के डॉक्टर प्रवीण भाई तोगडिय़ा ने कराया था। वह बताते हैं कि ‘प्रमुख मंदिर काशी विश्वेसर पर तो हमला हुआ ही, बिंदू माधव भव्य मंदिर को तोडक़र मस्जिद तामीर कर दी गई।
जबकि औरंगजेब की सेना के रास्ते में आने वाले सभी मंदिरों को नष्ट किया गया। यहां तक कि गौशालाओं और वेद पाठशालाओं पर भी हमले किए गए।’ काशी और आसपास के क्षेत्रों में अनुमान है कि डेढ़ हजार से अधिक छोटे-बड़े पूजा स्थल, वास्तुकला के दुर्लभ सौंदर्य से भरे मंदिरों को नष्ट कर दिया गया। इनमें काशी क्षेत्र में ही अन्नपूर्र्र्णा, कर्जमुक्तेश्वर, मनकामेश्वर, दुग्धेश्वर आदि प्राचीन मंदिरों का अस्तित्व नष्ट हो गया।
कालका मंदिर से उज्जैन और मथुरा तक तोड़े मंदिर
काशी विश्वनाथ को तोडऩे के बाद ही आक्रांता औरंगजेब शांत नहीं बैठा, बल्कि उसने सितंबर 1667 में दिल्ली में प्रसिद्ध कालकाजी मंदिर को तोडऩे के लिए फरमान जारी किया। इतिहासकार इब्राहीम ने अपनी किताब “द सागा ऑफ द ग्रेट मुगल्स” में लिखा कि उज्जैन के आसपास के सभी मंदिरों को नष्ट दिया गया।
राजस्थान में 300 मंदिरों को तोड़ा गया। बीजा मंडल मंदिर को तोड़ दिया गया और नासिक के त्रयंबकेश्वर के ज्योतिर्लिंग को 1690 में औरंगजेब की मुगल सेना ने तोड़ दिया। जदुनाथ सरकार की पुस्तक हिस्ट्री ऑफ औरंगजेब में वर्णन है कि उसी समय एलोरा, नरसिंहपुर, पंढरपुर, जेजुरी और यवतमाल में अनेक मंदिर नष्ट कर दिए गए।
इन मंदिरों को किया नष्ट
मध्यप्रदेश के विदिशा में बीजामंडल मंदिर को 1682 में तोडक़र आलमगीर मस्जिद का निर्माण किया गया। मंदिरों को तोडऩे के बाद उन्हीं के मलबों से मस्जिदों का निर्माण किया जाता रहा जो आज अदालती कार्यवाहियों में अहम सबूत बन गए हैं।
हरियाणा के पिंजौर में स्थित भीमा देवी मंदिर को नष्ट किया गया, मथुरा केशवदेव मंदिर को तोड़ दिया गया। जिसकी जगह ईदगाह मस्जिद बनाई गई। आंध्रप्रदेश के गोलकोंडा, पंजाब में सिखों के गुरुद्वारे और गुजरात के सोमनाथ पर भी दो बार हमले किए गए।
हांलाकि, सोमनाथ को पहले ही गजनी ने तोड़ दिया था, लेकिन फिर भी हिंदू वहां टूटे हुए मंदिर की पूजा करते थे, जो औरंगजेब को नागवार गुजरा और उसने लूट और नरसंहार का आदेश दिया।
टूटे मंदिर की क्यों करते थे हिंदू पूजा
काशी विश्वेसर मामले में हाईकोर्ट में दी गई हिंदू पक्ष की दलीलों में एक बात सामने आई है, जिसे स्कंद पुराण के आधार पर बताया किया गया है कि मंदिर के विग्रह में प्राण प्रतिष्ठा के बाद भी मंदिर का स्वरुप कायम रहता है। वहां की भूमि का मालिकाना हक भी उसी विग्रह के देवता की होती है। यही कारण है कि अयोध्या मामले में रामलला विराजमान एक पक्ष हुआ करते थे। मंदिर विध्वंस के बाद भी प्राण प्रतिष्ठित विग्रह होने के कारण हिंदू टूटे हुए मंदिरों की भी पूजा करते रहे।

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